महानायकों की प्रेम कहानी: शास्त्री जी का दामन थामे रखने वाली ललिता, मरने के बाद उनकी कार का कर्ज चुकाया

Lal Bahadur Shastri with wife Lalita Shastri

प्रेम कहानियां बस वो नहीं होतीं, जिसमें एक नायक और नायिका अपने प्रेम के लिए दुनिया से जंग करें, अपनों से हारें, प्रेम को जीतें और मिसाल बनें. कुछ प्रेम कहानियां बहुत ही आदर्शमय ढांचे में ढली होती हैं. जहां मान-सम्मान, मर्यादा, विचार सब कुछ परस्पर होता चला जाता है. और फिर एक मुकाम पर आकर वो जीवन यात्रा सफल प्रेम कहानी बन जाती है.

महानायकों की प्रेम कहानियों की इस सीरीज में इस बार हम लेकर आए हैं लाल बहादुर शास्त्री और उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री की वो अनकही सी किस्सों भरी कहानी, जो दुनिया के सामने चर्चा में जरा कम ही आई.

जब भी पूर्व प्रधानमंत्री का जिक्र होता है तो उनके स्वदेशी आंदोलनों और स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने, प्रधानमंत्री बनने, पद से इस्तीफा देने, भारत-पाकिस्तान जंग और फिर अंत में Tashkent में हुई रहस्यमय मौत के बारे में होता है. कुछ जगहों पर उनके प्रेरणादायी किस्से मिल जाते हैं पर उनकी सफलता, उन उपलब्धि और उनके साहस के पीछे अडिग बनी उनकी प​त्नी ललिता की बातें कम हैं.

दहेज में की थी ये अनोखी मांग

Lal Bahadur Shastri With Wife Lalita Shastriterafiq

लाल बहादुर देश की आजादी के लिए जब तन मन से खुद को आंदोलनों में रमाए हुए थे तभी उनके परिवार ने 18 साल का होते ही उन्हें शादी के बंधन में बांध दिया. लाल बहादुर की बारात 16 मार्च 1928 को मिर्जापुर की लालमणि देवी के द्वार पहुंची और विवाह हो गया. लाल के लिए देश पहले था और शादी के बाद भी यही रहा.

उनके करीबी कुलदीप नायर ने एक इंटरव्यू में बताया कि शास्त्री ने शादी के बाद लालमणि से अपने मन की बात कह दी. उन्होंने कहा था कि वे जीवित रहे तो वे जीवनभर उनका साथ निभाएंगे पर जीवित रहने की कोई गारंटी नहीं दे सकते क्योंकि ये देश उनसे कभी भी उनके प्राण मांग सकता है.

लालमणि ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. वो भी इस शर्त के साथ के वे हमेशा उनके साथ होंगी. हर उस जगह जहां वे अपने प्राण लेकर जाएंगे. लाल बहादुर मीरापुर स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक ललिता माता के भक्त थे. उन्होंने दहेज में लालमणि के पिता से मांग की कि वे लालमणि का नाम बदलकर ललिता करना चाहते हैं. बाकि उन्हें ललिता एक जोड़े में ही चाहिए! शादी के दिन ही लालमणि ललिता बनकर सारे प्रस्ताव स्वीकार कर लाल बहादुर शास्त्री की प​त्नी बन गईं.

पहली बार आंदोलन करने पहुंची ललिता

Lal Bahadur Shastri With Wife Lalita Shastricatchnews|Lal Bahadur Shastri With Wife Lalita Shastri

लाल और ललिता के 6 बच्चे हुए. शास्त्री आंदोलनों में हिस्सा लेने के लिए अक्सर शहर से बाहर रहा करते. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शास्त्री 9 साल तक जेल में रहे. इस दौरान ललिता शास्त्री ने ही बच्चों का लालन पालन किया. शास्त्री की जेल में रहने के दौरान ही उनकी बेटी बीमारी पड़ी. ललिता ने उसे बचाने के लिए धन जुटाने की कोशिश की पर घर पर पर्याप्त पैसे नहीं थे. इलाज के आभाव में उसका निधन हो गया. इसके बाद भी ललिता की हिम्मत नहीं टूटी. शास्त्री जी को उसके अंतिम संस्कार के लिए 15 दिन का पैरोल मिला था पर ललिता ने उनसे कहा कि वे अंतिम संस्कार के बाद वापस चले जाएं, क्योंकि जेल में उनके और भी साथी हैं जिन्हें उनकी जरूरत है.

