हिमाचल में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चरम पर हैं. खास बात है कि यहां बीते तीन दशकों में सत्ता कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच बार-बार बदलती रही है, लेकिन इस बार मुकाबला अलग है. इस बार ही दल अपने-अपने स्तर पर परेशानियों का भी सामना कर रहे हैं. हिमाचल विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की तारीख खत्म हो चुकी है. सूबे की 68 सीटों के लिए 561 उम्मीदवार मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों की राह में अपनी नेता सिरदर्द बन गए हैं. हिमाचल चुनाव में करीब 18 सीटों पर बीजेपी को अपने ही नेताओं की बगावत झेलनी पड़ रही है, जबकि कांग्रेस को करीब 10 सीटों पर अपनों से ही चुनौती मिल रही है.
बीजेपी को बगावत का सामना इसीलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि कुछ सीटों पर मौजूदा विधायकों के टिकट कटने के कारण परेशानी खड़ी हुई है तो कुछ पर टिकट के चाहने वालों के निर्दलीय चुनावी मैदान में ताल ठोक देने से. वहीं, कांग्रेस से टिकट कटने के बाद चाहवान उम्मीदवार निर्दलीय रूप में चुनावी मैदान में उतर गए हैं, जिसके चलते पार्टी के लिए सत्ता में वापसी की राह कांटों भरी हो गई. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां अपने-अपने बागी नेताओं को मनाने में जुटी हैं ताकि नुकसान ना उठाना पड़े. सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो 8 दिसंबर को ही पता चलेगा, लेकिन इतना साफ है कि हिमाचल के इस रण में कोई भी दल कसर नहीं छोड़ना चाहता. हालांकि अंदरुनी कलह, गुटबाजी दोनों दलों के सामने चुनौती बन रही हैं.
बीजेपी की सबसे बड़ी मजबूती…
हिमाचल में बीजेपी के लिए प्रदेश में हुए विकास कार्य और भाजपा की ओर से लिया गया मिशन रिपीट का संकल्प भाजपा की ताकत बढ़ाने का काम कर रहा है, सांगठनिक तौर पर भी BJP विपक्षियों से अधिक मजबूत नजर आ रही है, खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल और कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर हिमाचल से ही हैं. स्थानीय स्तर पर बात करें तो सीएम जयराम ठाकुर का कार्यकाल भी विवादों से परे रहा है, कई बार पीएम मोदी भी उनकी पीठ थपथपा चुके हैं, हाल में की गई वंदेभारत ट्रेन की शुरुआत, हाटी समुदाय को जनजातीय का दर्जा दिया जाना, बिलासपुर एम्स, बल्क ड्रग पार्क, मेडिकल डिवाइस पार्क भी भाजपा को वोट दिलाने में सहायक हो सकते हैं.
ये है कमजोरी
भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी अंदरखाने कलह और गुटबाजी को रोकना है, दरअसल बीजेपी ने 10 विधायकों के टिकट काट दिए हैं, 19 नए चेहरों को मैदान में उतारा है, ऐसे में पार्टी को नाराज विधायकों को तो संभालना ही होगा, नए चेहरों के लिए भी रास्ता आसान बनाना होगा, ताकि पुराने नेताओं में उनकी स्वीकार्यता बढ़ सके. इसके अलावा पुरानी पेंशन योजना को लेकर भी हिमाचल में बीजेपी का विरोध हो रहा है.
कांग्रेस की ताकत…
हिमाचल प्रदेश चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है, इसके लिए पार्टी नेता सत्ता पक्ष की खामियां उजागर कर रहे हैं, पार्टी अपनी सबसे बड़ी मजबूती सत्ता परिवर्तन के मिथक को मान रही है, 80 के दशक से ऐसा होता भी आया है, जनता हर पांच साल बाद सरकार बदलती रही है, इसके अलावा छत्तीसगढ़ मॉडल के जरिए पार्टी ये बताने की कोशिश कर रही है कि हिमाचल को कैसे विकास के रास्ते पर दौड़ाया जा सकता है, कई जगह ये मॉडल पसंद भी किया जा रहा है. पुरानी पेंशन स्कीम वापस लाने का ऐलान और पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह का नाम भी पार्टी को मजबूत बना रहा है. कांग्रेस ने एक लाख नौकरियां देने का भी ऐलान किया है जो कांग्रेस के लिए मजबूत कड़ी बन रहा है.
ये है कमजोरी….
सीएम का चेहरा न होना कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है, बेशक पार्टी प्रतिभा वीरभद्र सिंह की लीडरशिप में चुनाव में उतर रही है, लेकिन ये साफ नहीं है कि जीतने पर सीएम किसे बनाया जाएगा. इसीलिए पार्टी में सीएम पद के कई दावेदार हैं, इसी कारण गुटबाजी और कलह भी हावी है, इसी कलह के चलते पिछले दिनों कई कांग्रेसी नेता पार्टी को अलविदा कहकर दूसरे दलों के चले गए थे.