चोट लगने से दर्द तो सभी को होता है मगर इस दर्द से सीखने वाले चंद लोग ही मिलते हैं. जो अपने दर्द से सीख गया वो पंकज बंगा की तरह दूसरों का दर्द कम करने में लग जाता है. जी हां, ग्रेटर फरीदाबाद के 81 वर्षीय पंकज बांगा को जब बहन के बिछड़ने का दर्द हुआ तो उन्होंने संकल्प ले लिया कि जिस तरह उनकी बहन तड़पी है उस तरह कोई दूसरा नहीं तड़पेगा.
करते हैं कैंसर पीड़ितों की मदद
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ये साल साल 2013 था जब उनकी बहन वीणा गुप्ता कैंसर से पीड़ित पाई गईं. बहन की पीड़ा को देखते हुए उन्होंने बहुत कुछ सीखा. इस दर्द को करीब से महसूस करने के बाद उन्होंने कैंसर पीड़ितों की मदद करने का जिम्मा उठाया. इसके बाद से वह कैंसर पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ा सहारा हैं. मानवता की मिसाल पेश करते हुए 81 वर्षीय पंकज बंगा एम्स सहित अन्य कैंसर इंस्टीट्यूट में जा कर मरीजों की हर तरह से सहायता करते हैं. इस नेक काम में उनकी बेटी उनका पूरा साथ देती हैं.
मानवसेवा के लिए विदेश से लौट आई बेटी
NBT से बात करते हुए पंकज बंगा ने बताया कि उनकी 2 बेटियां हैं. जिनमें से एक बेटी दिव्यांग है और दूसरी बेटी प्रियंका अमेरिका में जॉब करती थी. जब उन्होंने इस मानवीय कार्य में अपना योगदान देने की ठानी तो उनकी बेटी विदेश की नौकरी छोड़ उनके साथ कैंसर पीड़ितों की मदद करने देश लौट आई. पंकज मूलरूप से राजस्थान के रेवाड़ी निवासी हैं.
1995 में नैशनल अकैडमी डिफेंस ऑफ प्रॉडेक्शन में डायरेक्टर पद से रिटायर हुए पंकज फरीदाबाद में आकर बस गए. ये साल 2013 था जब उनकी बहन वीणा गुप्ता को कैंसर हुआ. उन्होंने अपनी बहन का चेकअप दिल्ली एम्स में कराया. इसके बाद साल 2015 में उनका ऑपरेशन हुआ और पता चला कि उन्हें सारकोमा नामक कैंसर है. बहन को कैंसर से तड़पता देख उन्होंने इस रोग के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी.
1 हजार मरीजों की कर चुके मदद
इसके बाद 2018 में उन्होंने सारकोमा कैंसर फाउंडेशन के नाम से एक संस्था का गठन किया. इस संस्था के द्वारा वह अपनी बेटी के साथ मिलकर अन्य लोगों को अपने साथ जोड़ने लगे. यहीं से शुरू हुआ कैंसर पीडितों की मदद का सिलसिला. पंकज बंगा अपनी संस्था के माध्यम से अभी तक करीब एक हजार से अधिक मरीजों की मदद कर चुके हैं. वह मरीजों को अस्पताल ले जाकर चेकअप कराने से लेकर उन्हें रियायती दरों पर दवाएं दिलवाने तक में मदद करते हैं.