महिलाओं की मजबूरी से शुरू हुआ Maggi का सफर, विदेश से भारत पहुंचा और बना लिया 1000 करोड़ का बिजनेस

नेस्ले इंडिया द्वारा मैगी के दाम बढ़ाने के बाद मैगी लवर्स परेशान हैं. बताया जा रहा है कि मैगी के दाम में 9 से 16% तक की वृद्धि हुई है. यानी कि अब से 12 रुपये वाली मैगी का दाम 14 रुपये होगा. वहीं 140 ग्राम वाले पैकेट की कीमत 3 रुपये बढ़ेगी और 96 रुपये वाली मैगी 105 रुपये में बिकेगी.

मार्केट में कई तरह के नूडल्स मौजूद हैं फिर भी लोगों को मैगी से इतना प्यार है कि इसके दाम बढ़ने को राशन की कीमत बढ़ने जितना महत्व दिया जा रहा है. बहुत से ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें मैगी तो खूब पसंद होगी लेकिन इसके इतिहास के बारे में शायद ही वे जानते होंगे. जैसे कि इसका नाम मैगी क्यों है? इसे कब और क्यों बनाया गया? ये भारत में कब आई? हम आज आपको ऐसे बहुत से सवालों के जवाब देने जा रहे हैं.

सरनेम को दिया ब्रांड का नाम 

आपको जानकर हैरानी होगी कि मैगी किसी कंपनी या ब्रांड का नाम नहीं बल्कि एक व्यक्ति का सरनेम है. ये व्यक्ति थे स्विट्जरलैंड के रहने वाले जूलियस माइकल जोहानस मैगी. इन्होंने ही साल 1872 में अपने नाम पर कंपनी का नाम रखा था. मैगी बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. दरअसल आज स्वाद के लिए खाई जाने वाली ये मैगी किसी जमाने में एक मजबूरी के कारण बनाई गई थी. 

एक मजबूरी ने दिया मैगी को जन्म  

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जानकार बताते हैं कि ये वो दौर था जब स्विट्जरलैंड में इंडस्ट्रियल क्रांति अपने चरम पर थी. महिलाओं को फैक्ट्री में काम करने का अधिकार मिल चुका था लेकिन उनके घर की जिम्मेदारियां भी उनके साथ ही चल रही थीं. उन्हें फैक्ट्रियों में लंबे समय तक काम करने के बाद घर जाकर खाना भी बनाना होता था लेकिन इसके लिए उनके पास समय की कमी रहती थी. महिलाओं की इस समस्या को स्विस पब्लिक वेलफेयर सोसायटी ने भांप लिया था और वे इन महिलाओं की इस समस्या का निवारण करना चाहते थे. 

ऐसे में स्विस पब्लिक वेलफेयर सोसायटी ने जूलियस मैगी की मदद ली और इस तरह एक मजबूरी के कारण जन्म हुआ आज की लोकप्रिय मैगी का. इस मैगी में जूलियस का बड़ा योगदान था इसलिए इस प्रोडक्ट का नाम उन्होंने अपने सरनेम पर रख दिया. ये साल 1897 था जब सबसे पहले जर्मनी में मैगी नूडल्स पेश किया गया था.

आज नूडल्स के रूप में मशहूर मैगी शुरुआती दौर में प्रोटीन से भरपूर खाना और रेडीमेड सूप के रूप में बेची जाती थी. इसके बाद जूलियस को उनके एक फिजिशियन दोस्त फ्रिडोलिन शूलर ने दो मिनट में तैयार होने वाली मैगी बनाने का सुझाव दिया. जूलियस ने दोस्त की मदद से ये नूडल्स तैयार किये, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया. 

बढ़ने लगा मैगी का दायरा 

धीरे धीरे मैगी का दायरा बढ़ने लगा और 1912 तक ये अमेरिका और फ्रांस जैसे कई देशों तक पहुंच गई. हालांकि जूलियस मैगी अपने इस उत्पाद की तरक्की न देख सके क्योंकि इसी साल उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के कारण मैगी के व्यापार में आ रही तेजी थम गई. हालांकि ये बंद नहीं हुआ मगर इसमें किसी तरह की तेजी भी नहीं आई. लंबे समय तक रेंगते हुए आगे बढ़ने वाली मैगी को फिर से रफ्तार तब मिली जब इसे 1947 में नेस्ले ने खरीद लिया. इसके बाद तो मैगी की ब्रांडिंग और मार्केटिंग ने मैगी को हर घर-घर की रसोई तक पहुंचा दिया.

भारत में मैगी की एंट्री 

स्विट्जरलैंड की कंपनी Nestle के साथ मैगी का विलय होने के काफी सालों बाद, 1984 में Nestle इंडिया लिमिटेड ने मैगी को भारत में लॉन्च किया. हालांकि तब तक किसी को इस बात का अंदाज भी नहीं था कि आने वाले समय में ये मैगी करोड़ों लोगों की पसंद बन जाएगी. 

इस मैगी को लोकप्रिय बनाने में नेस्ले इंडिया का बहुत बड़ा योगदान है. नेस्ले इसके विज्ञापन पर ही लगभग 100 करोड़ रुपये खर्च करती है. शुरुआत में नेस्ले के मैगी ब्रांड के नूडल्स लोगों को ज्यादा न लुभा सके. ये बस अमीरों का नाश्ता बन कर रह गया लेकिन समय के साथ जब लोगों का रहन सहन और खान पान बदला तो मैगी सबकी फेवरेट बन गई. 1999 के बाद से इस 2 मिनट में तैयार होने वाली मैगी का राज हर घर के किचन में चलने लगा. 

मैगी की लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत में नेस्ले समूह के कुल प्रॉफ़िट में मैगी ब्रांड की करीब 25% हिस्सेदारी है और इसका सालाना आंकड़ा करीब 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा पहुंच चुका है.