Mokama Byelection 2022 : सत्ताधारी दल और बीजेपी के लिए मोकामा उपचुनाव नाक का सवाल बन गया है। आचार संहिता लागू है लेकिन परीक्षा तो बाहुबल की ही होगी। यहां बाहुबल ही सबकुछ तो नहीं लेकिन मोकामा सीट पर बाहुबल बहुत कुछ है। ऐसे में ये भी जानलेना जरूरी है कि सबसे ज्यादा वोट पानेवाला बाहुबली कौन रहा?
पटना : अब इसे लोकतंत्र का बदलता स्वरूप समझ लें या फिर वोटरों पर बाहुबलियों का बढ़ता प्रभाव। एक समय ऐसा आया कि किसी को अपने बाहुबल से सदन का रास्ता दिखाने वाले सदन जाने के प्रति खुद ही तलबगार हो गए। मोकामा विधानसभा क्षेत्र इस तरह की बानगी का गवाह रहा है। आजादी के बाद न जाने कितने शूरवीर मोकामा विधानसभा से चुनाव लड़े मगर इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा रिकॉर्ड वोटिंग का श्रेय जाता है तो वे हैं मोकामा के बाहुबली सूरजभान सिंह को। ये वे सूरजभान सिंह हैं, जो कभी किसी के लिए बूथ लूटने का काम करते थे। फिर विधायक से लेकर सांसद तक बन लोकतंत्र के प्रहरी बन गए।
कौन हैं सूरजभान सिंह?
अपराध की दुनिया में अपना सिक्का जमानेवाले सूरजभान सिंह का जन्म मोकामा में हुआ था। दिन 5 मार्च का था और वर्ष 1965। इनके पिता चाहते थे कि सूरजभान सिंह एक फौजी बनें। लेकिन वक्त सूरजभान सिंह के लिए कुछ और पटकथा लिख रहा था। सूरजभान सिंह अपराध की दुनिया में कब प्रवेश किए और कब खूंखार हो गए। ये सब इतने अल्पकाल में हो गया कि देखते-देखते एक दबंग, प्रभावशाली बाहुबली मोकामा के दरवाजे पर दस्तक देता नजर आया।
सूरजभान का पहला अपराध
अपराध की दुनिया में सूरजभान का प्रवेश बहुत ही अव्यावहारिक और मानवीय मूल्यों को तार-तार करने वाला था। कहते हैं कि सूरजभान ने अपराध में प्रवेश का सबसे सॉफ्ट टारगेट उन्हें बनाया, जिनके यहां उनके पिता काम करते थे। और वो दर था गुलजित सिंह का। अपने उस अव्यावहारिक निर्णय का खामियाजा अपने पिता की आत्महत्या के रूप में भुगतना पड़ा।
80 का दशक और सूरजभान
ये दशक सूरजभान के अपराध का फलने-फूलने के लिए जाना जाया जाएगा। शुरुआत छोटे-मोटे अपराध से लेकिन 1990 आते-आते अपराध का स्तर विशाल हो गया। इसका श्रेय श्यामसुंदर सिंह धीरज और दिलीप सिंह को जाता है। पहले दिलीप सिंह से सूरजभान जुड़े। लेकिन एक समय आया, जब श्याम सुंदर सिंह धीरज से सूरजभान जुड़ कर दिलीप सिंह के विरुद्ध चले गए।
अपराध की दुनिया से राजनीत की ओर
अब तक दिलीप सिंह और धीरज के साथ में रहकर सूरजभान भी राजनीति के दाव-पेंच सीख चुके थे। एक वक्त आया जब जैसे को तैसा मिल गया। जिस तरह दिलीप सिंह ने अपने राजनीतिक गुरु धीरज के विरुद्ध खुद खड़ा होकर उनकी मिट्टी पलीद कर दी। राजनीत का दाव-पेंच इस कदर प्रभावी हुआ कि सूरजभान ने भी दिलीप सिंह के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।
वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव
वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव खांटी बाहुबली बनाम बाहुबली हुआ। तब जनता दल से दिलीप सिंह और बतौर निर्दलीय सुरजभान सिंह ने अपना-अपना दावा ठोक डाला। आंकड़ों का सहारा लें तो ये चुनाव इस क्षेत्र के लिए रिकॉर्ड साबित हुआ। ये चुनाव कई कारणों से महत्वपूर्ण हो गया। एक तो दिलीप सिंह 70 हजार मतों से चुनाव हार गए। दूसरा ये कि इस बार इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदान हुआ। 76.70 प्रतिशत वोट डाले गए। इस दौरान 83.4 प्रतिशत पुरुषों ने तो महिलाओं ने भी लगभग 69.01 प्रतिशत मतदान किया। यहां कुल वोटरों की संख्या 2.68 लाख थी, जिसमें 1.40 लाख पुरुषों ने और 1.27 लाख महिलाओं ने मतदान किया।