बर्फ से झरने फूट रहे हैं, चारों तरफ बर्फ की मोटी चादर और बीच में एक साधु महादेव की आराधना करता है। सोशल मीडिया पर आपने भी तस्वीरें देखी होंगी। उत्तराखंड के लोगों के लिए जाना पहचाना नाम है- बाबा ललित रामदास जी महाराज। वह आधे कपड़े में कंपकंपाती ठंड में केदारनाथ धाम में कैसे बैठे रहते हैं?
बर्फ की मोटी चादर में साधना
दरअसल, बाबा केदार के कपाट बंद होने के बाद दर्शनार्थी नहीं आते। ऐसे समय में गिने चुने साधु-संत ही रहते हैं, जो सुबह-शाम बाबा केदार की पूजा करते हैं। बर्फबारी में कई बार 6 से 7 फीट मोटी बर्फ जम जाती है। जिधर देखो उधर सफेदी ही दिखाई देती है। लेकिन बर्फबारी और कंपकंपाती ठंड में भी महादेव के भक्त यह ‘अजूबे’ साधु तपस्या में लीन दिखाई देते हैं। यह कोई इस साल या पिछले साल की बात नहीं है, ललित महाराज का पिछले कई वर्षों से यही रूटीन बन चुका है। मौसम की सख्ती का उनके शरीर पर कोई असर नहीं दिखता। खून जमा देने वाली ठंड भी जैसे उनकी साधना के आगे ‘नतमस्तक’ हो जाती है।
इसे ललित महाराज का हठ कहें या भक्ति की पराकाष्ठा, चाहे कितनी भी बर्फ पड़े वह धाम से नीचे नहीं आते हैं। जब लोगों की भीड़ जुटती है तो वह भोलेनाथ के भक्तों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था भी करते हैं। बर्फबारी के समय बर्फ को पिघलाकर पानी का इस्तेमाल किया जाता है। देखने वाले भी हैरान रह जाते हैं कि आधे कपड़े पहनकर कोई इस सर्दी में कैसे साधना करने बैठा है।
आस्था या चमत्कार
केदारनाथ धाम की ऊंचाई 11 हजार फीट है। यहां माइनस में तापमान हो जाता है। ललित महाराज बेजुबान कुत्तों के खाने-पीने का भी इंतजाम करते हैं। ललित महाराज 2013 में आई आपदा के बाद से इसी तरह कपाट बंद होने के बाद भी केदारनाथ धाम में रहते आ रहे हैं। कुछ तस्वीरें देखकर तो आप हैरान रह जाएंगे। एक तस्वीर में केदारनाथ धाम बर्फ से ढका दिखाई देता है और ठीक सामने उनका आधा शरीर बर्फ में होता है। इसे ‘आस्था का चमत्कार’ कह सकते हैं। ललित महाराज को उत्तराखंड के लोग ‘बाबा बर्फानी’ भी कहते हैं। मंदिर से करीब एक किमी दूर ललित महाराज का अपना आश्रम है।
उत्तराखंड के लोगों के लिए ललित महाराज एक जाना पहचाना नाम है। वह मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के रहने वाले हैं। बचपन में ही उन्होंने घरबार छोड़कर आध्यात्म की राह पकड़ ली। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि 2013 में आपदा के बाद वह केदारनाथ धाम का नजारा देखकर दुखी हो गए और मन में ठान लिया कि अब कहीं नहीं जाना, वह 365 दिन यहीं रहकर बाबा की आराधना, साधु-संतों और श्रद्धालुओं की सेवा करेंगे। आज उनके आश्रम में 200 लोगों के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था है।
बर्फ में कैसे रहते हैं ललित महाराज
आखिर में वो सवाल, जो आपके मन में आ रहा होगा। आखिर बाबा ललित महाराज बर्फ में कैसे रह लेते हैं? वह हिमालय की गरिमा समझाते हुए कहते हैं कि हिमालय यानी हिम का आलय। हिमालय ही भगवान शिव हैं, शिव ही भगवान हिमालय हैं। उन्होंने कहा कि जब हम किसी भी हिमालयी प्रांत में प्रवेश करते हैं तो इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि यह अति संवेदनशील क्षेत्र है वैचारिक रूप से और व्यावहारिक रूप से भी। 12 महीने कैसे केदार धाम में रह लेते हैं, कहां से एनर्जी जुटाते हैं? इस सवाल पर ललित महाराज कहते हैं कि हिमालय का 6 महीने का जीवन मानवीय जीवन है, जिसमें साधक या संत जीवन जी सकते हैं।
उन्होंने कहा कि बाकी छह महीने का दैवीय जीवन है, उस समय की दिनचर्या दैवीय वातावरण के अनुकूल है, यानी संक्षिप्त आहार, संक्षिप्त दिनचर्या होनी चाहिए। इस दौरान अधिक जप और ध्यान ज्यादा करना चाहिए। हिमालय पर पड़ी बर्फ का सफेद रंग सात्विकता का प्रतीक है। इसका दर्शन करने से व्यक्ति को शांति की अनुभूति होती है।