कोरोना की तरह काली खांसी के वैरिएंट में बदलाव की आंशका

गलघोंटू और काली खांसी के वैरिएंट में बदलाव की आंशका है। डिप्थीरिया और पर्टुसिस (गलघोंटू और काली खांसी) में होने वाले बदलावों का पता लगाया जाएगा। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआई) और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर को संयुक्त रूप से यह प्रोजेक्ट दिया है। इन बीमारियों में कोविड की तरह बैक्टीरिया का वैरिएंट बदलने की आशंका है। दावा किया जा रहा है कि आगामी कुछ समय में इस शोध के परिणाम आने शुरू हो जाएंगे। अगर इन बीमारियों में कोई बदलाव आए हैं तो उसी के हिसाब से वैक्सीन तैयार की जाएगी।

सीआरआई कसौली में आधुनिक मशीनों की सहायता से इस शोध कार्य में मदद मिलेगी। डिप्थीरिया और पर्टुसिस से पीड़ित व्यक्ति के खून का सैंपल संस्थान में लाया जाएगा। कल्चर जांच के माध्यम से इसका परीक्षण किया जाएगा, जिसके माध्यम से बीमारी में हो रहे बदलाव का पता लगाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली शोध कार्य के साथ कई प्रकार की वैक्सीन और एंटी सीरम का उत्पादन करता है। सीआरआई में पर्टुसिस, गलघोंटू और डिप्थीरिया बीमारी के लिए एक ही टीपीडी वैैक्सीन, टिटनेस कम अडल्ट डिप्थीरिया के लिए टीडी वैक्सीन उत्पादन हो हो रहा है। संवाद

डिप्थीरिया और पर्टुसिस बीमारी में परिवर्तन का पता लगाया जाएगा। सीआरआई को यह एक नया प्रोजेक्ट मिला है। इस प्रोजेक्ट के कार्य को लेकर औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं।