Morbi Bridge used to give the feel of London since the time of British, the story of the wooden bridge that killed 143 people

पुल न सिर्फ दो छोर को जोड़ने का काम करते हैं बल्कि अपने साथ इतिहास को भी समेटे खड़े रहते हैं। मोरबी पुल भी कुछ ऐसा ही था। 143 लोगों की मौत के बाद अब इसे ‘मौत का पुल’ कहा जा रहा है। गुजरात के इस 100 साल से भी अधिक पुराने पुल का आकर्षक इतिहास रहा है।

मोरबी/नई दिल्ली: गुजरात के मोरबी पुल हादसे से पूरा देश शोक में है। रविवार शाम जिस केबल पुल के टूटने से 140 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, वह 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। हाल में मरम्मत और नवीनीकरण के बाद इसे जनता के लिए खोला गया था। बताते हैं कि रविवार शाम करीब साढ़े छह बजे पुल पर क्षमता से अधिक लोग पहुंच गए थे। अचानक पुल टूटा और करीब 500 लोग माच्छू नदी में गिर गए। मरने वालों में कई बच्चे और महिलाएं भी हैं। इस हादसे के बाद पुल के इतिहास, उसकी मरम्मत और लापरवाही को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। एक प्राइवेट फर्म ने लगभग छह महीने तक मरम्मत का काम किया था और 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर इसे जनता के लिए फिर से खोला गया था। अद्भुत इंजीनियरिंग और काफी पुराना होने के कारण इस पुल को गुजरात पर्यटन की सूची में रखा गया था। आज ‘मौत का पुल’ के तौर पर बदनाम हुए इस ब्रिज की अलग कहानी है।

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मोरबी पुल हादसे के बाद आज सुबह की तस्वीर

बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के इस पुल को जनता के लिए खोल दिया गया था। लंबे समय से यह पुल जनता के लिए बंद था।
एसवी जाला, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मोरबी नगर समिति

सस्पेंशन पुल क्या होता है?
आम पुल से यह थोड़ा अलग होता है। दोनों सिरों पर मीनारनुमा ढांचों से जुड़े स्टील के तारों से लटकने वाले पुल को सस्पेंशन ब्रिज कहा जाता है। हावड़ा ब्रिज हो या प्रयागराज का नैनी पुल, दिल्ली का सिग्नेचर पुल ये सभी इसी श्रेणी के ब्रिज हैं।

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अब बात मोरबी की
यह कोई आम पुल नहीं था। 1887 के आसपास मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी ठाकोर ने इसे बनवाया था। मोरबी पर उनका शासन 1922 तक रहा। जब लकड़ी के इस पुल का निर्माण किया गया था तो इसमें यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ था। बताते हैं कि मोरबी के राजा इसी पुल से होकर दरबार जाते थे। यह पुल दरबारगढ़ पैलेस और नजरबाग पैलेस (शाही महल) को जोड़ता था। बाद में यह दरबारगढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच कनेक्टिविटी का प्रमुख मार्ग बना।


सब सामान इंग्लैंड से आया और खर्च 3.5 लाख रुपये
1.25 मीटर चौड़ा और 233 मीटर लंबा यह पुल मोरबी की शान रहा है। लोग यहां पहुंचकर यूरोप की तकनीक का अनुभव किया करते थे। कैमरे वाले फोन आने के बाद सेल्फी का क्रेज बढ़ता गया। रविवार को लोग घूमने के लिए पुल पर पहुंचे थे। उत्तराखंड में गंगा नदी पर बने राम और लक्ष्मण झूला की तरह यह गुजरात में काफी मशहूर था। पहली बार इस हैंगिंग ब्रिज का उद्घाटन 20 फरवरी 1879 को तत्कालीन मुंबई गवर्नर रिचर्ड टेंपल ने किया था। सभी सामग्रियां इंग्लैंड से आई थीं और इस ब्रिज को बनाने में तब 3.5 लाख रुपये का खर्च आया था। 2001 में आए भयानक भूकंप में इस ब्रिज को गंभीर नुकसान पहुंचा था।

मोरबी में वेलकम करता यह ब्रिज
जैसे ही कोई मोरबी में प्रवेश करता, उसे यह सस्पेंशन ब्रिज आकर्षित करता था। नदी के किनारे का वो नजारा लोगों को विक्टोरियन लंदन का एहसास कराता था। राजकोट से 64 किमी दूर स्थित मोरबी में इमारतें 19वीं सदी के यूरोप के टक्कर की बनाई गई थीं। मोरबी के पूर्व शासक अंग्रेजों की तकनीक से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने पूरे शहर में उसका इस्तेमाल किया था। शहर में आगंतुक का वेलकम यही पुल करता था जो 100 साल से भी पहले से अपने विशाल और विहंगम स्वरूप से लोगों को आकर्षित कर रहा था। पूरे शहर में यूरोपीय शैली की छाप दिखती है। आगे बढ़ने पर ग्रीन चौक चौराहा है, जहां तीन गेट से पहुंचा जा सकता है और हर गेट में राजपूत और इटालियन तकनीक का अक्स दिखाई देता है।

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आम दिनों में ऐसे मोरबी पुल से आते जाते थे लोग (फोटो https://morbi.nic.in)

सस्पेंशन ब्रिज शानदार इंजीनियरिंग का उदाहरण रहा है। यह बताता है कि आज से डेढ़ सौ साल से भी पहले मोरबी के राजा की सोच कितनी प्रगतिशील और साइंटिफिक हुआ करती थी। मोरबी की एक अलग पहचान बनाने के लिए इस यूनिक ब्रिज का निर्माण किया गया था।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अंग्रेजों के समय का यह ‘हैंगिंग ब्रिज’ जब टूटा तो उस समय कई महिलाएं और बच्चे वहां मौजूद थे। इससे लोग नीचे पानी में गिर गए। स्थानीय लोग बता रहे हैं कि हादसे से ठीक पहले कुछ लोग पुल पर कूद रहे थे और उसके बड़े तारों को खींच रहे थे। हो सकता है कि भारी भीड़ के कारण पुल टूटकर गिर गया हो। पुल गिरने के चलते लोग एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े। दीपावली की छुट्टी और रविवार होने के कारण इस मशहूर पुल पर पर्यटकों की भीड़ उमड़ी हुई थी।