कोर्ट ने कहा कि अगर दो महीने के भीतर मुआवजा नहीं दी जाती है तो नौ फीसदी सालाना ब्याज के साथ धनराशि देनी होगी। कोर्ट ने छात्र के सिक्युरिटी मनी को भी नौ फीसदी सालाना ब्याज के साथ लौटाने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने छात्र सत्यम वर्मा की याचिका पर किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक दिव्यांग छात्र को सीट आवंटित होने के बावजूद दाखिला न दिए जाने के मामले में कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को दो महीने में इस छात्र को 10 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। सरकार यह धनराशि इसके लिए जिम्मेदार पाए जाने वाले अधिकारियों से वसूल सकती है।
कोर्ट ने कहा कि अगर दो महीने के भीतर मुआवजा नहीं दी जाती है तो नौ फीसदी सालाना ब्याज के साथ धनराशि देनी होगी। कोर्ट ने छात्र के सिक्युरिटी मनी को भी नौ फीसदी सालाना ब्याज के साथ लौटाने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने छात्र सत्यम वर्मा की याचिका पर किया।
याची का कहना था कि प्री आयुष टेस्ट 2016 में उसकी कैटेगारी रैंक 5,336 आई थी। मेडिकल बोर्ड द्वारा उसे 50 से 70 प्रतिशत तक विकलांग पाया गया था। इसके बाद उसने 15 नवंबर 2016 को द्वितीय काउंसिलिंग में भाग लिया और उसे साहू रामनारायण मुरली मनोहर आयुर्वेदिक कॉलेज, बरेली में सीट आवंटित कर दी गई। जब छात्र वहां दाखिला लेने पहुंचा तो उसे बताया गया कि वहां की सभी सीटें पहले ही भर चुकी हैं।
वहीं याचिका पर जवाब देते हुए कॉलेज की ओर से कहा गया कि तत्कालीन निदेशक आयुर्वेद द्वारा काउंसिलिंग बोर्ड को बताया गया था कि याची ने प्रवेश लेने से मना कर दिया था। याचिका का राज्य सरकार और महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा की ओर से विरोध किया गया। न्यायालय ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याची के लिए खाली रखी गई सीट दूसरे को आवंटित कर गलत किया गया। चिकित्सा शिक्षा व उक्त कॉलेज राज्य सरकार के अंग हैं। लिहाजा उनके द्वारा की गई गलती की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की ही है।