छप्पर के मकान में रही, गरीबी रुकावट बनी, लेकिन मेहनत से जब लाखों की नौकरी मिली तो पहली सैलरी टीचर को भेज दी

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“मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है. पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है…” ये लाइन उत्तर प्रदेश के कानपुर की कंचन दीक्षित पर बिल्कुल फिट बैठती है. कंचन ने आर्थिक तंगी के बावजूद छप्पर के नीचे रहकर पढ़ाई की और उनकी मेहनत रंग लाई. अब उन्हें लाखों के पैकेज पर सॉफ्टवेयर इंजीनियर की पोज़ीशन मिली है.

छप्पर के मकान में रहकर की पढ़ाई

कानपुर के शिवराजपुर के गांव पाठकपुर की निवासी कंचन का परिवार किराए के मकान में रहता है. वह पढ़ाई कर बड़ी बनना चाहती थीं. उनका सपना था कि वो सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनें. उन्होंने कम संसाधनों के बावजूद हिम्मत नहीं हारी.

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कंचन ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की. हाईस्कूल की परीक्षा में 80 प्रतिशत मार्क्स और इंटरमीडिएट की परीक्षा में 72 प्रतिशत मार्क्स लेकर आई. इसके बाद भी उन्हें इंजीनियरिंग करने के लिए जिस कॉलेज में दाखिला लेना चाहा, उस इंस्टिट्यूट ने उन्हें कई बार गुजारिश करने के बावजूद लौटा दिया. उनका दाखिला नहीं हो पा रहा था.

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गरीबी की वजह से नहीं हो रहा था एडमीशन

कंचन बताती हैं कि किसी ने अमित सर का नाम उन्हें बताया. उनकी वजह से विजय कुमार सर से मिली. “मेरी आंखों में आंसू देखकर उन्होंने कंप्यूटर साइंस ब्रांच में मेरा दाखिला करवा दिया. पिता की तरह हमारी पूरी पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाई. आज तक एक भी पैसा मेरा खर्च नहीं हुआ.”

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कंचन को मेहनत और संघर्ष का फल भी मिला. उन्हें लाखों के सालाना पैकेज पर सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी मिल गई. कंचन ने बताया कि सर ने पूरा खर्च उठाकर पेड इंटर्नशिप और नौकरी के लिए हैदराबाद भेजा. मां नीलम दीक्षित और पिता संजय कुमार दीक्षित ने भी बहुत सपोर्ट किया. पहली सैलरी से उन्होंने सबसे पहले गीता खरीदी. शिक्षक को भेंट स्वरूप सैलरी भेजी. लेकिन, उन्होंने ये पैसे आशीर्वाद देते हुए लौटा दिए.

कंचन ने बताया कि मैं सबसे पहले अपने किराए के मकान में लगे छप्पर ठीक कराउंगी. बरसात के दिनों में रहना मुश्किल हो जाता है. मैं अपने जैसे गरीब और जरूरतमंद बच्चों की हर तरह से मदद करूंगी. ताकि उनका भी भविष्य उज्ज्वल हो सके.