राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू सोमवार को कोलकाता पहुँची थीं. वो वहाँ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसदों और विधायकों से मंगलवार को मिल सकती हैं. लेकिन सबकी नज़र पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया पर है.
ममता बनर्जी ने एक जुलाई को द्रौपदी मुर्मू को लेकर उदार रुख़ अपनाते हुए कहा था कि अगर वह एनडीए की उम्मीदवारी को लेकर पहले से जान रही होतीं तो स्थिति बिल्कुल अलग होती.
ममता बनर्जी ने कहा था, ”अगर हमें बीजेपी की उम्मीदवार के बारे में पहले सुझाव मिला होता तो इस पर सर्वदलीय बैठक में चर्चा कर सकते थे. बीजेपी ने हमसे संपर्क किया था लेकिन उम्मीदवार के बारे में नहीं बताया था.”
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा था, ”अगर हमें पता होता कि वे आदिवासी महिला या अल्पसंख्यक समुदाय से किसी को उम्मीदवार बनाने वाले हैं तो हम इस पर विचार कर सकते थे. हमारे मन में आदिवासियों और महिलाओं को लेकर बहुत आदर है. अब्दुल कलाम को लेकर हमने सहमति बनाई थी. हमारे गठबंधन में 16-17 पार्टियां हैं और मैं एकतरफ़ा अपना क़दम पीछे नहीं खींच सकती. अन्य पार्टियाँ भी हैं.”
राष्ट्रपति चुनाव के लिए 18 जुलाई को मतदान है और 21 जुलाई को नतीजा आएगा.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को ख़त्म हो रहा है और संविधान के मुताबिक़ नए राष्ट्रपति का चुनाव उससे पहले पूरा हो जाना चाहिए.
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ममता की मजबूरी
यशवंत सिन्हा को विपक्ष का उम्मीदवार बनाने में ममता बनर्जी की अहम भूमिका रही है.
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ड्रामा क्वीन
समाप्त
अब द्रौपदी मुर्मू को लेकर ममता बनर्जी के उदार रुख़ की चर्चा हो रही है. इसकी दो वजहें बताई जा रही हैं.
पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की आबादी और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी इलाक़ों में बड़ी जीत मिली थी.
दूसरी वजह है कि द्रौपदी मुर्मू महिला हैं और ममता ख़ुद ही कहती हैं कि वह महिलाओं को लेकर आग्रही हैं.
कहा जा रहा है कि द्रौपदी मुर्मू को लेकर ममता बनर्जी की इस टिप्पणी के कारण उनकी पार्टी के विधायक और सांसद ऊहापोह में हैं.
पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार ने ममता बनर्जी को चिट्ठी लिख द्रौपदी मुर्मू के लिए समर्थन मांगा है. हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने औपचारिक रूप से बीजेपी नेताओं के अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया है.
यह कोई पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना रुख़ बदला हो. क़रीब एक दशक पहले 2012 में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने एपीजे अब्दुल कलाम के लिए एक और कार्यकाल की मांग की थी.
लेकिन अब्दुल कलाम ने शर्त रख दी थी कि अगर सभी पार्टियाँ उनकी उम्मीदवारी के लिए सहमत होंगी तभी वह फिर से राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनेंगे.
ऐसे में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन कर दिया था. राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणव मुखर्जी पहली बार पश्चिम बंगाल आए थे तो ममता बनर्जी ने उनके स्वागत में एक पार्टी का आयोजन किया था.
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नहीं रही दिलचस्पी
अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ममता बनर्जी का द्रौपदी मुर्मू को लेकर उदार रुख़ आदिवासी वोट बैंक के कारण है या कोई और मुद्दा है. 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की आबादी छह फ़ीसदी थी.
यह आबादी दक्षिण और उत्तर बंगाल में केंद्रित है. ममता बनर्जी ने ही राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम शुरू की थी.
वह दिल्ली आई थीं और 15 जून को 17 विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी. इसमें कांग्रेस भी शामिल हुई थी. इसी मुद्दे पर 21 जून को ममता के बदले उनके भतीजे और टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी विपक्ष की बैठक में शामिल हुए थे.
द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में एनडीए के अलावा भी कई विपक्षी पार्टियों का समर्थन बढ़ रहा है.
महाराष्ट्र में शिव सेना के टूटने और बाग़ी खेमे के एकनाथ शिंदे का बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद कई लोगों को लगता है कि ममता बनर्जी की राष्ट्रपति चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है. बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी.
राष्ट्रपति चुनाव में एक हफ़्ते से कम समय बचा है और यशवंत सिन्हा पश्चिम बंगाल में चुनावी कैंपेन के लिए नहीं गए हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यशवंत सिन्हा पश्चिम बंगाल चुनावी कैंपेन के लिए नहीं जा सकते हैं.
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ममता ने ऐसा क्यों कहा?
द हिन्दू अख़बार से रबिन्द्र भारती यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर बिस्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, ”तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के रुख़ में स्थायित्व का नहीं होना उनकी छवि के लिए ठीक नहीं है. विपक्ष के नेता के तौर पर उभरने में उनकी यह छवि बाधक बनेगी. यह केवल राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की एकता तक ही सीमित नहीं है.”
उन्होंने कहा, ”इस बात की भी संभावना है कि टीएमसी के आदिवासी इलाक़े के विधायक और सांसद क्रॉस-वोटिंग कर सकते हैं. द्रौपदी मुर्मू को लेकर ममता बनर्जी की हालिया टिप्पणी से भी यह स्पष्ट है.”
द्रौपदी मुर्मू पर ममता बनर्जी की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा था, ”वह दीदी ही थीं, जो राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को गोलबंद कर रही थीं. उन्होंने ही सिन्हा के नाम को आगे किया. अब वह अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही हैं. अगर वह यूटर्न ले रही हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें बीजेपी से फ़ोन गया होगा. वह प्रधानमंत्री मोदी के दबाव में रही होंगी. ऐसे भी देखें तो मोदी के साथ उनके अच्छे संबंध रहे हैं. कांग्रेस अपनी विचारधारा के साथ है और इसलिए हम बीजेपी का विरोध कर रहे हैं.”
बीजेपी नेता दिलीप घोष ने कहा, ”यशवंत सिन्हा ने जब नामांकन भरा तो वह ग़ैर-मौजूद थीं. दूसरी तरफ़ द्रौपदी मुर्मू के नामांकन के दौरान पीएम मोदी, अमित शाह और बीजेपी के अन्य बड़े नेता भी मौजूद थे. ममता अब इस तरह का बयान इसलिए दे रही हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हार तय है. ममता बनर्जी केवल लोकप्रियता के लिए काम करती हैं. बीजेपी ने मुर्मू के नाम की घोषणा यशवंत सिन्हा के बाद की थी.”
सीपीआईएम नेता सुजान चक्रवर्ती ने कहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी से किसी ने नहीं कहा था कि वह पूरे विपक्ष को एक मंच पर लाएं. चक्रवर्ती ने कहा, ”उन्होंने अपने मन से सब कुछ किया और अब बीजेपी के साथ विपक्ष को भी ख़ुश रखने की कोशिश कर रही हैं.”