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जिन औलादों के लिए अपनी खुशियों का त्याग किया, जिनकी सलामती के लिए न जाने कितनी बार मन्नतें मांगी। व्रत रखा और पाल-पोस कर बड़ा किया। उन्होंने बुढ़ापे की लाठी बनने के बजाय बेगाना कर दिया है। लिहाजा वृद्धाश्रम में शरण लेना पड़ रहा है। इन मांओं का दिल अभी भी इसको स्वीकार नहीं कर रहा है और हर किसी से कहती हैं कि कोई कह दे मेरे लाल से कि वह उन्हें घर ले जाए।
आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में बीते एक सप्ताह में मनोरमा देवी, कपूरी वर्मा, रामकुमार शर्मा आदि 10 बुजुर्ग आएं हैं। इसमें आठ महिलाएं और दो पुरुष हैं। बेटे-बहू ने इनके साथ बुरा व्यवहार किया, लेकिन फिर भी अपने घर लौटने के लिए आतुर हैं। उन्हें अपनों की याद सता रही है। माएं रोकर कहती हैं कि बेटा आ जाए तो घर चले जाएं।

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बहू कराती काम, बेटा डांटता है
दिल्ली की रहने वाली रामवती (78) तीन दिन पहले आश्रम में आईं हैं। जब से वह आश्रम आई हैं वह किसी से ज्यादा बात भी नहीं कर रही हैं। अपनों का दिया हुआ जख्म इतना गहरा है कि वह कहते हुए रो पड़ती हैं। वह बताती हैं कि उनके दो बेटे हैं, लेकिन उन्हें कोई भी अपने साथ रखना नहीं चाहता है। बहू पूरा दिन काम कराती थी और बेटों से कुछ कहती तो वह मुझे ही डांट देते। अब वह मुझे यहां छोड़ गए हैं।

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बेटे नहीं ले गए साथ
शहीद नगर की डेजीरानी कहती है कि उनके दो बेटे हैं, लेकिन अब वह दुनिया में खुद को अकेला महसूस करती हैं। दोनों बेटे बाहर रहते हैं। मैंने बेटों से कई बार कहा कि अपने साथ ले जाए। लेकिन वह लेने नहीं आए। पहले तो अकेली ही रहती थी। लेकिन तबीयत खराब हुई तो कोई पानी देने वाला भी नहीं था। इसलिए आश्रम में आना पड़ा। मुझे अपने घर की बहुत याद आती है।

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अकेले में ज्यादा रोना आता है
राजामंडी की रहने वाली कमला देवी कहते हुए रो पड़ी कि मन्नतों के बाद बेटा पैदा हुआ था। न जाने कहां कहां सिर नहीं झुकाया बेटे के लिए लेकिन बेटा, बहू मुझे अब घर में नहीं रहने देते। आए दिन मेरे साथ मारपीट करते हैं। परेशान होकर घर छोड़ना पड़ा। कभी कभी अकेले में बहुत रोती हूं। मैं भी अपने घर में आखिरी सांस लूं यह चाहती थी। लेकिन अब यह सपना सा ही लगता है।
