लोगों को किताबों का चस्का चढ़ाने और गांव-गांव में लाइब्रेरी बना रहे इन स्टूडेंट्स से मिलिए

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“हमारे वॉलंटियर्स की शर्ट का रंग देखकर ही गांव वाले समझ जाते हैं कि हम कौन हैं… वो हमारी बात मानते हैं.”

“हमारी लाइब्रेरी में जब महेंद्र बाबा आये तो उनके आंखों में वही चमक थी, जो किसी बच्चे की आंखों में खिलौने की दुकान पर पहुंचकर होती है. वो मुझे, अन्य वॉलंटियर्स को किताबें छू-छू कर बता रहे थे कि ये किताब मैंने पढ़ी है, वो वाली किताब मैंने पढ़ी है.”

ये बातें कहते हुए जतिन ललित सिंह की आवाज़ में ख़ुशी साफ़ झलक रही थी. Galgotias University, Noida में वकालत (लॉ) की पढ़ाई करने वाले जतिन ललित ने कोरोना महामारी के दौरान कुछ ऐसा किया, जो सुनने में लगभग नामुमकिन लगता है. कोरोनावायरस के प्रकोप से जब दुनिया लड़ रही थी, तब जतिन ने अपने साथियों (प्रवीण, अभिषेक, मालविका और अन्य) के साथ उत्तर प्रदेश के कई गांवों में कम्युनिटी लाइब्रेरी की शुरुआत की. नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 95वें एपिसोड में जतिन ललित की तारीफ़ की. पीएम मोदी ने कहा, ‘यहां हर छोटा बच्चा पढ़ने आता है. चाहे वो ऑफलाइन एजुकेशन हो या ऑनलाइन एजुकेशन. इस सेंटर पर 40 वालंटियर लोगों को गाइड करते हैं. हर दिन तकरीबन 80 बच्चे इस लाइब्रेरी में पढ़ने आते हैं.’

इंडिया टाइम्स हिंदी के साथ बातचीत में जतिन ने अपने सफ़र के कुछ क़िस्से साझा किये. जतिन और उनके साथियों ने गांव-देहात में रूरल लाइब्रेरी मूवमेंट (Rural Library Movement) की शुरुआत की है. इस मिशन के तहत अब तक वो 3 गांव में कम्युनिटी लाइब्रेरी खोल चुके है और एक गांव में बंद हो चुकी लाइब्रेरी को लोगों की मदद से दोबारा शुरू कर चुके हैं.

सफ़र का पहला क़दम

जतिन ने बताया कि जुलाई, 2020 में उनके कॉलेज के सीनियर, प्रवीण कुमार ने फ़ोन किया और बताया कि वो चेरुआ, ज़िला बलिया (पश्चिम उत्तर प्रदेश) में कम्युनिटी लाइब्रेरी खोल रहे हैं.

‘प्रवीण ने कहा कि लाइब्रेरी शुरू करनी है और इसमें मदद चाहिये. गांव में ही एक पुराना सरकारी रेस्ट हाउस मिल गया और उसकी मरम्मत कर लाइब्रेरी बनाई.’
– जतिन ललित सिंह

चेरुआ कम्युनिटी लाइब्रेरी, बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी ऐंड रिसोर्स सेंटर के अलावा इस टीम ने कल्याणपुर गांव में फरवरी 2021 में लाइब्रेरी खोली. कोविड की वजह से यह मार्च में बंद हो गई और इसे दोबारा शुरू करने का काम चल रहा है. गांव तेरवा, हरदोई में आज़ादी के पहले से एक लाइब्रेरी थी. मंदिर के प्रांगण में ही लोग अखबार पढ़ने, चर्चा करने आते थे. इस लाइब्रेरी को भी रिवाइव करने की कोशिशें हो रही हैं. इस गांव से हर घर से IAS, IPS निकले हैं तो उनसे सहायता मिल रही है. पढ़ने के इस कल्चर का श्रेय आज़ादी से पहले के लोगों को ही जाता है.


 

TCLP, दिल्ली का एक्सपीरियंस आया काम

जतिन 2016 में वकालत की पढ़ाई करने नोएडा पहुंचे.

‘मैं 2017 में The Community Library Project (TCLP) से जुड़ा और 2019 तक इस संस्था से जुड़ा रहा.’

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बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी और रिसोर्स सेन्टर की शुरुआत

चेरुआ पब्लिक लाइब्रेरी में लड़के पढ़ने तो आते थे लेकिन लड़कियों की संख्या कम थी. 3000-4,500 की आबादी वाला ये गांव बुरी तरह रूढ़िवादी विचारधारा की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था. TCLP में जतिन को दक्ष मिला और उसने जतिन पर गहरी छाप छोड़ी.

