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जिन औलादों के लिए अपनी खुशियों का त्याग किया, जिनकी सलामती के लिए न जाने कितनी बार मन्नतें मांगी। व्रत रखा और पाल-पोस कर बड़ा किया। उन्होंने बुढ़ापे की लाठी बनने के बजाय बेगाना कर दिया है। लिहाजा वृद्धाश्रम में शरण लेना पड़ रहा है। इन मांओं का दिल अभी भी इसको स्वीकार नहीं कर रहा है और हर किसी से कहती हैं कि कोई कह दे मेरे लाल से कि वह उन्हें घर ले जाए।
आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में बीते एक सप्ताह में मनोरमा देवी, कपूरी वर्मा, रामकुमार शर्मा आदि 10 बुजुर्ग आएं हैं। इसमें आठ महिलाएं और दो पुरुष हैं। बेटे-बहू ने इनके साथ बुरा व्यवहार किया, लेकिन फिर भी अपने घर लौटने के लिए आतुर हैं। उन्हें अपनों की याद सता रही है। माएं रोकर कहती हैं कि बेटा आ जाए तो घर चले जाएं।