सोलन सिरमौर जिला की सीमा पर ,मरयोग के समीप , ऐतिहासिक धरोहर है सहस्रधारा। पुराण मान्यता के अनुसार मरयोग से लेकर, रेणूका की सीमा तक, सहस्रबाहु का शासन रहा था ,जो कि,राक्षसी प्रवृत्ति का था , प्रजा को ईश्वरीय भक्ति से हटाकर ,अपने को ईश्वर कहलाना उसका लक्ष्य था। नारायण के आंशिक अवतार परशुराम राम ने धरती का भार मुक्त करने के लिए , उसका वध करने का निश्चय किया। भयंकर युद्ध हुआ , परशुराम के भय से भागते हुए ,वह सहस्रधारा पहूँचा, जहां उसका वध हुआ ,उसने अन्तिम समय मे ,महादेव को याद किया, शिव ने प्रकट होकर उसकी ,अन्तिम इच्छा जाननी चाही । सहस्रबाहु ने राक्षस यौनी से, मुक्त होने पर ईश्वर का आभार जताया। तथा शिव से प्रार्थना की ,हे परमेश्वर मुझे इस स्थान पर युगों युगों तक, याद करें।
शिव ने वरदान दिया ,जहां तुम्हारी रक्त की हजारों धाराऐँ बही हैं। वहां जलधाराएँ बहँगी । जो लोगों के लिए शांति तथा रोग निवारण के लिए, प्रसिद्ध होँगी। बस तब से यहाँ ऊंचाई से सहस्रधारा फुट पड़ी। यहाँ लोग दूर दूर से शान्ति की तलाश में आते हैं। और सहस्रधारा के नीचे स्नान कर अपने सुनहरी भविष्य की कामना करते है। यही वजह है कि , इस स्थल को लोग बेहद मानते हैं । गौर तलब है कि सहस्रधारा के ठीक ऊपर कसार सड़क बनाते समय , शिव मंदिर भी खुदाई मे मिला था। कुछ लोगों को यह भी भ्रांति है कि, सहस्रधारा तो उत्तराखंड मे हैं। वहां पर यद्यपि झरना है लेकिन उस झरने को , द्रोणाचार्य की कथा के साथ जोड़ कर देखा जाता है । परशुराम के साथ जुडा ऐतिहासिक स्थल , मरयोग में स्थित यही सहस्रधारा स्थल है जिसमें लोगों की बेहद आस्था और विश्वास है । यह जानकारी नौणी पंचायत के प्रधान मदन हिमाचली ने मीडिया को दी।