‘TCLP में काफ़ी सारे बच्चे पढ़ने आते थे. उन बच्चों में एक बच्चा था,  दक्ष. दक्ष के पिता रिक्शा चलाते थे.  दक्ष शुुरुआत में किताबें भी इश्यू नहीं करवाता था और किसी और से बोलकर किताब मंगवाता था. धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास बढ़ा और 2019 तक उसमें ग़ज़ब का आत्मविश्वास भर गया. दक्ष को देख कर मुझे लगा कि मेरे गांव में भी बहुत सारे दक्ष होंगे. बस फिर क्या अपने गांव में भी लाइब्रेरी बनाने की सोच ली.’
– जतिन ललित सिंह

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बांसा के ग्रामीणों की प्रतिक्रिया

“पहले हम लोग अपने बड़े भाई-बहनों की किताबें पढ़ते थे लेकिन अब हर साल सिलेबस में कुछ न कुछ नया जुड़ रहा है. किताबें भी महंगी हो रही है. जब गांव वालों को पता चला कि फ़्री में किताबें, कंप्यूटर आदि मिलेगा तो उन्हें आपत्ति नहीं हुई”, जतिन ने बताया.

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1 रुपये में मिली ज़मीन

बांसा गांव के बीचों-बीच एक मंदिर है, जहां काफ़ी सारी ज़मीन थी. जब जतिन और अन्य लोगों ने लाइब्रेरी की बात की तो मंदिर प्रबंधन के लोग राज़ी हो गये और 1 रुपये में 99 साल के लिए ज़मीन लीज़ पर दे दी.
‘मेरे दादा-परदादा का मंदिर के काम में हाथ था तो मुझे ज़मीन मिल गई. मैं बहुत Privileged रहा हूं. मंदिर की वो ज़मीन ऐसे ही पड़ी रहती थी, मंदिर प्रबंधन को लगा कि लाइब्रेरी की वजह से वो जगह साफ़-सुथरी रहेगी और चहल-पहल भी रहेगी.’, जतिन ने बताया.

सितंबर 2020 में लाइब्रेरी के निर्माण का काम शुरू हुआ और दिसंबर 2020 से लाइब्रेरी पूरी तरह खुल गई.

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लाइब्रेरी में लड़कियां ज़्यादा आती हैं

चेरुआ लाइब्रेरी में लड़कियां पढ़ने नहीं आती थी. वो किसी से कहकर किताबें मंगवा लेती, ख़ुद नहीं आती थी. लेकिन, बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी में लड़कों की तुलना में ज़्यादा लड़कियां आती हैं.

भावी वक़ीलों के थे दो उद्देश्य

जतिन ने बताया कि Rural Library Movement के दो ही उद्देश्य थे.

1. लोगों को पढ़ने की आदत डलवाना

‘हमारी कोशिश है कि हम सभी को पढ़ने की आदत डलवाये. मैंने बचपन में हैरी पॉटर, कॉमिक्स आदि सब पढ़ा है लेकिन गांव के बच्चों को पता ही नहीं है कि हैरी पॉटर क्या है या कॉमिक्स भी कोई चीज़ है. Reading for Pleasure से तो यहां के बच्चे, बड़े सभी अंजान हैं.’
– जतिन ललित सिंह

2. प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चों की मदद करना

‘गांव में बच्चे प्रतियोगिता परिक्षाओं पर फ़ोकस करते हैं. दूर-दराज़ के गांव में होने की वजह से कई बार उनके पास किताबें नहीं होती, कोचिंग सेंटर तो हैं ही नहीं. हमारी कोशिश है कि हम बच्चों की हर तरह से सहायता कर पाये. लाइब्रेरी में प्रतियोगिता परीक्षाओं की किताबें हैं, ऑनलाइन क्लासेज़ होती हैं, हम फ़ॉर्म भरने में भी मदद करते हैं.’
– जतिन ललित सिंह

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निशुल्क लाइब्रेरी, फ़ाइन भी नहीं लेते

गांव वाले और बच्चे लाइब्रेरी तक आते रहे इसलिये जतिन और उनकी टीम ने कई सारे तरीके अपनाये हैं. बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी में हर एक सुविधा नि:शुल्क मिलती है. किताब देरी से लौटाने पर फ़ाइन भी नहीं लिया जाता. गांव के बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनके ऊपर 1 रुपये का फ़ाइन भी भारी पड़ सकता है.

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कोविड की दूसरी लहर में की ग्रामीणों की मदद

कोविड-19 की पहली लहर में बांसा गांव में कुछ ख़ास असर नहीं हुआ था. लेकिन, दूसरी लहर के दौरान 17 अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच सिर्फ़ 10 दिनों के अंदर गांव के 47 लोगों की जान चली गई. जतिन और अन्य लोगों को समझ आ गया कि जल्द कुछ न किया गया तो ये संख्या और बढ़ेगी.

