महाकाल लोक: आईएएस अफसर का दावा, सच है महाकाल की अलौकिक शक्ति और चमत्कार, दिए प्रमाण

उज्जैन. साल 1996 में मुझे महाकाल मंदिर के प्रशासक का दायित्व मिला. यह दायित्व उस दुर्घटना के बाद मिला था, जिसमें भगदड़ की वजह से 34 श्रृद्धालुओं की मौत हो गई थी. मेरे सामने चुनौती थी भक्तों में व्यवस्था को लेकर विश्वास कायम करना. लिहाजा, यहां बतौर प्रशासक कई काम शुरू किए गए. इसी दौरान महसूस हुआ कि काम में जब भी कठिनाई होती, तब ऐसे संयोग बनते कि अपने आप परेशानियां दूर हो जाती है.

मैं नास्तिक तो नहीं लेकिन ऐसा आस्तिक जरूर हूं, जो कि कर्मकांडों में यकीन नहीं रखता है लेकिन ईश्वर में आस्था जरूर है. लिहाजा, शुरू में मैंने इन संयोगों को संयोग ही माना. लेकिन जब बार-बार ऐसा होने लगा तो फिर यह संयोग भगवान महाकालेश्वर की अलौकिक शक्तियां लगने लगे. यह शक्तियां व्यक्तिगत स्तर से लेकर प्रशासनिक कार्यों में महसूस हुई. मुझे मानना ही पड़ा कि यह चमत्कार हैं.

किसी देवदूत ने भांजे को मुंबई से वापस भेजा
सितंबर 1996 में महाकाल की सवारी नगर भ्रमण के बाद रात 11 बजे वापस आई. फिर शयन आरती के बाद मंदिर को बंद किया जा रहा था. तभी एक कर्मचारी मुझे ढूंढ़ते हुए आया और कहा कि जबलपुर में आपकी दीदी को अर्जेंट बात करनी है. बात की तो पता चला कि मेरा 17 वर्षीय भांजा रॉकी दोपहर से घर नहीं आया है. मैं बेहद दुखी हो गया. गाड़ी में बैठते-बैठते मंदिर के शिखर की ओर देखा और उलाहना के स्वर में कहा कि वाह भगवान महाकाल जी, आपने अच्छी सेवा कराई. मैं जबलपुर पहुंचा और भांजे को ढूंढने के लिए एसपी से लेकर तमाम अफसरों से मिला. इसी बीच दीदी का फोन एसपी के स्टेनो के पास आया. उन्होंने बताया कि रॉकी आ गया. रॉकी से मैंने पूछा तो बताया कि वह पिता की मदद करने के लिए मुंबई में काम करने चला गया था. स्टेशन पर उतरते ही एक टैक्सी वाला तुरंत ही रॉकी की मनोदशा को ताड़ गया. उसे अपनी टैक्सी में बैठाया और थोड़ी दूर एक सिग्नल पर कहा कि यहां बच्चे जूते पॉलिश कर रहे हैं. क्या यह काम करोगे? फिर ऐसे ही होटल में बर्तन मांजने से लेकर कई काम बताए. रॉकी को अपनी गलती का अहसास हुआ. लेकिन वापस जाने के पैसे भी नहीं थे. ऐसे टैक्सी ड्राइवर ने ही जबलपुर की टिकट कटाई और खाने के लिए भी पैसे दिए. यह वाक्या सुन मैं नि:शब्द था. एक देवदूत ने भांजे को सही राह दिखलाई. यह महाकाल का चमत्कार नहीं था तो क्या था?

वीडियोग्राफी करने वाला भक्त को मिला न्याय, हो गया बरी
मंदिर में दर्शनार्थियों समेत अन्य लोगों की गतिविधियों के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग का फैसला लिया गया. इसका टेंडर एक युवक ने बहुत ही कम रेट में लिया. रेट इतने कम थे कि खर्च निकलना भी मुश्किल था. फिर भी, वह युवक पूरे मनोयोग से काम करता था और दिन भर मंदिर परिसर में रहता था. एक बार मैंने कम रेट और महाकाल की सेवा पर पूछा तो कहा कि मेरे पास वक्त बहुत कम है, इसलिए महाकाल की सेवा कर रहा हूं. वक्त कम क्यों है तो उसने कहा कि कोर्ट में एक मामला चल रहा है, जिसमें जल्द ही सजा हो जाएगी. मैंने फिर पूछा- मामला क्या है? युवक ने कहा कि उसे एक लड़की से प्रेम हो गया था. हम दोनों जिंदगी बसाने की खातिर घर से भाग गए. जब भाई के पास पहुंचे तो उन्होंने जिंदगी की मुश्किलों के बारे में समझाया. मैंने लड़की को उसके घर छोड़ दिया लेकिन वह मन से राजी न हुई. उसके घरवालों ने पुलिस में मामला दर्ज करा दिया और लड़की ने भी नाराजी में मेरे खिलाफ गवाही दे दी. मैं उस युवक को क्या दिलासा देता लेकिन मुंह से अचानक ही निकल गया कि तुम महाकाल की पूरी श्रृद्धा से सेवा कर रहे हो, तुम्हें जरूर न्याय मिलेगा. श्रावण मास खत्म होते-होते वह युवक मंदिर में दिखना बंद हो गया. फिर दो-तीन महीने बाद युवक मेरे ऑफिस में आया और कहा कि साहब आपकी बात सच हो गई. महाकाल की कृपा से मैं बरी हो गया हूं. ऐसे ही कई मामले मैंने अपने प्रशासक रहने के दौरान सामने आए.

