चंबल में पानी नहीं खून बहता है
चंबल में मछलियां नहीं लाशें तैरती हैं
चंबल प्रतिशोध की नदी है
नरेंद्र सक्सेना की कविता ‘चंबल एक नदी का नाम’ में चंबल का जो ज़िक्र मिलता है वो रूह कंपाने वाला है. चंबल नदी शायद इकलौती ऐसी नदी है जो अपने तट पर लगने वाले मेले के लिए नहीं बल्कि अपनी घाटी में रहने वाले डाकुओं के लिए मशहूर है. लेकिन इसी चबल का एक और पहलू है जो आज विश्वविख्यात हो चुका है.
Indie Tales
‘मुरैना की गजक’
सर्दियों में मूंगफली के अलावा सड़क किनारे हर दूसरी दुकान ‘मुरैना की गजक’ या ‘मोरैना की वर्ल्ड फ़ेमस गजक’ बेचती नज़र आएगी. चंबल के मीठे पानी से ही बनती है मुरैना की वर्ल्ड फ़ेमस गजक. अब सरकार ने मुरैना की गजक को GI टैग देकर नई पहचान दी है.
मुरैना की गजक को मिला GI Tag
Amazon
मुरैना के प्रसिद्ध गजक को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग मिला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर ये सूचना दी है. 2019 में ही गजक को जीआई टैग दिलाने के लिए आवेदन भेजा गया था.
जीआई टैग उत्पादों, कृषि, प्राकृतिक और निर्मित उत्पादों (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) के एक विशिष्ट क्षेत्र को दिया जाने वाला एक विशेष टैग है. यह विशेष गुणवत्ता और उस उत्पाद को दिया जाता है जो एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होता है. भारत में सबसे पहले 2004 में दार्जिलिंग टी को जीआई टैग दिया गया था और अब तक 300 से ज़्यादा उत्पादों को जीआई टैग दिया जा चुका है.
मुरैना की गजक इतनी मशहूर क्यों है?
Just Dial
ज़िला मुरैना, मध्य प्रदेश की गजक में ऐसा क्या है कि हर कोई उसी नाम से गजक बेचता है. हर दुकानदार का दावा होता है कि उनके यहां कि गजक मुरैना में बनी है. मुरैना चंबल घाटी में मध्य प्रदेश के उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर स्थित है. 1 नवंबर, 1956 को जब मध्य प्रदेश राज्य बनाया गया तब मुरैना को ज़िला का दर्जा मिला.
सुनकर हैरानी होगी लेकिन लोगों का मानना है कि मुरैना की गजक का स्वाद सबसे अलग होने की वजह है, चंबल का पानी. वही चंबल का पानी जिसे रक्त-रंजित होने के लिए जाना जाता है. वही चंबल का पानी जिसने असंख्य डाकुओं को, बागियों को अपना पानी पिलाया है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुरैना की गजक की मांग है.
गजक बनाने की विधि
Outlook India
morena.nic.in यानि मुरैना के आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, चंबल नदी के पानी में कुछ घटकों के कारण इससे गजक विकसित की गई थी. गजक को तिल और गुड़ के साथ तैयार किया जाता है. आटे को तब तक फेंटा जाता जब तक सारे तिल आटे में टूटकर मिल न जाएं और आटे में अपना तेल न छोड़ दें. 5 से 8 किलोग्राम गजक तैयार करने में तकरीबन 10-15 घंटों का समय लगता है.
गजक से जुड़ी अन्य कहानियां
Kabliwala
गजक से जुड़ी कई कहानियां प्रसिद्ध हैं. तिल और गुड़ का भारतीय खाने के साथ सदियों पुराना नाता है. लोहड़ी, पोगंल, मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से कई मिठाइयां बनाई जाती हैं. कुछ प्रचलित कहानियों की मानें तो गजक का ज़िक्र मुगल काल में भी मिलता है. हिन्दू राजा युद्ध के दौरान अपने सिपाहियों को खाने तिल, गुड़, चना देते थे. पोषक तत्वों से भरपूर ये तीनों चीज़ें आम आदमी की थाली तक भी पहुंच गई.
पूरे भारत में अलग-अलग तरीके के गजक बनाए जाते हैं. कहीं इसमें मूंगफली मिलाई जाती है तो कहीं गुड़ की जगह चीनी का भी इस्तेमाल किया जाता है.
नई दुनिया के लेख के अनुसार, मुरैना वासी सीताराम शिवहरे को गजक का आविष्कारक मानते हैं. माना जाता है कि 1946 या आज़ादी के आस-पास ही गजक का जन्म हुआ. शिवहरे के बाद ही मुरैना के हलवाई गजक और गुड़ की पट्टियां बनाने और बेचने लगे.
जीआई टैग मिलने के बाद गजक को पहले से भी ज़्यादा मशहूरियत मिलने की उम्मीद है