Maruti 800: वो कार जिसने Middle Class भारत का दिल जीता, 31 साल सफर कर अब याद बन कर रह गई
किसी भी ब्रांड की वैल्यू इस बात पर तय होती है कि उसे पसंद करने वाले कितने लोग हैं. हर ब्रांड अपने ग्राहकों को टारगेट करता है. हमारा देश भारत मध्यवर्गीय परिवारों के दम पर चलता है, इसीलिए अधिकतर ब्रांड इसी वर्ग को अपना ग्राहक बनाने की सोच के साथ बाजार में उतरते हैं. जिस भी प्रोडक्ट पर मध्यवर्गीय लोगों ने मुहर लगा दी उस प्रोडक्ट को कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता.
आज हम आपको ऐसी ही एक कार की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे खास तौर पर असल भारत के लिए बनाया गया और ये असल भारत था देश का मध्यवर्गीय वर्ग. तो चलिए आज हम आपको सुनाते हैं किसी जमाने में भारत की अपनी कार कहलाने वाली मारुति 800 की कहानी :
1980 में शुरू हुई ‘शान की सवारी’ Maruti
1980 के दशक तक ‘शान की सवारी’ कही जाने वाली एम्बेसडर कार की धूम थी. प्रधानमंत्री से बड़े राजनेता व अधिकारी इसी गाड़ी की सवारी किया करते थे. king of Indian Roads के नाम से मशहूर एम्बेसडर को कड़ी टक्कर देने और फिर बाजार से लगभग बाहर करने वाली कार मारुति 800 ही थी. आज से करीब 4 दशक पहले 1980 में संजय गांधी ने भारत के आम लोगों के लिए एक कार बनाने का सपना देखा.
संजय गांधी का ये सपना पूरा हुआ भी लेकिन उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद. जून 1980 में एक प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई संजय गांधी की मौत हो गई, जिस वजह से वह अपने इस सपने को साकार होता नहीं देख पाए.
मिडिल क्लास के लिए एक सस्ती कार लाने के उनके इस सपनों को उड़ान तब मिली जब भारत सरकार की मारुति उद्योग लिमिटेड नामक कंपनी ने जापान की जापान की सुजुकी मोटर कंपनी के साथ एक ज्वाइंट वेंचर शुरू किया. दोनों कंपनियां मिल कर बनी मारुति सुजुकी और इसी ने भारत की सबसे सस्ती कार बनाई.
2 महीने में 1.35 लाख कारें हुईं बुक
9 अप्रैल 1983 ही वो दिन था जब मारुति 800 की बुकिंग शुरू हो गई. गाड़ी ने भारत के लोगों पर क्या असर डाला होगा इसका अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि 8 जून यानी बुकिंग शुरू होने के मात्र 2 महीने बाद तक करीब 1.35 लाख कारों की बुकिंग हो चुकी थी. जिस देश के लोगों ने एक जमाने तक पैदल, साइकिल पर, बसों, ट्रेनों में सफर किया था वहां का आम आदमी अब खुद का चार पहिया वाहन लेने की क्षमता रखने लगा था.
इन खूबियों ने लोगों को लुभाया
मारुति 800 जब बाजार में उतरी तब इसकी कीमत मात्र 52,500 रुपये थी. इसकी कम कीमत के अलावा इसकी माइलेज अच्छी थी और इसे चालान भी आसान था. ये देश की पहली ऑटोमैटिक गेयर वाली कार थी. इसके बाद वो दिन आया जब इस स्वदेशी कार को भारत की जनता के हाथों में सौंपा गया. ये दिन था 14 दिसंबर, वही दिन जिस दिन संजय गांधी का जन्मदिन होता है. 1983 में इसी दिन मारुति 800 की डिलीवरी शुरू हुई.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद अपने हाथों से उन पहले 10 लोगों को कार की चाबी सौंपी, जिन्होंने इसकी बुकिंग कराई थी. मारुति 800 के सबसे पहले मालिक बने थे इंडियन एयरलाइंस के कर्मचारी हरपाल सिंह. आज भी हरपाल सिंह के परिवार को वो खास दिन अच्छे से याद है. पीएम से कार की चाबी लेते हुए हरपाल सिंह की तस्वीर देश के एतिहासिक पलों का अहम हिस्सा बन गई.
भारत की सड़कों पर एकछत्र राज
समय के साथ साथ मारुति 800 की कीमत, मॉडल और मांग में कई तरह के बदलाव आए. धीरे धीरे मारुति 800 का उत्पादन लाखों में हो गया. भारत के हर हिस्से में इस गाड़ी की डिमांड बढ़ने लगी. 90 के दशक में वो समय आया जब सेल के मामले में मारुति 800 ने भारत की प्रसिद्ध गाड़ी एम्बेसडर को पीछे छोड़ दिया. इसकी लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगा लीजिए कि 1997 आते-आते भारत में बिकने वाली हर 10 गाड़ियों में 8 मारुती-800 ही होती थीं.
पाकिस्तान भी रहा दीवाना
इस कार ने भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को भी अपना दीवाना बना लिया. पाकिस्तान में इस गाड़ी की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि लोग इसे चोरी तक करने लगे. रिपोर्ट्स की माने तो एक समय ऐसा भी था जब इस देश में चोरी होने वाली सबसे ज्यादा गाड़ियां मारुति 800 ही होती थी. इस कार की लोकप्रियता को देखते हुए सुजुकी ने पाकिस्तान में सुजुकी मेहरान उतारी, जो कि आज भी इस देश में बहुत लोकप्रिय है.
गायब हो गई मारुति 800
मारुती-800 अपने भीतर किये गए बहुत से बदलावों के साथ 90 के दशक तक देश की पसंदीदा कार बनी रही लेकिन फिर 2000 में मारुती ने अपनी नई गाड़ी अल्टो लॉन्च की. जिसके बाद मारुती-800 धीरे धीरे पीछे छूटने लगी. अल्टो का मार्केट जितना मजबूत होता जा रहा था, मारुति उतनी ही पीछे जा रही थी. समय के साथ मार्केट में एक से एक बेहतरीन गाड़ियां आने लगीं और लोन की वजह से लोग उन्हें लेने में सक्षम भी होने लगे जिस वजह से मारुति 800 का मार्केट बिल्कुल ही ठंडा पड़ गया.
धीरे धीरे सबकी चहेती मारुती भारत की सड़कों से गायब होने लगी. अंत में 18 जनवरी 2014 को इसका उत्पादन पूरी तरह से बंद कर दिया गया. इसी दिन आखिरी मारुति 800 कार बनाई गई थी. अपने 31 सालों के सफर में मारुति 800 करीब 27 लाख लोगों तक पहुंची.
आज भी बहुत से लोगों के पास अपनी मारुति 800 से जुड़े कई किस्से कहानियां हैं. क्या आपके पास भी कभी थी ये कार? अगर हां तो इससे जुड़ा कोई किस्सा कमेंट बॉक्स में जरूर साझा करें.