रात में अचानक आठ किलो चांदी आई
महाकाल मंदिर में हम नहीं, बल्कि बाबा ही सब करवाते हैं. यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि इसके कई प्रत्यक्ष प्रमाण मैंने देखे हैं. इन प्रमाणों को मैंने अपनी पुस्तक में संकलित किया है. 1996 की दुर्घटना के बाद मंदिर प्रांगण को सुरक्षा के लिहाज से विकसित करने का काम शुरू किया गया. लेकिन दिक्कत थी फंड की. काम मंदिर में मिले दान से ही किए जाते थे. यह फंड इतना नहीं था कि विकास कार्य के लिए पूरा पड़े. यह महाकाल की ही कृपा थी कि जब भी ऐसे मौके आते तो दानदाता अचानक से आकर रुके काम पूरे करवा देते. एक बार मंदिर में मूर्तियों पर रजत चढ़ने के बाद लगा कि गर्भगृह के फाटक को भी चांदी युक्त कर दिया जाए. रजत मूर्तियों के निर्माता माणिकचंद्र जांगिड़ भी आए हुए थे. उन्होंने कहा कि 8 किलो चांदी लगेगी. मैंने उनसे काम शुरू करने के लिए कह दिया. एक दिन अचानक शाम 7 बजे वे मेरे पास आए और बोले साहब काम पूरा हो गया है. अब मुझे 8 किलो चांदी दे दीजिए. मैंने उसकी तरफ से आश्चर्य से देखते हुए कहा कि शाम को बता रहे हो, अचानक से कहां से इंतजाम करूं. मैंने चांदी देने का वादा किया था लेकिन तुरंत का तो नहीं कहा. माणिक ने कहा कि सुबह जयपुर निकलना है क्योंकि वहां भतीजी की सगाई है और उसकी के लिए चांदी की जरूरत है. मैं पशोपेश में पड़ गया और इस समस्या से निपटने के उपाय खोजने लगा. कई फोन लगा दिए. रात के नौ बज गए. तभी मंदिर का कर्मचारी कमल आया और एक थैला देते हुए कहा कि इसे इंदौर से राजेश मंगल जी ने भेजा है. उसमें दस किला चांदी थी. मैं चमत्कृत था कि राजेश मंगल जी से बात भी नहीं हुई और न ही इस प्रकरण की जानकारी थी. बाद में पता चला कि राजेश को अंदर से प्रेरणा हुई कि मंदिर में तुरंत चांदी दान करनी है. मैंने माणिक को चांदी दी तो उसने कहा- आप नाहक परेशान हो रहे थे, देखो महाकाल ने खुद अपना इंतजाम कर लिया. इसी तरह से वेणु गोपाल धूत जी से सीसीटीवी, बड़ी से टीवी के लिए अचानक 22 हजार रुपए का ड्राफ्ट आना, और तो और रूद्रयंत्र की स्थापना के लिए संतों से दान व मंदिर के शिखर कलश पर सोने की परत चढ़ाने के लिए अचानक से दान मिलने जैसी कई चमत्कारी घटनाएं हुईं.

मेडिकल के क्षेत्र में भी चमत्कार
मेरी दो बेटिया हैं. दूसरी बेटी के वक्त डॉक्टर ने केस शीट में लिख दिया कि इसके बाद बच्चा पैदा करने का रिस्क न लिया जाए. मेरे मन मे दो संतानों के जन्म से ही पूर्ण संतुष्टी का भाव था, लेकिन न जाने कहां से मेरी धर्मपत्नी महाकाल से एक बेटे के लिए प्रार्थना कर आईं. चिकित्सीय जटिलताएं ऐसी थी कि गर्भधारण ही संभव नहीं था. लेकिन जब ऐसा हो गया तो मुझे फिर आगे की चिंता हुई. कई-कई जांचे हुईं. ऐसी मेडिकल परिस्थितियां उत्पन्न हुई कि डॉक्टरों को कहना पड़ा कि बड़ी गड़बड़ हो गई है. लेकिन फिर चमत्कार हुआ. जब बेटे का जन्म हुआ तो डॉक्टर ने कहा कि यह बच्चा तुम्हें महाकाल ने दिया