L.K Kirloskar: 45 रुपये कमाने वाला अध्यापक जिसने Cycle से तय किया हजारों करोड़ के कारोबार का सफर

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इंसान ने किन परिस्थितिओं में जन्म लिया ये मायने नहीं रखता, मायने ये रखता है कि वही इंसान जब इस दुनिया को अलविदा कह कर गया तब तक उसने क्या और किस तरह अर्जित किया. जिनका जन्म और परवरिश अच्छे और समृद्ध माहौल में हुई वे अपने जीवन के साथ कुछ न कुछ बेहतर कर ही लेते हैं लेकिन जिन्होंने संघर्ष भरा जीवन जिया और अपनी अलग पहचान बनाई वे लोग आने वाली पीढ़ी के लिए नजीर बन गए.

ऐसी ही एक शख्सियत थे लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर. किर्लोसक्र समूह के संस्थापक स्व लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर भारत के प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक थे. अगर ऐसा कहा जाये तो कहीं से गलत नहीं होगा कि वे एक वास्तविक फिल्म के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता थे. जी हां उनका जीवन किसी फिल्म से कण नहीं रहा.

आइए आज जानते हैं उनके रोमांचक जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें :     

कौन थे काशीनाथ किर्लोस्कर

Lakshman Kashinath Kirloskar Wiki

लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर का जन्म 20 जून, 1869 को मैसूर के निकट बेलगांव जिले के एक छोटे से गांव गुरलाहोसुर में हुआ था. काशीनाथ का बचपन से ही पढ़ने में मन नहीं लगता था. यही कारण रहा कि उनका दाखिला मुम्बई के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में कराया गया. उनके जीवन में एक मोड़ तब आया जब उन्हें अनुभव हुआ कि आंखों में खराबी के कारण वे रंगों को सही से पहचान नहीं सकते. इसके बाद उन्होंने मैकेनिकल ड्राइंग सीखी और मुम्बई के ‘विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट’ में अध्यापक नियुक्त हो गए. वे अपने ख़ाली समय में कारख़ाने में जाकर काम किया करते थे. इससे उनको मशीनों की जानकारी हो गई थी.

लोगों को चलाना सिखाया साइकिल

Lakshman Kashinath Kirloskar Kirloskar Brothers

आज भले ही इंसान चांद तक सफर कर आया हो लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब लोगों के लिए साइकिल भी किसी अचंभे से कम नहीं थी. ऐसे में किर्लोस्कर ने जीवन में पहली बार एक व्यक्ति को साइकिल चलाते हुए देखा तो उनके दिमाग में एक विचार आया. इस विचार पर अमल करते हुए उन्होंने 1888 में अपने भाई रामुअन्ना के साथ मिलकर ‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ नाम से साइकिल की दुकान खोल ली. वे अतिरिक्त समय में साइकिल बेचने के साथ उनकी मरम्मत करते और लोगों को साइकिल चलाना भी सिखाते.

दे दिया नौकरी से इस्तीफा

Lakshman Kashinath Kirloskar Twitter

भले ही लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर एक अध्यापक रहे हों लेकिन उनके भाग्य ने ये फैसला कर लिया था कि उन्हें इससे बहुत आगे जाना है. उनके जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता एक नयी समस्या के साथ खुला. हुआ कुछ ऐसे कि जहां वे अध्यापक थे वहां उनके स्थान पर एक एंग्लों इण्डियन को पदोन्नति दे दी गई. अगर किर्लोस्कर की जगह कोई और होता शायद इस घटना से विचलित हो जाता लेकिन वो विचलित नहीं हुए और उन्होंने अध्यापक का पद त्याग दिया.

शायद उन्होंने पद छोड़ने से पहले ही ये योजना बना ली थी कि उन्हें आगे क्या करना है. और अपनी इसी योजना के साथ उन्होंने चारा काटने की मशीन और लोहे के हल बनाने वाला छोटा सा कारखाना खोल लिया. उनका काम ठीक ठाक चल रहा था लेकिन उनका भाग्य अब भी संतुष्ट नहीं था. यही कारण रहा कि उन्हें नगर पालिका के प्रतिबन्धों के कारण बेलगांव में अपना कारखाना बंद करना पड़ा.