‘मारे गये लोगों की उम्र 60 से ऊपर ही थी. सबसे पहले हमने गांव को सैनिटाइज़ किया. ASHA, ANM और आंगनबाड़ी वर्कर्स के साथ मिलकर रिलीफ़ काम शुरू किया. लोगों के बीच जागरूकता फैलाई. मास्क और सैनिटाइज़र बांटे, हाथ धोना, सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखना आदि के बारे में बताया. इसके साथ ही कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने के लिये भी समझाया.’
– जतिन ललित सिंह

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बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी और रिसोर्स सेंटर को Base बनाया गया और 22 वालंटियर कोविड राहत कार्य में जुटे. कोरोना किट मेडिसिन, ऑक्सिमीटर, थरमॉमीटर आदि की व्यवस्था की गई. गांववाले लाइब्रेरी से ही हर ज़रूरत की चीज़ लेकर जा सकते थे.

युवाओं की फौज ने एक नि:शुल्क ऐंबुलेंस सुविधा भी शुरू की. ऑनलाइन कनसल्टेशन के लिये 7 डॉक्टर्स से बातचीत की. वैक्सीन लगवाने में हिचकिचाने वाले लोगों को ये लोग जागरूक भी कर रहे हैं.

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प्रशासन से नहीं मिली कोई मदद

कम्युनिटी लाइब्रेरी शुरू करने से पहले जतिन और टीम स्थानीय सांसद से मिलने गये थे. सासंद ने कहा,

‘लाइब्रेरी में कोई पढ़ने नहीं आयेगा और हमने सारे पैसे पीएम केयर फ़ंड्स में दान कर दिये.’

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‘हमारे वालंटियर्स के टी-शर्ट की रंग पीली है. अगर कोई गांववाला हमें दूर से देखता, पीले टी-शर्ट देखकर ही मास्क लगा लेते. हमारी टी-शर्ट के रंग से ही हमारी पहचान होने लगी है और लोगों को भी हम पर विश्वास है.’
– जतिन ललित सिंह

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‘लाइब्रेरी की एक दीवार पर Preamble लिखवाया गया है. मैं चाहता हूं कि लाइब्रेरी आने वाले लोग उसे देखे, पढ़ें. इस गांव में बहुत से लोगों को ये भी पता नहीं होगा कि संविधान क्या है?’
– जतिन ललित सिंह

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लाइब्रेरी में आने वालों से मिलिए

जूली है भविष्य

SC समुदाय की 13 साल की जूली शुरुआत में लाइब्रेरी आने से हिचकिचाती थी. उसे लगता था कि वो एक साथ सबके साथ बेंच पर कैसे बैठेगी? क्या बाकी बच्चे उससे बातें करेंगे, दोस्ती करेंगे, एक 13 साल की बच्ची में ऐसे सवाल थे. लाइब्रेरी के बच्चों में जाति-पाति की कोई भावना नहीं थी. जतिन ने बताया कि जूली सबसे प्रतिभावान बच्चों में से एक है. जूली हर ऑनलाइन क्लास करना चाहती है.

‘एक दिन लाइब्रेरी में मौजूद लाइब्रेरियन ने देखा कि उसने भारी-भरकम संविधान की किताब उठाई है. उससे पूछा गया कि उसने ये किताब क्यों उठाई है. उसने कहा कि भैया ने बताया था कि संविधान से Power मिलता है, हमको Power चाहिये देश चलाने के लिये.’
– जतिन ललित सिंह

13 साल की बच्ची की ये बात उम्मीद है, बांसा के लिये ही नहीं पूरे देश के लिये.

एक दूसरी बच्ची, मीणा लाइब्रेरियन से गृहकार्य मांगती है, उसे गणित, अंग्रेज़ी का गृहकार्य दिया जाता है.

महेंद्रपाल बाबा हैं प्रेरणा

जतिन ने बताया कि बाबा पहले बहुत ज़्यादा हिंदी साहित्य पढ़ते थे. बीतते वक़्त के साथ पढ़ना कम हो गया. जब बाबा लाइब्रेरी पहुंचे और उन्हें हिंदी साहित्य सेक्शन में ले जाया गया तो उनकी आंखों में वैसी ही चमक थी जो किसी बच्चे की खिलौने की दुकान पहुंच कर होती है.

दादी है उम्मीद

दादी बांसा गांव की पहली महिला हैं जिसने अपने पोते-पोतियों से किताब नहीं मंगवाई और ख़ुद किताब लेने आईं.

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बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी ऐंड रिसोर्स सेंटर की ऐसे करें मदद

आप इस पते पर किताबें डोनेट करके मदद कर सकते हैं- 

Bansa Community Library,
Near Post Office,
Village & Post Bansa
Mallawan, Hardoi, Uttar Pradesh
241303

किसी भी तरह की जानकारी के लिये आप इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं-
Contact- 7080501028

जतिन से बातचीत के दौरान ये साफ़ झलक रहा था कि आज के युवा सपने देखने में ही नहीं, उन्हें सच करने के लिये काम करने में भी विश्वास करते हैं. आदतन हमने पूछ ही दिया, “आगे का क्या सोचा है?’ हंसते हुए जतिन ने कहा, ‘परिवारवाले तो चाहते हैं कि सिविल की तैयारी करूं लेकिन मैं गांव-गांव जा कर ऐसी ही लाइब्रेरीज़ बनाकर लोगों को किताबों का चस्का चढ़ाना चाहता हूं.”