जब लालबहादुर शास्त्री स्वतंत्रता आंदोलन में जी जान से लगे हुए थे, तब ललिता किसी तरह उनकी मदद करना चाहती थीं पर शास्त्री ने बच्चों की खातिर उन्हें घर पर रहने के लिए कहा. फिर भी ललिता सारा काम निपटाकर समय निकाल लेती और आंदोलन में हिस्सा लेकर महिलाओं को जमा कर योजना बनाती.

इसी के तहत उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का हिस्सा बनने की ठानी. उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए दुकानों के बाहर धरना देंगी. फिर एक ऐसी दुकान को निशाना बनाया जो विदेशी कपड़ों के लिए ही मशहूर थी. अपनी साथी महिलाओं के साथ ललिता दुकान के सामने पहुंची. जो भी ग्राहक दुकान के अंदर जाते, वे उसे रोक देतीं. वे ग्राहकों को रोक तो देतीं लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्याबोलें. इस तरह कुछ दिन गुजरे पर आंदोलन का असर नहीं दिखा.

एक दिन उन्होने ये बात अपने पति से कही. ललिता का संकोच शास्त्री भांप गए. उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि तुम मेरा साथ देना चाहती हो और प्रयास कर रही हो. पर जब हम कोई नया कदम उठाते हैं तो प्रारंभ में असमंजस की स्थिति अवश्य उत्पन्न होती है, लेकिन यदि आत्मविश्वास के साथ उस कार्य को करने का निर्णय ले लिया जाए तो फिर कुछ भी मुश्किल नहीं.

आप आत्मविश्वास एवं साहस के साथ लगी रहें, अवश्य सफल होंगी. पति का साथ पाकर ललिता ने एक बार फिर साहस जुटाया और इस बार ललिता और उनके साथियों से ग्राहक इतने प्रभावित हुए कि उनमें से बहुतों ने न सिर्फ स्वदेशी वस्त्र और सामान को अपनाया, बल्कि खुद भी इस आंदोलन में शामिल हो गए.

और जला दिए सारे खत

Lal Bahadur Shastri with wife Lalita Shastriaajtak

जब ​ललिता मां बनी और बच्चे उन्हें अम्मा कहने लगे, तब से शास्त्री भी उन्हें प्रेम में अम्मा ही पुकारा करते. वे ललिता का बहुत सम्मान करते थे. कुलदीप नायर ने अपनी किताब में बताया है कि एक बार रूस में लेनिनग्राद में शास्त्री बोलशोई थियेटर की स्वान लेक बैले प्रस्तुति देखते हुए बहुत असहज हो रहे थे. उन्होंने पूछा कि क्या वो बैले का आनंद ले रहे हैं तो शास्त्री ने बहुत भोलेपन से जवाब दिया कि उन्हें शर्म आ रही है क्योंकि नृत्यांगनाओं की टांगें नंगी हैं और अम्मा बगल में बैठी हुई हैं. अम्मा ये बात सुनकर मुस्कुरा दीं.

जब शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने तब अम्मा उनके साथ हर यात्रा पर जातीं. चाहे देश हो, विदेश, शहर हो या गांव, वे हमेशा अपने पति के साथ साए की तरह रहतीं. पर ताशकेंत के समय ऐसा नहीं हो पाया. इस बार खुद प्रधानमंत्री ने ही ललिता को नहीं जाने के लिए समझाया था. उन्होंने अपनी पत्नी से कहा था कि जनवरी के महीने में वहां बहुत ठंड होगी, ऐसे में उनका जाना सही नहीं रहेगा. उन्होंने ललिता से कहा, ‘वहां के हालात ऐसे हैं कि मुझे हर दिन देर रात तक काम की व्यस्तता रहेगी और मैं तुमको बिल्कुल ही समय नहीं दे पाऊंगा. इससे तुम्हें अकेलापन महसूस होगा और बुरा भी लगेगा. मैं तुम अगली बार अमेरिका यात्रा पर साथ ले जाऊंगा. ललिता भी पति के आश्वासन से संतुष्ट हो गई. इस बाद वे फिर बात नहीं कर पाए. ये पहला मौका था जब वे अपने पति से दूर थीं, इसलिए उन्होंने अपने मन की बातों को खतों में लिखना शुरू किया. वे सारे खत संभाल कर रखती जा रहीं थीं.

