एम. विश्वेश्वरय्या: जिनके सामने अंग्रेज भी झुकाते थे सिर, भारत के विकास में रहा अहम योगदान

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एम विश्वेश्वरय्या, यानी मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या भारत के एक ऐसे दिग्गज का नाम है, जिनके सामने अंग्रेज भी सिर झुकाते थे. 15 सितंबर, 1861 यह वह तारीख है, जब विश्वेश्वरैया कर्नाटक के कोलार जिले में पड़ने वाले चिक्काबल्लापुर तालुक में पैदा हुए. उन्होंने अपनी प्रतिभा से पूरी दुनिया को प्रभावित किया. बड़े होकर वो न सिर्फ़ इंजीनियर बने, बल्कि विद्वान और राजनेता के रूप में जाने गए. वो मैसूर के दीवान भी रहे. गुलामी के दौर में भारत के विकास में एम. विश्वेश्वरय्या का अहम योगदान रहा.

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उन्हें न सिर्फ़ 1955 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया, बल्कि ब्रिटिश इंडियन एम्पायर के नाइट कमांडर से भी नवाज़ा गया. मांड्या ज़िले में बने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण, हैदराबाद शहर को बाढ़ से बचाने का सिस्टम देने,  भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फ़ैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ़ मैसूर समेत कई संस्थानों के लिए उन्हें याद किया जाता है.

विश्वेश्वरैया को कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है. वो 32 साल के थे, जब उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने का प्लान तैयार किया, जो सभी को पसंद आया. विश्वेश्वरैया के जीवन से जुड़ा एक किस्सा मशहूर है. कहते हैं एक यात्रा के दौरान वो अंग्रेजों के साथ थे. अंग्रेजों ने अनपढ़ समझकर उनका मजाक उड़ाया था.

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जवाब में विश्वेश्वरैया एकदम शांत रहे है और ट्रेन की चेन खींच दी. फलस्वरूप ट्रेन वहीं रुक गई. यात्रियों के सवाल पर उन्होंने बताया कि करीब 220 गज की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है. यही कारण है कि उन्होंने चेन खींची है. बाद में उनका अनुमान सही साबित हुआ. पटरी के नट-बोल्ट बिखरे पड़े थे. इस घटना के बाद अंग्रेज यह देखकर दंग रह गए और विश्वेश्वरैया से माफी मांगी थी. 102 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा. उम्र के आखिरी पड़ाव तक वह अपने काम के प्रति समर्पित रहे.