बेटियों को एक मौका चाहिए फिर वो हर मैदान में आपके साथ खड़ी होंगी. इस बात का उदाहरण भारत की लाखों बेटियों ने हमारे सामने रखा है. समय समय पर इन्होंने बताया है कि इन्हें अगर बांधा ना जाए तो इनकी उड़ान के लिए आसमान भी छोटा पड़ जाएगा. आज एक ऐसी ही बेटी की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं. शहादत एक ऐसी उपलब्धि है जो मौत को भी अमर कर देती है.
जीते जी कोई भी शख्स दुनिया की अरबों की आबादी का एक हिस्सा होता है, लेकिन जब वो अपने देश के लिए अपने प्राणों की अहुति देता है तो वो शहीद बन कर हमेशा के लिए अपना नाम अमर कर जाता है. वैसे तो देश के लिए कई वीरांगनाओं ने अपनी कुर्बान दी. मगर देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए किसी बेटी के नाम के साथ ये शब्द नहीं जुड़ा था. 2015 में राजस्थान की एक बेटी ने बेटियों को शहीद का दर्जा भी दिला दिया.
विजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान के झुनझुनु जिले के सेफरागुवार गांव से संबंध रखते थे. खुद विजेंद्र सिंह भारतीय नौ सेना में लेफ्टिनेंट थे और बाद में मास्टर चीफ़ पैटी ऑफिसर के पद से रिटायर हुए. 1 मई 1988 को इनके घर एक बिटिया ने जन्म लिया. बता नहीं सकते कि उस समय परिवार में इस खबर ने कैसा माहौल बनाया होगा, लेकिन किसी रिश्तेदार ने तो सोचा ही होगा कि बेटा होता तो पिता की तरह नौ सेना में भर्ती हो कर परिवार का नाम रौशन करता. दरअसल, अधिकतर लोगों का भी तो यही सोचना है कि बेटियां कितनी भी आगे बढ़ जाएं, लेकिन बात जब सेना में जाने की आती है तो फिर इनसे बराबरी संभव कहां हो पाती है.
मगर कहते हैं ना वक्त ने अपनी मुट्ठी में क्या छुपा रखा है वो कोई नहीं जानता है. किसे पता था कि ये बिटिया अपने पिता की तरह ही बहादुर बनेगी और उनकी तरह ही नौ सेना में भर्ती भी होगी. समय इन सब बातों हिसाब लगा रहा था. बिटिया का नाम रखा गया किरण. किरण जो अंधेरे के जाने और रौशनी के आने की उम्मीद है. ये किरण भी महिलाओं के लिए एक ऐसे सम्मान को पाने की उम्मीद साबित होने वाली थी, जिस पर दशकों से पुरुषों का कब्ज़ा रहा है. किरण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विशाखापटनम के केंद्रीय विद्यालय से पूरी की तथा साइंस विषय से उनकी ग्रेजुएशन पूरी हुई आंध्रा यूनिवर्सिटी से.
वैसे तो किरण नौ सैनिक परिवार से थीं. इस कारण उन्होंने बचपन से ही नौ सेना में जाने का मन बना लिया था. उन्होंने खुद को बचपन से ही इस तरह से ढाला था कि आगे उन्हें नौ सेना में जाने में कोई दिक्कत ना हो. बावजूद इसके वो खुद को खाली बैठा देखना पसंद नहीं करती थीं. यही कारण था कि भारतीय नौ सेना अकादमी में भर्ती होने से पहले उन्होंने समय का सदुपयोग करते हुए एक प्राइवेट बैंक में नौकरी की. 2010 में किरण आईएनए के लिए चुनी गईं तथा उनकी पोस्टिंग केरल के भारतीय नौसेना अकादमी एझीमाला में हुई.
जीवनसाथी भी मिला नौ सैनिक
हर इंसान चाहता है कि उसे अपने ही प्रोफेशन से जुड़ा जीवनसाथी मिले जो उसकी ड्यूटी का सम्मान करते हुए उसकी दिक्कतों को समझ सके और दूरियों को सह सके. किरण ने भी कभी ना कभी ऐसा ही सोचा होगा और उनका सोचा हुआ पूरा भी हुआ. उन्हें विवेक सिंह छोकर के रूप में उनका जीवनसाथी मिला. विवेक खुद भी नौ सैनिक थे. इस तरह राजस्थान की बेटी हरियाणा कुरथला की बहू बन गईं. अब वो पूरी तरह से नौ सनिकों के परिवार से हो चुकी थीं. लेफ्टिनेंट विवेक के पिता भी नौ सेना में थे तथा उनकी मां सुनीता छोकर उस समय अपने गांव की सरपंच थीं.
अब किरण के पास सब कुछ था. वो एक ज़िंदादिल इंसान थीं. किरण को उड़ान भरने का शौख था. जब वो ड्यूटी पर नहीं होती थीं तब अपने अन्य सभी शौक पूरे करती थीं. उन्हें संगीत सुनने और डांस करना अच्छा लगता था. पढ़ने में उन्हें प्रसिद्ध लेखक निकोलस स्पार्क्स बहुत पसंद थे. किरण ने उनकी सभी किताबें पढ़ी थीं तथा उनकी किताबों पर बनी सभी फिल्में भी देखी थीं. 2015 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर पहली बार महिला मार्चिंग दल ने हिस्सा लिया था. किरण शेखावत को इस दल का हिस्सा बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ.
