Mulayam Singh Yadav Demise: उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की सियासत की बिसात पर अपने राजनीतिक विरोधियों को मात देने के लिए कभी छोटे तो बड़े सियासी दांवों की कितनी अहमियत है. पहलवानी का अखाड़ा हो या फिर राजनीति का मैदान. मुलायम सिंह यादव अपने सियासी प्रतिद्वंदियों को चित करने में माहिर रहे.
मुलायम सिंह यादव… वो एक नाम… वो एक चेहरा… वो एक शख्सियत… जिसने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा अखाड़ा माने जाने वाले उत्तर प्रदेश की सियासत में कदम रखा था तो मानो भूचाल ला दिया था. 1967 में मुलायम सिंह यादव ने महज़ 28 साल की उम्र में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीत कर ये साबित कर दिया था कि सूबे की राजनीति में मुलायम युग का आगाज़ हो चुका है. मुलायम सिंह यादव आज हमारे बीच नहीं हैं. उन्होंने 10 अक्टूबर सुबह 8.16 मिनट पर गुरुग्राम मेदांता में आखिरी सांस ली.
उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की सियासत की बिसात पर अपने राजनीतिक विरोधियों को मात देने के लिए कभी छोटे तो बड़े सियासी दांवों की कितनी अहमियत है. पहलवानी का अखाड़ा हो या फिर राजनीति का मैदान. मुलायम सिंह यादव अपने सियासी प्रतिद्वंदियों को चित करने में माहिर रहे.
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के सैफ़ई गांव में हुआ. उनकी माता का नाम मुर्ति देवी और पिता का नाम सुघर सिंह यादव था. पिता ने अपने बेटे मुलायम के लिए पहलवान बनने का सपना देखा था. लिहाज़ा मुलायम बचपन से अखाड़े में उतर कुश्ती के दांव-पेंच सीखने लगे. लेकिन उस वक्त किसी को ये इल्म नहीं था कि मुलायम एक दिन उत्तर प्रदेश के साथ-साथ भारत की सियासत का एक दिग्गज नेता और महारथी बनेंगे.
मुलायम सिंह का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था और उस दौर में इटावा ज़िले में पानी की समस्या बड़ी थी. और इसे लेकर यूपी में भी नहर रेट आन्दोलन चल रहा था. 15 साल की उम्र में मुलायम इस आन्दोलन से जुड़ गए. इसी दौरान उन्हें डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और समाजवाद को नज़दीक से जानने-समझने का मौक़ा मिला. बस यहीं से मुलायम के राजनीतिक सफ़र की शुरुआत भी हुई.
गांव से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद मुलायम सिंह ने इटावा के केके डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया और यहीं पहली बार छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद आगरा यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में MA की पढ़ाई करने लगे. इस दौरान प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बाद डॉ. लोहिया ने यूनाइटिड सोशलिस्ट पार्टी बनाई और मुलायम सिंह यादव ना सिर्फ़ उस पार्टी के सक्रिय सदस्य बने बल्कि वो इलाक़े के गरीबों और किसानों की आवाज़ भी बन गए. यानी पढ़ाई, पहलवानी और सियासत एक साथ चलने लगी. इसी दौरान जसवंत नगर में एक कुश्ती के दंगल में विधायक नत्थू सिंह की नज़र मुलायम पर पड़ी. अखाड़े में मुलायम के दांव देख कर नत्थू उनके मुरीद हो गये और उन्होंने मुलायम सिंह यादव को अपना सियासी शागिर्द बना लिया.
वक्त का पहिया अपनी रफ़्तार से घूम रहा था और पॉलिटिकल साइंस में MA करने के बाद मुलायम ने BT यानि बैचलर ऑफ़ टीचिंग की डिग्री हासिल की. पढ़ाई पूरी होते ही साल 1965 में करहल के जैन इंटर कॉलेज में नौकरी लग गई. मुलायम अब सियासत, मास्टरी और पहलवानी, तीनों कर रहे थे. दो साल बाद साल 1967 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर से सोश्लिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनावी मैदान में उतरे