गहलोत सरकार के एक लेटर से NPS और OPS के बीच अधर में लटके लाखों कर्मचारी

गहलोत सरकार के एक लेटर से NPS और OPS के बीच अधर में लटके लाखों कर्मचारी

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के बीच ओपीएस एक अहम विषय बनकर उभरा है। कर्मचारियों के वोट फॉर ओपीएस अभियान के बीच बीजेपी यह कह रही है कि कर्मचारियों की इस मांग का समाधान सिर्फ बीजेपी कर सकती है और वह इस विषय पर गंभीरता से प्रयास कर रही है। दूसरी ओर कांग्रेस ने स्पष्ट घोषणा कर दी है कि वह सरकार बनते ही कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन देगी। इसके लिए वह छत्तीसगढ़ और राजस्थान का हवाला दे रही है, जहां पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों ने ओल्ड पेंशन देने का एलान कर दिया है। लेकिन राजस्थान से आ रही है एक खबर ने हिमाचल में कांग्रेस की चिंताएं बढ़ा दी हैं।

दरअसल राजस्थान में गहलोत सरकार के एक फैसले को लेकर एनपीएस कर्मचारियों में नाराजगी देखने को मिल रही है। राजस्थान सरकार ने पिछले दिनों एक पत्र जारी करके एनपीएस कर्मचारियों पर अपना ही पैसा निकालने पर रोक लगा दी थी। यह पत्र में यह लिखा गया है कि जो कोई एनपीएस कर्मचारी पैसा निकालेगा, माना जाएगा कि वह ओल्ड पेंशन के दायरे में नहीं आना चाहता। ऐसे में लाखों कर्मचारियों को सामने आगे कुआं और पीछे खाई की स्थिति पैदा होती नजर आ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी तक ओल्ड पेंशन देने के लिए कोई तय व्यवस्था नहीं बना पाई। और इस बीच अगर कोई कर्मचारी जरूरत के लिए पैसे निकालता है तो वह ओल्ड पेंशन से बाहर हो रहा है।

दरअसल राजस्थान सरकार ने चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपने यहां साढ़े पांच लाख कर्मचारियों को ओपीएस देने का एलान किया था। एनपीएस में कर्मचारियों का पैसा PFRDA यानी पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवल्पमेंट अथॉरिटी के पास जमा होता है। राजस्थान सरकार ने ओपीएस के एलान के बाद इस पैसे को वापस मांगा। लेकिन अथॉरिटी ने प्री मेच्योर विड्राल में पैसे देने से इनकार कर दिया क्योंकि नियमों में ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है।

इस बीच, राजस्थान सरकार के एलान के बाद कर्मचारियों ने पीएफआरडीए से अपना पैसा निकालना शुरू कर दिया। नियम कहते हैं कि एनपीएस कर्मचारी PFRDA में अपने हिस्से की जमा राशि का 25 फीसदी पैसा निकाल सकते हैं। यानी यह उनका अधिकार है। मगर इस पैसे को निकालने पर ही रोक लगाने को बहुत से कर्मचारी धोखाधड़ी करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि राजस्थान की गहलोत सरकार जिस ओपीएस को देने की बात कहती आ रही थी, अब उसे लेकर तरह तरह की शर्तें लगा रही है ताकि कर्मचारियों को इसके दायरे से बाहर कर सके।

सरकार के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि कर्मचारियों के एनपीएस से पैसे निकालने पर रोक लगाना एक जरूरी कदम था। दरअसल, भारी भरकम कर्ज तले दबी राजस्थान सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने दम पर साढ़े पांच लाख कर्मचारियों को ओपीएस का पैसा दे सके। मगर इस फैसले से अब राजस्थान में बड़ी संख्या में एनपीएस के तहत आने वाले कर्मचारियों की हालत यह हो घई है कि वे न तो एनपीएस के नियमों के तहत अपनी रकम वापस ले पा रहे हैं और न ही उन्हें ओपीएस का लाभ मिल पा रहा है।

गौरतलब है कि ओपीएस हिमाचल समेत कई राज्यों में एक चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है। कांग्रेस शासित राज्यों में से एक राजस्थान ने भी चुनावी वर्ष को देखते हुए इस बार के बजट में ओपीएस देने की घोषणा की थी और बाद में अधिसूचना भी जारी की थी। लेकिन अब यह मामला पेचीदा होता नजर आ रहा है। जानकारी मानते हैं कि अगर इसका कोई हल नहीं निकला तो इसका प्रभाव न सिर्फ राजस्थान में होने वाले चुनावों पर पड़ेगा बल्कि इस समय हिमाचल और गुजरात में जारी चुनावों में भी पड़ सकता है।

गुजरात में तो अभी चुनावों की घोषणा होना बाकी है लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने जो दस गारंटियां दी हैं, उनमें पहली गारंटी ओल्ड पेंशन की बहाली ही है। ऐसे में राजस्थान से ओपीएस को लेकर किसी भी तरह की नकारात्मक खबर आना सीधे-सीधे हिमाचल में कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है।