1650 को अयोध्या से लाए भगवान रघुनाथ के बाद से दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है। इसके बाद जिलेभर से देवी-देवताओं का भी आना शुरू हुआ।
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में इस साल दशहरा के इतिहास में पहली बार 304 देवी-देवता शामिल हुए हैं। साल दर साल दशहरा में बढ़ रही देवताओं की संख्या के एतिहासिक ढालपुर मैदान भी छोटा पड़ने लगा है। ऐसे में दशहरा में आ रहे नए देवताओं को बैठाना प्रशासन के लिए चुनौती बन गया है। 2021 के दशहरा में कोरोना काल के दौरान भी दशहरा में 283 देवी-देवता शामिल हुए थे। दशहरा उत्सव समिति ने इस बार 332 देवी-देवताओं को दशहरा के लिए निमंत्रण दिया था। इसमें अधिकतर देवता निमंत्रण को स्वीकार कर भगवान रघुनाथ के उत्सव की शोभा बढ़ाने पहुंचे हैं।
31 देवता बिना निमंत्रण पहली बार उत्सव में भाग ले रहे हैं। 1650 को अयोध्या से लाए भगवान रघुनाथ के बाद से दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है। इसके बाद जिलेभर से देवी-देवताओं का भी आना शुरू हुआ। दशहरा जैसे ही बढ़ता गया देवताओं की संख्या में कमी आना शुरू हुई और यह संख्या घटकर सौ तक पहुंच गई थी।
साठ के दशक के बाद दशहरा के लिए देवी-देवताओं को जिला प्रशासन कर तरफ से निमंत्रण देना शुरू किया गया। धीरे-धीरे देवताओं की संख्या में इजाफा होने लगा। साल 2000 के बाद देवताओं का आंकड़ा 200 के पार पहुंच गया और अब लगातार बढ़ रहा है। इस साल ढालपुर मैदान में 304 देवी -देवताओं के आगमन से रघुनाथ की नगरी देवलोक में बदल गई है।
दशहरा उत्सव समिति के राजस्व रिकॉर्ड में पंजीकृत 304 देवी-देवताओं में 131 गैर माफीदार, माफीदार 142 और 31 देवता बिना बुलाए दशहरा में पहुंचे हैं। देवी-देवता कारदार संघ के जिला अध्यक्ष दोत राम ठाकुर ने कहा कि दशहरा के इतिहास में पहली बार देवताओं का आंकड़ा 300 को पार कर 304 पहुंची है। कहा कि इनमें 31 देवता बिना बुलावे के शामिल हुए हैं।