शिमला, 05 अक्तूबर : लंपी वायरस की चपेट में आने से राजधानी शिमला में बीते तीन माह के दौरान 427 गौवंश काल का ग्रास बन चुके हैं। परंतु पशुपालकों को मुआवजा के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं मिल पाई है। दूसरी ओर पशुपालन विभाग दवाईयों और स्टाफ की कमी से जूझ रहा है।
बता दें कि प्रदेश सरकार ने लंपी वायरस को महामारी घोषित करने के लिए मामला भारत सरकार के गृह मंत्रालय के साथ उठाया गया है। पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने विधानसभा में लंपी वायरस से मरने वाले पशुओं के पालकों को तीस हजार मुआवजा देने का आश्वासन दिया था।
विभागीय अधिकारी ने बताया अगर केंद्र सरकार लंपी वायरस को महामारी घोषित करता है। सरकार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से मुआवजा देने का प्रावधान करेगी। दुधारू पशुओं के बिमार होने से अनेक किसानों को दो जून की रोटी के लाले पड़ने लगे जिनका कारोबार दूध बेचने पर निर्भर था।
विभागीय सूत्रों के अनुसार जिला में अब तक 6097 पशु लंपी वायरस अर्थात एलएसडी की चपेट में आ चुके हैं, जिनमें से 427 गौवंश उचित उपचार न मिलने से मर चुके है, जबकि 2746 पशु विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बीमारी की हालत में है। जुन्गा तहसील के अनेक पशुपालकों ने बताया कि लंपी वायरस दिन प्रतिदिन बड़ी तेजी के साथ फैल रहा है। विभाग के पास दवाओं व स्टाॅफ की कमी है। एक-एक वेटरनरी फार्मासिस्ट के पास करीब दो से तीन पंचायतें दी गई है। आने जाने के लिए वाहन की कोई व्यवस्था नहीं है।
वेटरनरी फार्मासिस्ट मौके पर पहुंचकर बाजार से लाने के लिए दवाएं लिखते हैं। जब तक पशु पालक बाजार से दवाएं लेते हैं तब तक पशुओं की हालत दयनीय हो जाती है। उपनिदेशक पशुपालन विभाग शिमला डाॅ. सवर्ण सेन ने बताया कि जिला में 73050 पशुओं का टीकाकरण कर दिया गया है, जबकि जिला में पशुओं की आबादी करीब एक लाख 70 हजार है। बताया जा रहा है कि विभाग की ओर से इस बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।