Kullu Dussehra: 372 साल की परंपरा, देवी-देवताओं में अटूट आस्था का प्रतीक है कुल्लू दशहरा
भले ही आधुनिकता के दौर में हर क्षेत्र में परिवर्तन आ गया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में 372 साल पुरानी देव परंपराओं का अटूट आस्था का निर्वहन होता है। ढालपुर में होने वाले देवी-देवताओं के महाकुंभ के प्रति लोगों में अटूट आस्था है और आज भी देव और मानस का यह भव्य देव मिलन पूरे विश्वभर में विख्यात है। अठारह करड़ू की सौह ढालपुर में कुल्लू जिला के सैकड़ों देवी-देवता अपनी हाजिरी देवलुओं के साथ भगवान रघुनाथ के दरबार में भरते है। कई किलोमीटर सफर के बाद देवी-देवता आराध्य रघुनाथ के समक्ष देवविधि के अनुसार मिलन करते हैं। 1650 में तत्कालीन राजा जगत सिंह ने कुल्लू दशहरे का आगाज किया था और उन्होंने अपना राजपाठ रघुनाथ के चरणों में समर्पित कर दिया था।