Madhya Pradesh: एमपी में हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई ‘फ्लॉप’, 150 में पांच फीसदी सीटें भरीं, MBBS का क्या होगा?

Engineering In Hindi: एमपी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में शुरू की गई थी। छात्र इसमें रुचि लेते नहीं दिखाई दे रहे हैं। 150 सीटों में से सिर्फ पांच फीसदी पर ही छात्रों ने एडमिशन लिया है। ऐसे में छात्र और शिक्षक दोनों ही इससे चिंतित हैं।

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symbolic picture- सांकेतिक तस्वीर

भोपाल: हिंदी में इंजीनियरिंग (engineering in hindi) की पढ़ाई के एमपी सरकार के अभियान को बल नहीं मिल रहा है। प्रदर्शन निराशाजनक है। इसे ठीक करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए छात्र भी बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं है। इस वर्ष प्रस्तावित 150 हिंदी तकनीकी सीटों में से पांच फीसदी से भी कम सीटें भरी गई हैं। यहां तक कि शिक्षक भी तकनीकी विषय पढ़ाने के स्थानीय तरीके से चिंतित हैं। इससे इतर 16 अक्टूबर से राज्य में एमबीबीएस की पढ़ाई भी हिंदी में शुरू हो गई है। ऐसे में यह देखा जाना है कि हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई में कितने छात्र दिलचस्पी दिखाते हैं। इंजीनियरिंग क्षेत्र में सरकारी कोशिशों की हार हुई है।

शिक्षकों और शिक्षा प्रशासकों में यह भावना है कि इंजीनियरिंग विषयों को हिंदी में पढ़ाने का प्रयास जल्दबाजी में किया गया है। पुस्तकों को अनुवाद किया गया है लेकिन अधिकांश शिक्षक परेशान हैं क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी माध्यम में अपनी डिग्री प्राप्त की है। कक्षा में हिंदी की चुनौती को स्वीकार करने में सहज नहीं हैं। कुल मिलाकर फर्स्ट ईयर के लिए 20 इंजीनियरिंग किताबों का हिंदी में अनुवाद किया गया है, जिसमें यूजी कक्षाओं के लिए नौ और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए 11 शामिल हैं।

हिंदी में कैसे पढ़ाएंगे
वहीं, एक नवंबर से शुरू हुए सत्र से पहले शिक्षक इस बात को लेकर चिंतित थे कि वे अपने विषय को हिंदी में कैसे पढ़ाएंगे। आखिरकार, यह छात्रों का करियर दांव पर है और किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एक बड़ा बोझ है, जिसे हिंदी में अपनी डिग्री नहीं मिली है। एक वरिष्ठ संकाय सदस्य ने कहा कि अंग्रेजी इंजीनियरिंग की किताबों का हिंदी में अनुवाद करते समय अधिकारियों ने सबसे बड़ी गलती की है कि उन्होंने तकनीकी शब्दों का भी अनुवाद किया है, जो छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए परेशानी पैदा करेगा। इसे लेकर हमलोग बहुत आश्वस्त महसूस नहीं करते हैं।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बल और गुरुत्वाकर्षण बल जैसे तकनीकी शब्दों का अनुवाद करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इन शब्दों को हर कोई समझता है। दुर्भाग्य से इन पुस्तकों में तकनीकी शब्दों का शास्त्रीय हिंदी में अनुवाद किया गया है और यह कक्षा शिक्षण को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को पढ़ाने के लिए पहले हिंदी तकनीकी शब्दों को सीखना होगा।

प्रोफेसर भी उठा रहे सवाल
यहां तक कि किताबों के शीर्षकों का भी अनुवाद किया गया है। एक अन्य प्रोफेसर ने उदाहरण देते हुए कहा कि ‘इंजीनियरिंग वर्कशॉप प्रैक्टिस’ की किताब का हिंदी में अनुवाद ‘अभियांत्रिकी कर्मशाला अभ्यास’ के रूप में किया गया है। अब मुझे बताओ कि नाम बदलकर क्या हासिल किया गया है। उन्हें तकनीकी शब्दों को अंग्रेजी में रखना चाहिए था, जिस तरह से यह चिकित्सा पुस्तकों के साथ किया गया है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कई शिक्षकों ने कहा कि हिंदी में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले छात्रों को उच्च अध्ययन में या अपनी नौकरी में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जहां अंग्रेजी तकनीकी शब्द का ज्यादा उपयोग होता है। मल्टी नेशनल कंपनियों में नौकरी पाना भी मुश्किल हो सकता है।

इंजीनियरिंग के छात्रा ने कहा कि अपनी भाषा में तकनीकी पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले देशों ने तकनीकी शर्तों के साथ छेड़छाड़ नहीं की है। हमारे नीति निर्माताओं को इसे समझने की जरूरत है। वहीं, शिक्षकों ने कहा कि ओरिएंटेशन के दौरान, हम प्रथम वर्ष के छात्रों से पूछेंगे कि क्या वे हिंदी को चुनना चाहते हैं। अगर 10 छात्र भी तैयार हो जाएं तो हम उन्हें हिंदी में पढ़ाएंगे। बाकी एक नीतिगत निर्णय है और मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता। पता चला कि 10 छात्र भी नहीं थे, जिन्होंने हिंदी पाठ्यक्रम लिया था।