किरण ने 5 जुलाई 2010 को इंडियन नेवल एयर स्क्वाड्रन ज्वाइन किया था. इस स्क्वॉड्रन को कोब्राज़ के नाम से जाना जाता है. अपने 5 साल के करियर में किरण देश के कई नेवल स्टेशनों पर पोस्टेड रहीं. उनकी अंतिम पोस्टिंग गोवा में हुई थी. यही वो जगह थी जहां किरण की हंसती खेलती ज़िंदगी ने विराम ले लिया. इंटेलीजेंस युद्धकला में अनुभव प्राप्त करने के बाद किरण की ड्यूटी ये थी कि वह इंटेलीजेंस समिक्षा के लिए पर्यावरण चार्ट तैयार करें तथा अन्य सभी ज़रूरी मापदंडों की सही से समीक्षा करें.
फिर एक प्लेन क्रैश और सब खत्म!
अपनी इसी ड्यूटी को पूरा करने के लिए वह 24 मार्च 2015 को डॉर्नियर विमान में सवार हुई थीं. उन्हें क्या पता था कि यह विमान उनकी हंसती खेलती ज़िंदगी पर विराम लगाने के साथ साथ उन्हें एक नया सम्मान दिला जाएगा. दुर्भाग्य से यह विमान इसी रात गोवा में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. विमान इस तरह से क्रैश हुआ कि दो दिन तक किरण का कहीं कोई पता ना चल. दो दिन तक उनकी तलाश जारी रही और फिर 26 मार्च को किरण का शव बरामद हुआ. 29 मार्च को उनका पार्थिव शरीर उनके ससुराल कुरथला गांव लाया गया. 22 साल की उम्र में नौ सेना में भर्ती होने वाली किरण ड्यूटी पर शहीद होने वाली पहली महिला सैनिक बन चुकी थीं.
जब किरण का पार्थिव शरीर कुरथला आया तो हर किसी ने आंसुओं से उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी. किरण और विवेक अपनी अपनी ड्यूटी के कारण एक साल से ज़्यादा वक्त से मिले नहीं थे. किरण अब विवेक के साथ रहना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने सारे इंतज़ाम भी कर लिए थे. मात्र दस दिन बाद उन्हें कोचि में ज्वाइन करना था. 23 मार्च को इसी संबंध में उन्होंने अपनी सास सुनीता देवी से 20 मिनट बात की थी. सुनीता समान पैक करने में उनकी मदद के लिए गोवा जाने वाली थीं लेकिन उससे पहले ही इस खबर ने उनके परिवार को दुख के सागर में डुबो दिया.
बताते चलें कि किरण की जेठानी राजश्री कोस्ट गार्ड की सर्वप्रथम वुमेन पायलट हैं. वो नागौर निवासी राजश्री ही थीं, जिन्होंने किरण के शहीद हो जाने पर उनके अंतिम संस्कार के समय उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया था. राजश्री के अनुसार ये उनके जीवन का सबसे मुश्किल सैल्यूट था. एक 22 साल की लड़की, जिसने बचपन से अपने पिता की तरह नौ सेना में जाने का सपना देखा और उसे पूरा किया. जिसके पिता, पति और ससुर नौ सेना में रहे, जिसने पहली शहीद महिला सैनिक होने का सम्मान प्राप्त किया उसके सम्मान में राजस्थान सरकार अभी तक कॉलेज तो दूर एक खेल स्टेडियम तक ना बनवा पाई.
लोगों की यादों में जिंदा हैं किरण
ये शिकायत है किरण शेखावत के परिवार की. किरण की शहादत के दो साल बाद झुनझुनु के तत्कालीन जिला कलेक्टर किरण के पैतृक गांव सेफरागुवार उनकी तृतीय पुण्यतिथि कार्यक्रम में आए थे. राजस्थान पत्रिका के अनुसार उस समय कलेक्टर साहब ने किरण के नाम से एक खेल स्टेडियम की घोषणा की थी. पंचायत ने मैदान के लिए भूमि दे भी दी, लेकिन काम शुरू नहीं हुआ. यह फाइल शिक्षा बोर्ड कार्यालय में अटकी हुई थी. वहां जाने पर अधिकारियों ने खेल मैदान के नामकरण से मना कर दिया. वहीं किरण के ससुराल कुरथला में उनका पूरा सम्मान किया गया. उनके नाम से शहीद स्मारक, पार्क तथा मार्ग का नामकरण कर दिया गया.
तो ये थी देश की पहली शहीद महिला सैनिक की कहानी. किरण शेखावत जैसी शख्सियतों के लिए असल सम्मान है कि उन्हें हमेशा याद रखा जाए. कहते हैं राजस्थान के झुनझुनु जिले ने देश को सबसे ज़्यादा सैनिक दिए हैं इसके साथ ही यही वो वीरभूमि है, जहां के सबसे ज़्यादा जवान शहीद हुए हैं. किरण शेखावत ने झुनझुनु के कंधे पर एक और सितारा जड़ दिया. यही वो बातें हैं जो किरण को हमेशा के लिए लोगों के दिलों में ज़िंदा रखेंगी. हम नमन करते हैं देश की इस बेटी को जिनसे अपने कर्तव्य के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी.