कभी देश के स्टार्स में शुमार थे, आज दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है। 82 साल की उम्र में अब तो मजदूरी करने की भी शक्ति नहीं बची है। ये कहना है हॉकी खिलाड़ी रहे टेकचंद का। मेजर ध्यानचंद से हॉकी के गुर सीखने वाले और मोहर सिंह जैसे खिलाड़ियों को सिखाने वाले टेकचंद आज गुमनामी और गरीबी की जिंदगी जी रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर उनकी चर्चा के बाद मदद के लिए हाथ बढ़ने लगे हैं। सागर शहर के युवाओं का एक ग्रुप उनकी मदद के लिए आगे आया है।
सागर में रहने वाले टेकचंद यादव की स्मरण शक्ति भी उनका साथ नहीं देती। बात करते-करते वे बीच में भूल जाते हैं। वे एक झोपड़ी में अकेले रहते हैं। बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ी और कृशकाय शरीर को देखकर यह आभास भी नहीं होता कि वे कभी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं।
कभी हीरो थे, आज गुमनाम
साल 1961 में जिस भारतीय टीम ने न्यूजीलैंड को हराकर हॉकी का इतिहास रचा था, टेकचंद उस टीम के अहम खिलाड़ी थे। आज इनकी स्थिति बेहद दयनीय है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के शिष्य और मोहर सिंह जैसे खिलाडियों के गुरु टेकचंद आज एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने को अभिशप्त हैं।
सागर स्पोर्टिंग क्लब के थे मेंबर
टेकचंद यादव सदर क्षेत्र के सागर स्पोर्टिन्ग क्लब के मेम्बर थे। सागर स्थित महार रेजिमेंट में सैन्य खिलाड़ियों से अपने क्लब की तरफ से प्रैक्टिस मैच खेला करते थे। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद भी यहां सेना की टीम को कोचिंग देने आये थे। उन्होंने टेकचंद को भी टिप्स दी थीं।
आठ रुपये थी हॉकी स्टिक की कीमत
टेकचंद यादव फटे पुराने कपड़ों में मुफलिसी के दिन काट रहे हैं। उन्होंने नवभारत टाइम्स से बात करते हुए कहा कि हॉकी को उन्होंने तो बहुत कुछ दिया लेकिन हॉकी ने उन्हें कुछ नहीं दिया। पांच भाइयों में सबसे बड़े टेकचंद यादव को हॉकी से लगाव मामा को हॉकी खेलते देखकर हुआ। हॉकी स्टिक की कीमत उस समय 8 रुपये थी। इसलिये पेड़ की ऐसी टहनियों को ढूंढते जो हॉकी के आकार की हो।
राइट आउट खेलते थे टेकचंद
टेकचंद यादव हॉकी में राइट आउट पोज़िशन पर खेलने वाले जबरदस्त खिलाड़ी थे। सागर स्पोर्टिंग क्लब से वह खेला करते थे। आज बदहाली में जी रहे इस खिलाड़ी पर जब उस दौर में कोचेस की नज़र पड़ी तो उन्हें डिस्ट्रिक्ट हॉकी एसोसिएशन के साथ जुड़ने का मौका मिला था। यहीं से हॉकी उनका जुनून बन गया। उस दौर में शहर में महार रेजीमेंट, सागर पुलिस टीम, ब्लू स्टार, रेड स्टार, रूस क्लब, क्राउन क्लब, बजरंग क्लब, टाउन क्लब के अलावा कई क्लब थे। हॉकी का भरा पूरा माहौल था।
ध्यानचंद को देखकर लगा अब कुछ अच्छा होगा
टेकचंद बताते हैं कि ध्यानचंद महार रेजिमेंट की एक टीम को कोच करने आये थे। इस दौरान सागर के क्लब्स से खेलने वाले लड़के भी वहां जाया करते थे। जब हम लोग पहुंचे तो उन्हें देखकर लगा था कि अब कुछ अच्छा होगा। विश्व का महान खिलाड़ी हम लोगों को टिप्स दे रहा है। आज अकेले बुढापा काट रहे इस बुज़ुर्ग से जब पूछा कि वर्तमान में खेल रहे खिलाड़ियों को क्या संदेश देना चाहेंगे तो कुछ भी न कह सके।
बीवी और बेटी की मौत के बाद अकेले
टेकचंद यादव कहते हैं कि भरा पूरा परिवार था। पांच भाइयों में मैं सबसे बड़ा था। पिता की मौत के बाद हॉकी छोड़कर नौकरी करनी पड़ी। भाइयों की शादी की। मेरी बीवी और बेटी के गुज़र जाने के बाद अब बस समय काट रहा हूं। किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता, इसलिए यहां अकेला हूं।
600 रुपये की पेंशन ही सहारा
82 साल की उम्र में टेकचंद मजदूरी भी नहीं कर सकते। सरकार की ओर से हर महीने मिलने वाली 600 रुपये की पेंशन ही उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया है। वे दाने-दाने को मोहताज हैं। जनप्रतिनिधि से लेकर सरकार तक उनकी इस हालत से बेखबर बने हुए हैं। मध्य प्रदेश के सागर में रहने वाले टेकचंद के पत्नी व बच्चे नहीं हैं। भोजन के लिए वे अपने भाइयों के परिवार पर आश्रित हैं। कई बार उन्हें भूखे ही सोना पड़ जाता है।