महामंडलेश्वर शारदानंद सरस्वती ने दैवीय सम्पद मंडल का विस्तार पूरे भारत में किया। हर प्रदेश में आश्रमों की स्थापना की। उनके निधन से अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गई है।
मैनपुरी के एकरसानंद आश्रम के महंत महामंडलेश्वर शारदानंद सरस्वती ब्रह्मलीन हो गए। रविवार की रात उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। वह लंबे से अस्वस्थ चल रहे थे। 80 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ। रात में ही उनका पार्थिव शरीर आश्रम लाया गया। शारदानंद सरस्वती के निधन की खबर मिलते ही जनपद में शोक की लहर दौड़ गई। सोमवार सुबह से ही उनके अंतिम दर्शन करने के लिए लोग पहुंच रहे हैं।
शारदानंद सरस्वती बाल्यकाल में स्वामी भजनानंद के पास आए थे। वह अपना नाम और पता भी नहीं बता सके। भजनानंद ने उन्हें आश्रम में रख लिया। आश्रम में ही शिक्षा दीक्षा दिलाई। बड़ा होने के बाद स्वामी भजनानंद ने उन्हें वेदों के अध्ययन के लिए काशी भेज दिया। काशी से वापस आने पर भजनानंद ने बालक के विरक्त स्वभाव को देखकर वर्ष 1976 में ऋषिकेश में गंगा तट पर संन्यास की दीक्षा दे दी। वेदांत की शिक्षा के बाद वह सन्यास ग्रहण करते ही शारदानंद सरस्वती हो गए।
दैवीय सम्पद मंडल का किया विस्तार
भक्ति की ओतप्रोत शारदानंद सरस्वती ने दैवीय सम्पद मंडल को सूर्य के प्रकाश की भांति पूरे भारतवर्ष में फैलाना शुरू कर दिया। उन्होंने गुरु आशीर्वाद से कई आश्रम बनवाए। वर्ष 1988 में स्वामी भजनानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने पर शारदानंद सरस्वती को महामंडलेश्वर की पदवी से विभूषित कर दिया गया। महामंडलेश्वर बनने के बाद दैवीय सम्पद मंडल का विस्तार पूरे भारत में किया। हर प्रदेश में आश्रमों की स्थापना की।
महामंडलेश्वर हरिहरानंद ने बताया कि महामंडलेश्वर शारदानंद सरस्वती महाराज कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। उनका उपचार गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में चल रहा था। रविवार रात करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। एकरसानंद आश्रम में शारदानंद सरस्वती के अंतिम दर्शन करने दूर-दराज से लोग आश्रम में पहुंच रहे हैं। शाम चार बजे श्री एकरसानन्द आश्रम परिसर में उनको समाधिस्थ किया जाएगा।