बंजर जमीन पर शुरू किया कारोबार

Lakshman Kashinath Kirloskar Twitter

ये एक बड़ी समस्या थी लेकिन मेहनत को उन्होंने अपना कर्म मान लिया था और भाग्य उनके साथ था. शयद ये समय भविष्य में बनने वाले उनके नाम को गुमनाम कर सकता था लेकिन भला हो उस समय के औंध के रजा का जिन्होंने किर्लोस्कर को काम शुरू करने के लिए महाराष्ट्र में जमीन और 10 हजार का लोन दिया. और इसके बाद से ही शुरू हो गयी किर्लोस्कर की वो यात्रा जो उन्हें असमान की बुलंदियों तक ले गयी.

किर्लोस्कर ने अपनी टीम भी कुछ अजीब तरह से ही बनाई. कोई भी उद्योगपति जब नया उद्योग शुरू करता है तो अनुभवी और पढ़े लिखे लोगों को काम पर रखता है लेकिन किर्लोस्कर की सोच इन सबसे अलग थी. सबसे पहले तो फैक्ट्री के लिए जगह का चुनाव ही बड़ा अजीब था, उन्होंने अपने काम के लिए 32 एकड़ बंजर जमीन खरीदी जहां नागफनी के पौधों और सांपों के सिवा और कुछ भी नहीं था.

जिन्हें किसी ने नहीं चुना उन्हें रखा काम पर

कहीं न कहीं किर्लोस्कर इंसान की शिक्षा से ज्यादा उसकी क्षमता को महत्व देते थे. यही कारण रहा कि उन्होंने अपने 25 कर्मचारियों का चुनाव भी लीक से हट कर किया और उनके साथ उस 32 एकड़ बंजर जमीन को अपने सपनों के गांव में परवर्तित कर दिया और इसका नाम रखा किर्लोस्कर वाड़ी. किर्लोस्कर के भाई रामुअन्ना ने टाउनशिप बनाने की योजना और उसके प्रबंधन का कार्यभार संभाला, शम्भुराव जम्भेकर ने इंजिनियर और ऑल राउंड हीलिंग मैन की दोहरी भूमिका निभाई, के के कुलकर्णी जो एक असफल विद्यार्थी थे को मैनेजर और खजांची का काम सौंपा गया, मंगेशराव को कलर्क और मुख्य अकाउंटेंट के रूप में चुना गया.

अनंतराव फाल्निकर जो एक स्कूल ड्राप आउट थे, को कल्पनाशील इंजीनियर का काम सौंपा गया, तोकराम रामोशी तथा पिर्या मांग अपने समय के कुख्यात डकैत थे जिन्हें किर्लोस्कर ने किर्लोस्कर वाड़ी के भरोसेमंद सुरक्षाकर्मियों के रूप में चुना. इसके बाद किर्लोस्कर के लिए जो सबसे कठिन काम रहा वो था अंधविश्वासी किसानों को अपने भरोसे में लेना. ये कितना कठिन था इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि किर्लोस्कर को अपना पहला हल बेचने में 2 वर्ष का समय लग गया.

छू लीं सफलता की ऊंचाइयां

Lakshman Kashinath Kirloskar Twitter

एक समय में जो जमीन बंजर थी उसकी अब पूरी तरह से काया पलट गई थी. इसके बाद किर्लोस्कर ने अपनी औद्योगिक इकाइयां बंगलौर, पुणे, और  देवास (मध्य प्रदेश) आदि में भी स्थापित कर दीं. इनमें खेती और उद्योगों में काम आने वाले विविध उपकरण बनने लगे. आगे चल कर किर्लोस्कर इतने सफल हो गए कि लोकमान्य तिलक, जवाहरलाल नेहरू, विश्वेश्वरय्या, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि सभी उनके प्रयत्नों के प्रशंसक हो गए.

Kirloskar Group Twitter

45 रुपये प्रति महीने की नौकरी करने वाले काशीनाथ किर्लोस्कर ने जो कारोबार शुरू किया था वह किर्लोस्कर ग्रुप आज 2.5 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का साम्राज्य बन चुका है. साल 2015 तक इस समूह का कुल मार्केट कैप 9684.8 करोड़ रुपये था.

एक विशाल औद्योगिक साम्राज्य खड़ा कर, देश के औद्योगिक नक्शे पर एक नई इबारत लिखकर और भारतीय कृषि को एक नई दिशा देने के बाद लक्ष्मण काशीनाथ किर्लोस्कर ने 26 सितम्बर, 1956  को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.