1966 में ताशकेंत में भारत-पाकिस्तान समझौते पर दस्तखत करने के बाद शास्त्री बहुत दबाव में थे. पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस कर देने के कारण उनकी भारत में काफी आलोचना हो रही थी. उन्होंने देर रात अपने घर दिल्ली फोन मिलाया. कुलदीप नैयर बताते हैं, ”जैसे ही फोन उठा, उन्होंने कहा अम्मा को फ़ोन दो. उनकी बड़ी बेटी फोन पर आई और बोली अम्मा फ़ोन पर नहीं आएंगी. उन्होंने पूछा क्यों ? जवाब आया इसलिए क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया. वो बहुत नाराज हैं. शास्त्री को इससे बहुत धक्का लगा.

इसके बाद 12 जनवरी को पूर्व प्रधानमंत्री का पार्थिव शरीर भारत पहुंचा. ललिता स्तब्ध थीं. उनके मन में मलाल था कि वे क्यों अपने पति के साथ नहीं गईं. क्यों उन्हें अकेले जाने दिया? काश वो साथ होतीं… ऐसी और भी तमाम बातें उनके मन में थीं और हाथ में थे वो खत जो उन्होंने अपने पति के लिए लिखे थे. उस दिन पूरे देश ने देखा था, ललिता को. वे सारे खत अपने पति की चिता में जलाते हुए. ललिता ने अपने बेटे अनिल से कहा, उनसे अब सारी बातें वहीं जाकर होंगी.

मौत के बाद भी निभाया फर्ज

Smt. Lalita Shastri Cutting The Croptwitter/@IndiaHistorypic

लाल बहादुर शास्त्री का जाना देश के लिए वो खबर थी, जिसने अचानक हालात खराब कर दिए. वो वक्त देश में हरित क्रांति का था, विकास का था पर शास्त्री का यूं चले जाना, उनके पीछे बहुत कुछ अधूरा छोड़ देने जैसा था. हालांकि ललिता ने उनके जाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी. देश में किसानों ने हरित क्रांति के तहत खेतों में बीज बोए थे. उनका उत्साह बना रहे इसलिए महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री ने भी निवास 10 जनपथ के लॉन में बीज बोए. जब शास्त्री ताशकेंत गए तब जाने से पहले उन्होंने अपनी फसल को देखा. फिर वो वापिस नहीं आए.

उनकी मौत के बाद ललिता अप्रैल में दोबारा 10 जनपथ गईं और उनकी बोई हुई पकी फसल को काटा. वो ये काम किसी और से भी करवा सकतीं थीं, पर उन्होंने अपने पति के बोए बीजों को अंकुरित होते देखा, पकते देखा और फिर उन्हें उसी सम्मान से अपने पास रखा, जैसे शास्त्री रखते. ललिता ने एक इंटरव्यू में कहा, अगर वे होते तो खुद फसल काटते. मैं उन्हें जानती थीं इसलिए ये काम मैंने खुद ही किया.

इसी तरह ललिता ने शास्त्री जी की कार का लोन भी चुकाया. पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे अनिल शास्त्री ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब पिता जी प्रधानमंत्री बने तब हमने उनसे कहा कि अब कम से कम हमें एक कार तो ले लेनी चाहिए. आप देश के प्रधानमंत्री हैं, अपने परिवार के लिए इतना तो कर ही सकते हैं. उस ज़माने में एक फ़िएट कार 12,000 रुपए में आती थी. उन्होंने अपने एक सचिव से कहा कि जरा देखें कि उनके बैंक खाते में कितने रुपए हैं? उनका बैंक बैलेंस था मात्र 7,000 रुपए. अनिल याद करते हैं कि जब बच्चों को पता चला कि शास्त्री जी के पास कार खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं तो उन्होंने कहा कि कार मत खरीदिए.

लेकिन उन्होंने कहा कि वो बाकी के पैसे बैंक से लोन लेकर जुटाएंगे. उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से कार खरीदने के लिए 5,000 रुपए का लोन लिया. एक साल बाद लोन चुकाने से पहले ही उनका निधन हो गया. उनके बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी ने सरकार की तरफ़ से लोन माफ करने की पेशकश की लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इसे स्वीकार नहीं किया और उनकी मौत के चार साल बाद तक अपनी पेंशन से उस लोन को चुकाया.

ललिता ने जीते जी, हमेशा लाल का दामन थामे रखा. उनका परिवार संभाला, उनके उसूलों को जीया और अपने जीवन में धारण किया. ललिता ने कभी खुद को या परिवार को अपने पति की कमजोर नहीं बनने दिया. तभी शायद हमारे देश को लाल बहादुर शास्त्री जैसा प्रधानमंत्री मिला.