मां ने सिलाई कर पाला, चार बहनों के इस भाई ने पायलट बन बदल डाली सबकी जिंदगी

Success Story of Pilot: राजस्थान के टोंक जिले के रहने वाले दीपक ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जो कई युवाओं को प्रेरणा बन सकता है। बचपन से परिवार को आर्थिक तंगी से जूझते देख दीपक ने आगे बढ़ने का सपना देखा और अब पायलट बन इसे साकार कर दिखाया है।

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मां ने सिलाई कर पाला, चार बहनों के इस भाई ने पायलट बन बदल डाली सबकी जिंदगी

चाहे कितनी ही विपरीत परिस्थिति हो अगर दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। राजस्थान के टोंक जिले के देवली के घोसी मोहल्ला के रहने वाले दीपक कुमावत ने इस बात को सच कर दिखाया है। कड़ी मेहनत, संकल्प, इच्छा शक्ति और अटूट विश्वास के आगे परिवार की आर्थिक कमजोरी भी दीपक की राह की बाधा नहीं बन सकीं। परिवार की गरीबी और अन्य चुनौतियों के बीच उसने अपने पायलट बनने का सपना साकार किया। दीपक का हाल ही में एलाइंस एयर एविएशन लिमिटेड में को- पायलट के रूप में चयन हुआ हैं। चयन के बाद परिवार और समाज में खुशी का माहौल है। वहीं माता पिता अपने बेटे की सफलता पर फूले नहीं समा रहे हैं। दीपक की मेहनत ने परिजनों का सीना चौड़ा कर दिया हैं।

​मां ने सिलाई कर किया परिवार का पालन

दीपक की मां गृहणी है, जिन्होंने अपने बच्चों को सिलाई कर पढ़ाया-लिखाया। अब अपने पुत्र को हवाई जहाज उड़ाते देख उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। दीपक चार बहनों में इकलौता भाई है, जिसकी सफलता पर हर कोई गर्व कर रहा है।

​एक माह की ट्रेनिंग के बाद विमान उड़ाएगा दीपक

दीपक के बहनोई व्याख्याता हरिराम कुमावत ने बताया कि दीपक फिलहाल दिल्ली में है, जो अभी एक माह की ट्रेनिंग पर है। इसके बाद उन्हें फ्लाइट दे दी जाएगी। लेकिन पायलट बनने के पीछे दीपक के साथ कड़े संघर्ष का कहानी जुड़ी हुई है। कड़ी मेहनत और लक्ष्य की एकाग्रता की बदौलत दीपक ने यह सफलता हासिल की है।

दीपक का सपना बनूं तो केवल पायलट

दीपक की शुरू से ही जिद थी कि वह बनेगा तो सिर्फ पायलट बनेगा। दीपक ने देवली की अग्रसेन स्कूल में रहकर ही कक्षा 10 और 12 की पढ़ाई की है। इसी अवधि में दीपक ने अपने मन में पायलट बनने की ठान ली। हालांकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से दीपक ने अपना सपना किसी को नहीं बताया। लेकिन लक्ष्य निर्धारित कर दीपक ने मन ही मन तैयारी शुरू कर दी। बहनोई हरिराम ने बताया कि कक्षा 12 में दीपक ने मैथ्स विषय के साथ तैयारी शुरू कर दी। इसके बाद वह दिल्ली चला गया और अपनी पढ़ाई की तैयारी में जुट गया।

कमजोर आर्थिक हालत से लड़कर दीपक ने जीती जंग

वर्ष 2011 के करीब उसके पिता सड़क दुर्घटना में घायल हो गए। वह ऊंचा रोड पर मोटर बाइंडिंग की दुकान करते थे। पिता के घायल होने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हुई। लेकिन उनकी दोनों बड़ी बहनों अर्पिता और पायल ने अपनी मां को सम्बल देते हुए परिवार की जिम्मेदारी उठाई। दीपक ने कानपुर और स्पेन में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। इसके बाद वैकेंसी के इंतजार में लग गया। लेकिन कोविड-19 की वजह से उसे 2 वर्ष तक लंबा इंतजार करना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद वह हताश नहीं हुआ और निरन्तर लगा रहा। उसकी इस सफलता में उसके दादा मोहनलाल कुमावत ने भी भरसक सहयोग किया। वहीं वैकेंसी जारी होते ही दीपक ने सफलता हासिल की। वह को-पायलट बन गया।