टेक्सटाइल डिजाइनिंग की नौकरी छोड़कर इस महिला ने गांव में शुरू की खेती, अब जमकर हो रही कमाई

Kaushambi News: पहले इस गांव के लोगों की खेती से अच्छी आय नहीं होने के कारण रोजगार की तलाश में बाहर जाना पड़ता था। मगर टेक्सटाइल डिजाइनर प्रीति ने खेती को रोजगार का जरिया बनाकर सब्जियों का उत्पादन शुरू किया और अच्छी आय होने लगी तो गांव के लोग भी इसके लिए आगे आए।

कौशांबी: भारत तेजी से विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। नई तकनीकि और विशेषज्ञों के बेहतर सुझावों के दम पर खेती को लेकर पिछले कुछ सालों में यहां कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। जिससे खेती को लेकर लोगों का नजरिया तेजी से बदला है। इसी बात को आधार बनाकर साथियों आज हम एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने खेती की समझ को लेकर लोगों का नजरिया बदलने का शानदार काम किया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं कौशांबी जिले के अंबावा पश्चिम निवासी प्रीति की। प्रीति जो पहले टेक्सटाइल डिजाइनर थीं, लेकिन अब खेती को रोजगार बनाकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। इतना ही नहीं प्रीति ने अपने साथ-साथ अपने गांव के अन्य लोगों को भी अच्छी आय दिलाने में मदद की है।

पहले इस गांव के लोगों की खेती से अच्छी आय नहीं होने के कारण रोजगार की तलाश में बाहर जाना पड़ता था। मगर टेक्सटाइल डिजाइनर प्रीति ने खेती को रोजगार का जरिया बनाकर सब्जियों का उत्पादन शुरू किया और अच्छी आय होने लगी तो गांव के लोग भी इसके लिए आगे आए।

अब वह अपने साथ गांव के आधा दर्जन लोगों का भी परिवार चला रही हैं। अन्य परिवारों के लोग भी उनसे खेती के नए गुर सीख रहे हैं। इन दिनों उन्होंने लौकी की फसल तैयार की है। इससे उनके साथ ही अन्य परिवार के लोगों को अच्छी आय हो रही है और वह सफलता की नई कहानी लिख रही हैं।

टेक्सटाइल डिजाइनिंग में लिया है डिप्लोमा

प्रीति ग्रामीण परिवेश में जन्मीं हैं, लेकिन उनकी प्रारंभिक शिक्षा प्रयागराज में हुई। वह टेक्सटाइल डिजाइनर हैं। वर्ष 2008 में टेक्सटाइल डिजाइनिंग में डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने एक कंपनी में काम शुरू किया। इस बीच उनकी शादी हो गई। पति एसपी सिंह के साथ वह पुणे और इंदौर में रहीं।

लॉकडाउन में आया आइडिया
वर्ष 2020 में लॉकडाउन के दौरान वह पति के साथ वापस गांव आ गईं। इसके बाद इन्होंने गांव में काम करने का मन बनाया। इसके लिए उन्होंने खेती को चुना। उन्होंने पहले मटर, टमाटर आदि की खेती की। इसके बाद पपीते की खेती शुरू कर दीं। इससे अच्छी आय हुई तो इन्होंने गांव के अन्य लोगों को रोजगार देने की योजना बनाई।

प्रीति के साथ जुड़े गांव के 6 परिवार

आज इनके साथ गांव के छह परिवार जुड़े हैं। सभी के साथ मिलकर वह लौकी, नेनुआ और करेले की खेती कर रही हैं। उन्होंने बताया कि इन फसलों के उत्पादन से प्रतिदिन करीब पांच हजार की आय होती है। इसकी लागत करीब 75 हजार रुपये प्रति बीघे आई है, और 20 हजार रुपये प्रति माह का अतिरिक्त खर्च हैं।

खेती को लेकर गांव के तमाम किसान ले रहे प्रीति से जानकारियां

प्रीति ने बताया कि सब्जी उत्पादन के बाद इसे उचित मूल्य पर बेचना चुनौती होती है। इसके लिए उन्होंने प्रयागराज में मुंडेरा मंडी के व्यापारियों से संपर्क किया। अब गाड़ी से हर रोज सब्जियां मंडी पहुंच रही हैं। सभी चीजें रिदम में हैं। ऐसे में अब परेशानी नहीं हो रही। बताया कि गांव के अन्य किसान भी उनसे सब्जियों के उत्पादन के बारे में जानकारी ले रहे हैं।