Bageshwar Dham Maharaj: बागेश्वर धाम के महाराज पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इन दिनों चर्चा में हैं। बागेश्वर धाम के महाराज बीते एक सालों से कुछ ज्यादा ही चर्चा में हैं। इनका धाम मध्यप्रदेश के छतरपुर में है। आइए आपको बताते हैं इनके बागेश्वर धाम महाराज बनने की कहानी।
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नागपुर में आयोजित कथा को लेकर बागेश्वर धाम महाराज पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री विवादों में आ गए हैं। उनके ऊपर कई तरह से सवाल उठ रहे हैं। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी अपने ऊपर लग रहे आरोपों पर सफाई दे रहे हैं। बीते एक सालों में बागेश्वर के महाराज सोशल मीडिया पर छा गए हैं। पूरे देश में उनके लाखों भक्त हैं। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के कार्यक्रमों में लाखों की भीड़ उमड़ती है। आमलोगों के साथ-साथ बड़े-बड़े नेता बाबा के भक्त हैं। बढ़ती प्रसिद्धि के साथ विवादों से रिश्ता भी गहरा होता जा रहा है। पूर्व में अपने बयानों को लेकर तो अब चमत्कार को लेकर बाबा घिर गए हैं।
कौन हैं पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री
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राम कथा की वजह से पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पूरे देश में मशहूर हैं। इनका जन्म चार जुलाई 1996 में छतरपुर जिले के गढ़ा गांव में हुआ है। बचपन गरीबी में बीता है। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि कभी-कभी भोजन का जुगाड़ भी नहीं हो पाता था। बागेश्वर धाम के महाराज पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पूर्व में अपनी कथाओं में गरीबी का जिक्र कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि पिता जी को मिले दान दक्षिणा से ही हमारा घर चलता था। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने एक वाक्ये का जिक्र करते हुए कहा था कि हमारे पिता जी हमें पढ़ाई के लिए वृंदावन नहीं भेज पाए थे क्योंकि उनके पास एक हजार रुपये नहीं थे।
इनके दादा थे सिद्ध संत
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बागेश्वर धाम महाराज के पिता का नाम करपाल गर्ग और मां का नाम सरोज गर्ग है। एक छोटा भाई और बहन है। इनके दादा भगवानदास गर्ग एक सिद्ध संत थे। निर्मोही अखाड़े भी वह जुड़े हुए थे। बताया जाता है कि वह भी दरबार लगाते थे। उन्होंने ने ही पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को शुरुआती धार्मिक ज्ञान दी थी। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने ग्रेजुएशन किया है।
मां ने दूध बेचकर पाला परिवार
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दरअसल, पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का परिवार गांव में पंडिताई कर भरण भोषण करता था। परिवार में बंटवारे के बाद यजमान भी बंट गए थे। इसके बाद धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के परिवार के सामने आर्थिक चुनौती ज्यादा आ गई थी। इनकी मां सरोज गर्ग ने गांव में भैंस का दूध बेचने लगी। उससे होने वाली कमाई से परिवार का खर्च चलने लगा।
ऐसे बना बागेश्वर धाम
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दरअसल, पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को लोग गांव में धीरू के नाम से बुलाते हैं। कथा वाचने के दौरान ही वह गढ़ा गांव स्थित शंकर भगवान के प्राचीन मंदिर को उन्होंने अपना स्थान बनाया। इसे धीरे-धीरे बागेश्वर मंदिर के नाम से इलाके जाने जाना लगा। 2016 में गांव के लोगों की मदद से यहां विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया। यज्ञ के दौरान ही बालाजी की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई। इसके बाद से यह स्थान बागेश्वर धाम हो गया है। साथ ही कहा जाता है कि इनके दादा की समाधि भी यहां है।
उमड़ने लगी भक्तों की भीड़
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इसके बाद पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री यहीं पर कथा सुनाने लगे। धीरे-धीरे इनकी चर्चा दूर-दूर तक होने लगी। इसके बाद भारी संख्या में भक्त पहुंचने लगे। अब यह जगह बागेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है। धाम की प्रसिद्धि के साथ-साथ बाबा का ग्राफ काफी बढ़ गया है। बाबा अब राष्ट्रीय हो गए हैं।
गांव में सुनाने लगे कथा
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परिवार की स्थिति पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री वाकिफ थे। वह अब कुछ करने लायक हो गए थे। धर्म के प्रति उनकी रुचि बढ़ती जा रही थी। वह गांव में ही शुरुआत में कथा सुनाने लगे। धीरे-धीरे कथावाचक बनने लगे थे। कथावाचक के रूप में पहली बार 2009 में उन्होंने पास के ही गांव पहरा के खुडन में उन्होंने कथा सुनाई थी। इसके बाद आसपास के गांव में पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की प्रसिद्धि बढ़ने लगी।
पढ़ लेते हैं मन की बात
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बागेश्वर धाम महाराज कथित तौर पर यह दावा करते हैं कि वह लोगों के मन की बात पढ़ लेते हैं। सोशल मीडिया पर उनके कई वीडियो वायरल हैं। बाबा अपने दिव्य दरबार में आने वाले लोगों के मन की बात पर्चे पर लिख देते हैं। इसे लेकर कई बार सवाल भी उठते हैं लेकिन बाबा इन आरोपों को खारिज करते रहते हैं।
धाम में मंगलवार को लगती है अर्जी
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