धाड़ता को तहसील का दर्जा नहीं दे पाये महेंद्र

धाड़ता को तहसील का दर्जा नहीं दे पाये महेंद्र

धाड़ता क्षेत्र को हमेशा किनारे पर रखने वाले महेंद्र सिंह इस बार भी पूर्ण तहसील का दर्जा देने में असफल रहे हैं जबकि यहां के लोगों ने हमेशा उनका साथ दिया।यह आरोप लगाते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी धर्मपुर की लोकल कमेटी का कहना है कि इस बार धाड़ता क्षेत्र की जनता महेंद्र सिंह या उनके परिवार के किसी भी सदस्य का पूरी तरह से बायकॉट करेगी क्योंकि बाप बेटे और बेटी ने केवल अपने लिए यहां की जनता का शोषण किया।इस बार इस क्षेत्र की जनता पिछले तीस साल का सारा हिसाब बराबर करेगी।पार्टी के सचिव व पूर्व जिला पार्षद भूपेंद्र सिंह ने बताया कि एक कंपनी को करोड़ों रुपए का लाभ दिया गया है जिसकी जांच के लिए न्यायालय की शरण में जाएंगे।महेंद्र सिंह ने टिहरा की जनता से कॉलेज खोलने का भी वादा किया था।उन्होंने वादा भुला कर अपने परिवार के लिए वेटरनरी कॉलेज खोला ताकि उसकी आमदनी कम न हो सके।राजस्व मंत्री द्वारा टिहरा को पूर्ण तहसील का दर्जा और कॉलेज न देना धाड़ता क्षेत्र के साथ उनकी भेदभाव और सौतेला व्यवहार करने की सोच को दर्शाता है।उन्होंने कहा कि टिहरा में तहसील बनाने के लिए वर्ष 2016 में किसान सभा के बैनर तले लंबा आंदोलन हुआ था और उस समय महेंद्र सिंह ने यहां की जनता से वादा किया था कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही वे टिहरा में पूर्ण तहसील बना देंगे।लेक़िन 2017 में सरकार भाजपा की बनी और उसमें वे सबसे ज्यादा विभागों के मंत्री बने जिसमें राजस्व विभाग भी उन्हीं को दिया गया परन्तु वे पांच साल सरकार के गुज़र जाने पर भी टिहरा में पूर्ण तहसील नहीं बना पाये।जबकि अन्य विभागों के कई कार्यालय इस विधानसभा क्षेत्र में ज़रूर खोले गए।यही नहीं वे टिहरा जो आज़ादी के बाद यहां का सबसे बड़ा व प्रथम शिक्षा केन्द्र था उसे विकसित करने के बजाये उन्होंने उसे कमज़ोर ही किया है।उनके इशारे पर टिहरा व चोलथरा स्कूल के खेल मैदानों में भवन बना दिये गए और ढगवानी में पानी का भण्डारण टाँक बना दिया गया है।तनिहार में कॉलेज खोलने के लिए लोगों ने बीस साल पहले 35 बीघा जमीन दान की थी लेकिन उन्होंने जानबूझ कर यहां कॉलेज नहीं खोला और न ही कोई अन्य शिक्षण संस्थान इस क्षेत्र में स्थापित किया।पिछली कैबिनेट मीटिंग में चोलथरा से लेकर टिहरा के बीच में पॉलिटेक्निक कॉलेज खोलने की घोषणा जरूर की गई है लेकिन उसके लिए कर्मचारियों व बजट का कोई प्रावधान नहीं किया गया है।बीस साल बाद एक विश्राम गृह जरूर तैयार हुआ है लेकिन उसमें भी उनके बजाये यहां से सबन्ध रखने वाले विभागीय अधिकारियों की सहायता ज़्यादा रही है।अस्पताल और लघु सचिवालय भवन का निर्माण किया गया है लेकिन उनका अधूरे निर्माण कार्य पर ही चुनाव के मद्देनजर लोकार्पण कर दिए गए हैं।टिहरा अस्पताल के लिए करोड़ो रूपये की बिल्डिंग तो बन गई लेक़िन इस अस्पताल में अभी तक एक्सरे और अन्य बुनियादी टेस्टों की सुविधा उपलब्ध नहीं है तो फ़िर केवल बिल्डिंग बनाने से किसका ईलाज होगा।टिहरा में अभी तक राष्ट्रीकृत बैकं की शाखा तक नहीं है और न ही मिल्ट्री कैंटीन,बस अड्डा और सामुदायिक भवन की सुविधा उपलब्ध है।कुल मिलाकर यहां के विधायक व मंत्री का इस क्षेत्र के साथ सौतेला व्यवहार रहा है जिसके चलते उन्हें इस बार के चुनावों में खमियाजा भुगतना पड़ेगा।