जिंदगी में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हर किसी को चुनौतियों का सामना करना होता है। चुनौतियों से हार मानने की बजाय हमें लक्ष्य तक पहुँचने के लिए बेहतर तरीके खोजने की ओर ध्यान लगाना चाहिए, लेकिन हम में से अधिकांश अक्सर विपरीत काम करते हैं। अधिकांश लोग वैकल्पिक तरीकों का पता लगाने के बजाय निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में अपनी असमर्थता को ही दोषी ठहराते हैं। प्रयागराज के प्रखर प्रताप की कहानी चुनौतियों का मुकाबला कर लक्ष्यों को स्मार्ट तरीके से पूरा करने की एक अनुकरणीय मिसाल है।
उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले के एक किसान परिवार में जन्में प्रखर ने 12वीं तक की पढ़ाई गाँव के ही स्कूल से पूरी की। खुद एक किसान होने के बावजूद भी, प्रखर के पिता ने हमेशा उन्हें खेती की गतिविधियों से दूर रखा और बेटे को सिविल इंजीनियर बनने के लिए प्रेरित किया। प्रखर की खेती में गहरी रुचि थी लेकिन उन्होंने अपने पिता की इच्छा पूरी की और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
अध्ययन के बाद, प्रखर ने एफएलसीएल, कोलकाता मेट्रो, एरा इन्फ्रास्ट्रक्चर, सुपरटेक आदि कंपनियों के लिए काम किया, इन कंपनियों के लिए काम करते हुए व्यापक यात्रा ने प्रखर को ग्रामीण और शहरी भारत में लोगों के जीवन में सार्थक अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में मदद की। उनके दौरे, विशेष रूप से उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के जिलों में उन्हें मछली पालन की दुनिया से परिचित कराया। मछली पालन की मूल बातें सीखने के बाद प्रखर की कृषि गतिविधियों में पहली दिलचस्पी पैदा हुई, उन्होंने जल्द ही अपने गाँव में पारंपरिक खेती के साथ-साथ एक अतिरिक्त गतिविधि के रूप में मछली पालन शुरू करने की योजना बनाई।
प्रखर को पता था कि एक सफल मछली पालन व्यवसाय स्थापित करना आसान नहीं होगा। कठिनाइयाँ उनके घर पर ही शुरू होनी थीं। मछली पालन शुरू करने के लिए अपने परिवार वालों को राजी करना आसान नहीं था। उन्होंने किसी तरह अपने परिवार से इस व्यवसाय के लिए आज्ञा ली और परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने मदद के लिए स्थानीय मत्स्य विभाग से भी संपर्क साधा लेकिन जल्द ही उन्हें महसूस हो गया कि विभाग के पास विशेषज्ञता का अभाव है। उनके लिए पहला वर्ष तकनीकों की कमी के कारण विफलताओं और सीखों से भरा रहा।
शुरुआती नुकसान से हार न मानते हुए उन्होंने इसे एक सबक के रूप में स्वीकार किया और अपने ज्ञान को तेज करने का फैसला किया। वह जल्द ही मेजा, उत्तर प्रदेश के एक मछली-पालन विशेषज्ञ के साथ संपर्क में आए, और उसे अपने गांव का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया। प्रखर के जज्बे की सराहना करते हुए, विशेषज्ञ उनके गांव का दौरा करने और कुछ दिनों तक वहां रहने के लिए सहमत हुए। प्रखर के गाँव में रहने के चार दिनों के दौरान, विशेषज्ञ ने फर्टिलाइजेशन तकनीकों में आ रही बुनियादी समस्याओं का पता लगाया और उन्हें एक बेहतर फर्टिलाइजेशन तकनीक के बारे में जानकारी दी। यह प्रखर के लिए बेहद कारगर साबित हुआ।
इस बेहतर तकनीक के माध्यम से उन्हें तुरंत परिणाम दिखने शुरू हो गए और वह बहुत जल्द मुनाफा कमाना शुरू कर दिए। अपने संचालन के दूसरे वर्ष के दूसरे सीज़न में, प्रखर ने दस लाख रुपए का एक अच्छा लाभ कमाया। उनके लिए दस लाख रुपये का लाभ न केवल पैसे के मामले में था, बल्कि मछली पालन के लिए अपनी नौकरी छोड़ने के फैसले के लिए एक प्रमाण पत्र के रूप में भी काम किया। नौकरी करते हुए उनकी आख़िरी तनख्वाह महीने के 40 हज़ार रुपये थी।
प्रखर ने न केवल अपना खुद का मछली पालन व्यवसाय स्थापित किया है, बल्कि क्षेत्र के अन्य किसानों को भी उनकी चल रही कृषि गतिविधियों के साथ-साथ मछली पालन करने में मदद भी कर रहे हैं। मछली पालन की नई तकनीकें किसानों को अपने खेत से पहले से ज्यादा कमाने में मदद कर रही है, जिसका श्रेय प्रखर की इस सामाजिक पहल को जाता है।
जमीनी स्तर पर किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में प्रखर जैसे युवाओं का प्रयास बेहद सराहनीय है।