पुरातन मंगल पर ढाया था सूक्ष्मजीवों ने कहर, जलवायु परिवर्तन की पड़ी थी मार!

पुरातन मंगल (Mars) पर जमीन के नीचे सूक्ष्मजीवों का संसार था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

पुरातन मंगल (Mars) पर जमीन के नीचे सूक्ष्मजीवों का संसार था.

अधिकांश वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि मंगल ग्रह पर कभी ना कभी जीवन (Life on Mars) जरूर रहा होगा. और इसी के प्रमाणों की तलाश शिद्दत से हो भी रही है. अब तक के अध्ययन ने सतह पर किसी तरह के जीवन के संकेत होने के मामले में वैज्ञानिकों ने बहुत उत्साहित नहीं किया है. लेकिन उन्हें इसकी बहुत उम्मीद रही है कि सतह  के नीचे जरूर ऐसे प्रमाण मिल सकेंगे जिससे मंगल पर कभी रहे जीवन के उपस्थिति का पता चल सकेगा. नए अध्ययन में ऐसे संकेत मिले हैं जिनसे पता चलता है कि पुरातन मंगल ग्रह (Ancient Mars) पर कभी सूक्ष्मजीवन ने जलवायु परिवर्तन (Climate Change on Mars) का ऐसा दौर ला दिया था जिससे लालग्रह पर जीवन ही समाप्त हो गया था.

हिम युग ला दिया था
फ्रांस के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि पुरातन मंगल में ऐसा वातावरण था जहां जमीन के नीचे सूक्ष्मजीवों की संसार था लेकिन उनकी उपस्थिति ग्रह के लिए अच्छी नहीं थी.  उनका कहना है कि इन पुरातन सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति ने मंगल ग्रह पर हिमयुग ला दिया था जिससे वहां के वायुमंडल में ऐसे बदलाव आए कि वे खुद भी नष्ट हो गए. यह मंगल ग्रह पर जलवायु परिवर्तन के प्रमाण के पहले संकेत हो सकते हैं. जिससे लाल ग्रह लाखों साल तक बंजर हो गया.

खगोलीय विकिरण की भी भूमिका
नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नलम  प्रकाशित अध्ययन में कहा गया हैकि मंगल की पर्पटी ने सूक्ष्मजीवन को एक अनुकूल पर्यावरण प्रदान करने का काम किया होगा, जिसमें उसकी छिद्रों  से भरपूर नमकीन पानी वाली मिट्टी में अंतरिक्ष से आए पराबैंगनी और खगोलीय विकिरण को आने का मौका मिल गया होगा.

कैसे बने होंगे हालात
शोधकर्ताओं ने बताया कि जमीन के नीचे तापमान, और घने और विरल वायुमंडल के मिलने से हालात ने सरल सूक्ष्मजीवन को अनुकूलता प्रदान की होगी जिन्होंने हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड को ऊर्जा के रूप में अवशोषित किया होगा और अपशिष्ट के तौर पर मीथेन का उत्सर्जन किया होगा. शोध के प्रमुख लेखक और सोर्बोन यूनिवर्सिटी की पोस्ट डॉक्टोरल शोधकर्ता बोरिस सॉटेरे ने बताया कि सरल जीवन भी खुद के नष्ट होने का कारण बन सकता है.

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पुरातन मंगल (Mars) पर जलवायु परिवर्तन के कारण ही वहां हिमयुग आया और आज तक ऐसे हालात बने हुए हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

4 साल पुरानी मंगल की पर्पटी
सॉटेरे न बताया कि उनके अध्ययन के नतीजे थोड़े निराशाजनक लगते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि ये काफी उत्साहजनक भी हैं जो काफी उपोयगी जानकारी देने वाले साबित हो सकते हैं.  शोधकर्ताओं ने जवलायु और भूभागों को प्रतिमानों का उपयोग कर करीब 4 अरब साल पहले के मंगल की पर्पटी की आवासीयता का आकलन किया.

हाइड्रोजन खा कर मीथेन बनाना
यह उसी समय की बात है जिस दौर में मंगल के बारे में माना जाता है कि वहां पानी भरा हुआ था और वह आज की तुलना में ज्यादा आवासीय ग्रह था. अध्ययन में इस बात को भी रेखांकित किया गया कि ये हाइड्रोजन खाने वाले सूक्ष्मजीव मीथेन पैदा करते और सतह के नीचे कई इंच की धूल में पनपा करते थे. लेकिन तब मंगल नमी से भरा, गर्म जलवायु वाला ग्रह था और इनसे वहां कार्बन डाइऑक्साइड से भरे वायुमंडल में बहुत सारी हाइड्रोजन खाली हो गई होगा.

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मंगल (Mars) से मिट्टी के नमूने जमा करने का काम नासा का पर्सिवियरेंस रोवर कर रहा है जिनसे इस अध्ययन की पुष्टि हो सकती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: @nasa)

कैसे आया होगा जलवायु परिवर्तन
लेकिन जलवायु परिवर्तन से सूक्ष्मजीव जो सतह पर या फिर सतह के करीब रहते होंगे खुद को जीवित रखने के लिए और गहराई चले गए होंगे. शोधपत्र में बताया गया है कि सतह के नीचे की आवासीयता सतह पर बर्फ के होने की वजह से काफी सीमित हो गई होगी. लेकिन मेथेनोजेनिसिस के कारण वायुमंडल की संरचना में इस बदालव हुए होंगे जिससे वैश्विक ठंडक छा गई होगी और हिमयुग आ गया होगा.

इन बदलावों के कारण मंगल ग्रह पर शुरुआती गर्म हालात खत्म हो गए होंगे, आवासीयता कम होने लगी होगी और जैवमंडल मंगल की पर्पटी के अंदर जाने को मजबूर हो गया होगा. फ्रांस के शोधकर्ताओं यह भी बताया कि मंगल के हेलास प्लानिटिया या मैदान, उत्तर पश्चिम इसिडिस प्लैनिटिया पर जजीरो क्रेटर मंगल के इस पुरातन जीवन के संकेत खोजे जा सकते हैं. नासा का पर्सिवियरेंस रोवर फिलहाल जजीरो क्रेटर ही मिट्टी और चट्टान के नमूने जमा कर रहा है