मोरबी हादसा : झूलते पुल की क्या है कमजोरी कि सैनिक भी कदम मिलाकर नहीं चलते?

Morbi Accident Reason : गुजरात के मोरबी शहर में माच्छू नदी पर बने केबल पुल के टूटने से 134 लोगों की मौत हो गई है। NDRF, एसडीआरएफ, वायुसेना, सेना और भारतीय नौसेना के जवान राहत एवं बचा कार्यों में लगाए गए हैं। यह पुल करीब एक सदी पुराना था और मरम्मत के बाद इसे आम लोगों के लिए खोला गया था।

नई दिल्ली : गुजरात के मोरबी पुल हादसे (Morbi Pull) का दिल को झकझोर देने वाला वीडियो सामने आया है। पुल टूटने से ठीक पहले युवाओं को मस्ती करते और तारों को पकड़कर झकझोरते देखा जा सकता है। 100 लोगों की क्षमता वाले इस सस्पेंशन ब्रिज पर रविवार की शाम करीब 500 लोग आ गए थे। वीडियो को देखने के बाद लोगों को वह बात याद आ रही है जो काफी समय से वे सुनते आए हैं। किसी भी ब्रिज पर सेना के जवान कदम मिलाकर मार्च नहीं करते हैं। आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है? मोरबी हादसे की वजह जांच में पूरी तरफ साफ होगी लेकिन सस्पेंशन ब्रिज की वह कमजोरी आप समझ सकते हैं। फिजिक्स न पढ़ने वाले भी इस तकनीकी पहलू को आसानी से समझ सकते हैं।

इग्लैंड में बनते थे सस्पेंशन ब्रिज और…
पहले यह जान लीजिए कि इंग्लैंड में 1825-26 के समय में सस्पेंशन ब्रिज बनने शुरू हो गए थे। पांच साल बाद ही ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी पुल से होकर गुजरी और ब्रिज ढह गया। सेना ने आदेश जारी किया कि पुल पार करते समय जवान अब मार्च नहीं करेंगे। 1850 में ऐसी ही घटना फ्रांस में घटी। वहां भी जवान एक सस्पेंशन ब्रिज से होकर गुजरे और पुल टूट गया। बताते हैं कि इस हादसे में बड़ी संख्या में जवानों की मौत हुई थी। वजह तलाशी गई और फिर विज्ञान ने रहस्य खोला।

अब वजह जान लीजिए
घड़ी का पेंडुलम तो आपने देखा ही होगा। बराबर समय में रिपीट होने वाली प्रक्रिया पर आपने शायद गौर भी किया हो। हर चीज की अपनी एक स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी होती है। उस चीज को झटका देने पर वो अपनी स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी से ऑसीलेट (दोलन) करती है। जरूरी नहीं कि सब का दोलन हमें दिखाई दे। इसी तरह सीमेंट, लोहे के बने सस्पेंशन ब्रिज की अपनी स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी होती है। जब आप चलते हैं तो वो फ्रीक्वेंसी महसूस होती है।
अब जरा सोचिए। एक या दो, 10-20, 50 लोग आते जाते हैं। पुल दोलन यानी ऑसीलेट करता है लेकिन सब ठीक रहता है क्योंकि सबके कदम रखने की टाइमिंग अलग-अलग होती है। ऐसे में उनका फोर्स एकसाथ नहीं पड़ता है। लेकिन जब जवान कदमताल करते हुए एक साथ पैर रखते हैं तो उनके पैरों की फ्रीक्वेंसी एक हो जाती है। जब पुल पर बन रहे दबाव की फ्रीक्वेंसी पुल की अपनी स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी के बराबर होती है तो रेजोनेंस (Resonance) होता है।

रेजोनेंस की स्थिति में पुल पर खिंचाव या तनाव सबसे ज्यादा दूर तक पैदा होता है। ऐसे में एक पल ऐसा आता है जब तनाव काफी ज्यादा हो जाता है और पुल टूट जाता है। 1940 में वॉशिंगटन में बना टैकोमा ब्रिज भी सस्पेंशन ब्रिज था। ये तेज हवाओं से इतना लहराया था कि लहराते हुए टूट गया था। मतलब साफ है कि किसी भी चीज की फ्रीक्वेंसी अगर स्वाभाविक फ्रीक्वेंसी के बराबर पहुंच जाए तो वह टूट जाएगा।

ब्रिज फ्रीक्वेंसी = हवा की फ्रीक्वेंसी = पुल क्रैश

सेना के पुल पार करने के मामले में यांत्रिक अनुनाद होता है। जब कोई सेना किसी पुल को पार करती है तो सैनिक कदम मिलाकर नहीं चलते हैं क्योंकि अगर जवान कदम मिलाकर चलेंगे तो सैनिकों के कदमों की आवृत्ति यानी फ्रीक्वेंसी पुल की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर हो जाएगी तो पुल टूटने का खतरा बढ़ जाएगा।

दूसरे शब्दों में कहें, तो एक समय ऐसा आएगा जब ब्रिज भी मार्चिंग स्टेप की रिदम के अनुरूप ऑसिलेट करना शुरू कर देगा। यह ऑसिलेशन जब पीक पर पहुंचेगा तो पुल खड़ा नहीं रह पाएगा।