मेयर ने मगरमच्छ को बनाया अपनी दुल्हन, अनोखी शादी में हजारों लोग हुए शामिल

मेयर ने मगरमच्छ को बनाया अपनी दुल्हन
वर्तमान समय में लोग अपनी शादी को यादगार बनाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। कभी-कभी लोग कुछ ऐसा कर जाते हैं जिस पर यकीन करना मुश्किल होता है। सोशल मीडिया पर आए दिन कई अनोखी शादियों और उनमें अजीबोगरीब रीति रिवाजों के पालन किए जाने के वीडियो वायरल होते रहते हैं। इंटरनेट पर शादी की कई ऐसी खबरें सामने आती हैं जिनके बारे में जानकर हैरानी होती है। अब इस बीच एक ऐसे ही शादी का मामला सामने आया है जिसके बारे में जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। 

यह अनोखी शादी दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रही है। यह अनोखी शादी किसी आम इंसान ने नहीं की है बल्कि एक मेयर ने की है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि मेयर ने किसी लड़की को अपना जीवनसाथी नहीं बनाया है बल्कि उन्होंने एक खतरनाक मगरमच्छ से शादी की है। आइए जानते हैं कि आखिर मेयर ने पानी में रहने वाले खतरनाक जानवर मगरमच्छ शादी क्यों की है? 

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मैक्सिको के सैन पेड्रो हुआमेलुला के मेयर क्टर ह्यूगो ने यह अनोखी शादी की है। उन्होंने पूरे रीति रिवाजों के साथ एक मगरमच्छ को अपनी दुल्हन बनाया है। अब उनकी इस शादी की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। 
मेयर ने मगरमच्छ को बनाया अपनी दुल्हन,

सैन पेड्रो हुआमेलुला के मेयर की इस अनोखी शादी में हजारों लोग शामिल हुए। इस शादी में सभी रीति रिवाजों का पालन किया गया। मेयर की शादी में परिजनों ने सभी रीति रिवाजों को निभाया। अब आपको इस अनोखी शादी के बारे में जानकर यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन यह बिल्कुल सच है। इस अनोखी शादी के पीछे एक खास वजह है। 
मेयर ने मगरमच्छ को बनाया अपनी दुल्हन

मैक्सिको में इस तरह की शादी करने की बहुत पुरानी परंपरा है। देश में ऐसी शादी का आयोजन इंसान के रिश्तों को पर्यावरण और जानवरों से मजबूत करने के लिए किया जाता है। इस तरह की शादी होना यहां पर आम बात है। लोग मानते हैं कि ऐसा करने से भगवान उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देंगे। 
मेयर ने मगरमच्छ को बनाया अपनी दुल्हन
बताया जाता है कि लोग अच्छी बारिश और ज्यादा मछली पाने के लिए इस तरह की शादी का आयोजन करते हैं। इसी वजह से सैन पेड्रो हुआमेलुला के मेयर क्टर ह्यूगो ने भी ऐसी शादी की है। मैक्सिको में मगरमच्छ से शादी करने की पुरानी परंपरा है। लोगों का कहना है कि साल 1789 से ही यह परंपरा चली आ रही है।