स्कूल के दिनों को याद करिए, परिंदों की चीं चीं के बिना हमारा दिन शायद ही पूरा होता हो. स्कूल में लंच टाइम में शोर करते और खाना झपटने की कोशिश करते चील और कौवों की आवाज़ याद आ गई होगी. एक और चिड़िया थी जिसकी आवाज़ से हम में से बहुत से बच्चों की सुबह होती थी. वो चिड़िया थी- गौरैया. आज वही गौरैया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, हमारे विकास की भेंट चढ़ चुकी है.
बेंगलुरू में एक बुज़ुर्ग रहते हैं जो गौरैया को हमारी ज़िन्दगी में वापस लाने की कोशिश करहे हैं. बेंगलुरू के बागालुर लेआउट में रहते हैं बेंगलुरू के स्पैरो मैन, 72 साल के एडविन जोसफ़.
जोसफ़ से मिलने आते हैं कई परिंदे
The New Indian Express की एक रिपोर्ट के अनुसार, जोसफ़ न सिर्फ़ एक पक्षी संरक्षक हैं बल्कि वो गौरैया से बात भी कर सकते हैं. जोसफ़ से मिलने रोज़ उनके दो परों वाले कई दोस्त आते हैं. उनका घर गौरैया, कबूतर, बुलबुल की आवाज़ से गूंज उठता है. लगभग 15 साल से इन परिंदों की आवाज़ ही जोसफ़ की अलार्म घड़ी है.
जोसफ़ परिंदों को बाजरा, खरा मिक्सचर, चावल, रोटी या घर पर जो बनता है वो खिलाते हैं.
अपने घर में बनाया परिंदों के लिए घर
NDTV के एक लेख के अनुसार, जोसफ़ ने अपने ही घर में परिंदों के लिए घर बनाया. जोसफ़ ने बताय, ‘ये कई साल पहले की बात है मेरी पत्नी चावल साफ़ करती थी. टूटे चावल के दाने उसके पैर के पास गिरते थे और बहुत सारी गौरैया उसके पैरों के आस-पास बैठ जाती थी. मैंने उसे थोड़े और चावल रखने को कहा और गौरैयों की तादाद बढ़ती गई. इसके बाद मैंने उनके लिए छोटे-छोटे घर बनाए.’
पहले 12 परिंदों को खिलाते थे, अब 200 से ज़्यादा परिंदों का पेट भरते हैं
जोसफ़ ने जब परिंदों को चावल के दाने डालना शुरू किया, तब 10-12 परिंदे ही दाना चुगने आते थे. धीरे-धीरे इनकी तादाद बढ़ने लगी और अब 200 के पार पहुंच चुकी है. एडविन के घर पर मल्टिपल फ़ीडर्स लगे हैं जो बाजरे से भरे रहते हैं. मानसून में जोसफ़ फ़ीडर्स में एक लकड़ी की तख़्ती लगा देते हैं ताकि परिंदे शांति से बैठ कर सुस्ता सकें. इसी कंपाउंड में एक और घर है जो जोसफ़ किराये पर देते हैं. इस घर के बालकनी के नीचे परिंदें अपना घोंसला बनाते हैं. घर के आस-पास पक्षियों के खेलने के लिए पौधों की कैनोपी बनाई गई है.
जोसफ़ के घर पर भी घट रही है गौरैयों की संख्या
पशु-पक्षियों की ज़िन्दगी आसान बनाने के अलावा जोसफ़ आस-पास के लोगों की भी सहायता करते हैं. ग़ौरतलब है कि उनकी चिंता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.
जोसफ़ के शब्दों में, ‘पहले हमारे यहां 200 से अधिक पक्षियां आती थीं लेकिन अब उनकी संख्या घटकर 80 हो गई है.’
जोसफ़ ने प्राइवेट मोबाईल टावर को घटती गौरैयों की संख्या का ज़िम्मेदार बताया. उनके क्षेत्र में लगे एक प्राइवेट टावर को हटवाने के लिए कई कैंपेन बी चलाए. मोबाईल टावर्स से रेडिएशिन लेवल में इज़ाफ़ा होता है जिसका असर स्थानीय पक्षियों पर पड़ता है. जोसफ़ ने स्थानीय अधिकारियों से मदद मांगी और जब कोई मदद नहीं मिली तब वो खुद टावर लगाने वालों से भिड़ गए और टावर का इंस्टॉलेशन रोका.
जोसफ़ सिर्फ़ पक्षियों की देखभाल ही नहीं करते. वे अपने घर पर छात्रों को अंग्रेज़ी ट्यूशन पढ़ाते हैं, ग़रीबों को खाना खिलाते हैं, बेघर बुज़ुर्गों की देखभाल करते हैं. कोविड- 19 से पहले भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) के पूर्व कर्मचारी, जोसफ़ बच्चों को फ़ुटबॉल की भी कोचिंग देते थे.
जोसफ़ ने सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि विश्व गौरैया दिवस पर सब मदद करने की क़सम खाते हैं लेकिन कोई कुछ नहीं करता. जोसफ़ के शब्दों में, ‘कई बार माता-पिता अपने बच्चों को लाते हैं और उन्हें इशारे से दिखाते हैं कि वो देखो गौरैया. क्योंकि बच्चों ने कभी गौरैया देखी ही नहीं है. ये बेहद दुखद है.’