मूवी रिव्यू
‘Kuttey’ की कहानी
कहानी थोड़ी जटिल है, जिसकी शुरुआत होती है नक्सली लक्ष्मी (कोंकणा सेन शर्मा) से, जो पुलिस की हिरासत में है और उसके साथ पुलिसकर्मी पाजी (कुमुद मिश्रा) के विरोध के बावजूद सीनियर पुलिस अफसर बलात्कार करता है, मगर तभी नक्सलियों की टोली पुलिस स्टेशन पर हमला कर लक्ष्मी को छुड़ा ले जाते हैं। अब कहानी 13 साल आगे बढ़ चुकी है और गोपाल (अर्जुन कपूर) और पाजी (कुमुद मिश्रा) को वर्दीवाले गुंडे बन चुके है। ये कहने को तो पुलिस विभाग में हैं, मगर काम ड्रग तस्कर और कुख्यात लोगों के लिए करते हैं। जाना-माना गैंगस्टर भाऊ (नसीरुद्दीन शाह) अपने प्रतिद्वंद्वी सूरती (जय उपाध्याय) को खत्म करने की सुपारी इन दोनों को देता है। ये दोनों खतरनाक खूनी खेल के बाद अपने काम को अंजाम देकर ठिकाने से ड्रग्ज लूट कर खुशियां मनाते हुए निकल पड़ते हैं, मगर तभी राह में इन्हें इन्हीं के विभाग के सीनियर अधिकारी दबोच लेते हैं। अब दोनों को सस्पेंड करने की कवायद चलने लगती है, तभी इन्हें पता चलता है कि इनकी जान बख्शी पुलिस की अधिकारी पम्मी (तब्बू) करवा सकती है। ये दोनों पम्मी के पास जाते हैं। पम्मी उनका निलंबन रुकवाने के लिए दो करोड़ की मांग रखती है। इतनी बड़ी रकम का जुगाड़ करने के लिए ये लोग कैश से भरी एटीएम की वैन को लूटने का प्लान बनाते हैं। मगर तभी भाऊ बेटी (राधिका मदान) भी अपने प्रेमी के साथ घर से भागने की प्लानिंग से पहले उस एटीएम वैन को लूटने की रणनीति बना बैठती है। कहानी में एक-दूसरे को नोचने -खसोटने का सिलसिला चल ही रहा है कि लक्ष्मी का नक्सली ग्रुप भी आ धमकता है। अब देखना ये है कि इस कुत्ते-बिल्ली के खेल में कैश किसके हाथ लगता है।
‘कुत्ते’ का रिव्यू
कुत्ते एक उपसंहार, 3 अध्याय और एक प्रस्तावना में विभाजित की गई फिल्म है। प्रस्तावना लक्ष्मी बॉम्ब, पहला अध्याय ‘सबका मालिक एक’, दूसरा चैप्टर ‘आता क्या कनाडा’, तीसरा ‘मूंग की दाल’ और अंत में उपसंहार। ये एक बेहद ही डार्क थ्रिलर है और इस सुर को आसमान पहले ही चैप्टर में सेट कर लेते हैं। फिल्म का हर किरदार ग्रे है या यों कहिए काला है। यहां तक की नायक अर्जुन कपूर भी खलनायकी के रंग में रंगा है। इस डार्क टोन को बनाए रखने के लिए आसमान किरदारों और बैकड्रॉप का बखूबी इस्तेमाल करते हैं, मगर कहानी में कई ट्रैक्स और सब ट्रैक्स हैं, जो मध्यांतर तक कहानी को उलझा कर रख देते हैं। आपका अगर एक मिनट को भी ध्यान भटका, तो आप कहानी से अपनी पकड़ खो देंगे। मगर मध्यांतर के बाद उलझी हुई कड़ियां एक-दूसरे से जुड़ने लगती हैं और दर्शक के रूप में आप लालची, स्वार्थी और विश्वसघाती किरदारों के बीच खुद को पाकर स्तब्ध रह जाते हैं। गीत-संगीत फिल्म के सिचुएशन के साथ न्याय करते हैं। फैज अहमद का गीत हो या गुलजार का फिल्म में अलग रंग भरता है। बैकग्राउंड स्कोर दमदार है। विशाल भारद्वाज का कमीने का ‘ढैन टेनान’ म्यूजिक इधर भी करंट पैदा करता है, तो वहीं उनके संवाद भी चुटीले हैं। क्लाइमेक्स में नोटबंदी के मुद्दे को जिस तरह से पेश किया गया है, वो अपने आप में कम मजेदार नहीं है।
कुत्ते फिल्म का ट्रेलर (Kuttey Trailer)
‘कुत्ते’ की कास्ट
फिल्म में कई दिग्गज कलाकार हैं और हर कलाकार उम्दा साबित हुआ है, मगर नसीरुद्दीन शाह और अनुराग कश्यप जैसे कलाकारों को ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला है। हालांकि नसीर छोटे से रोल में अपनी भावभंगिमाओं से मजे करवाते हैं। तब्बू ग्रे कैरेक्टर की कई विलक्षणताओं के साथ आगे बढ़ती हैं, तो कोंकणा सेन शर्मा पावर पैक्ड परफॉर्मेंस में नजर आती हैं। अर्जुन कपूर लालची, पाखंडी और विश्वासघाती किरदार में जान डाल देते हैं। राधिका मदान अपनी भूमिका में याद रह जाती हैं। कुमुद मिश्रा की अदाकारी मजेदार है। सहयोगी कास्ट मजबूत है।