मूवी रिव्यू: विक्रम वेधा

 

ऐक्टर:

रितिक रोशन,सैफ अली खान,राधिका आप्टे,शारिब हाशमी,रोहित सराफ,सत्यदीप मिश्राz

डायरेक्टर : पुष्कर,गायत्रीश्रेणी:Hindi, Action, Crime, Thrillerअवधि:2 Hrs 40 Minरिव्यू लिखें

विक्रम बेताल की कहानी हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं कि किस तरह बेताल राजा विक्रमादित्य को अपनी कहानियों के जाल में फंसाकर हर बार एक ऐसा सवाल खड़ा कर देता है कि राजा को उसका जवाब देना ही पड़ता है। असल में बेताल ने राजा विक्रमादित्य के सामने एक शर्त रखी थी कि उसे चुप रहना होगा और अगर प्रश्न का उत्तर जानते हुए वह चुप रहा, तो बेताल उसका सर टुकड़े-टुकड़े कर देगा और वह बोला, तो बेताल दोबारा उसी पेड़ पर लटक जाएगा, जहां से खींचकर राजा उसे योगी के पास ले जा रहा था। निर्देशक पुष्कर-गायत्री की विक्रम वेधा में विक्रम है स्पेशल टास्क फोर्स का अफसर सैफ अली खान और वेधा उर्फ बेताल है, गैंगस्टर रितिक रोशन। निर्देशक द्वय पुष्कर-गायत्री इसी नाम से तमिल में सुपर हिट फिल्म बना चुके हैं। मूल फिल्म में आर माधवन और विजय सेतुपति थे।निर्देशक की इस जोड़ी ने ने विक्रम-बेताल की पौराणिक परिकल्पना को पुलिस और अपराधी के साथ जोड़कर एक ऐसी कहानी रची है, जहां दर्शक के मन में अच्छाई और बुराई के बीच की लाइन ब्लर हो जाती है।

विक्रम वेधा की कहानी (Vikram Vedha Story)
कहानी यों देखी जाए तो चोर-पुलिस की ही है, जहां विक्रम और उसकी स्पेशल टास्क फोर्स का गठन इसलिए किया जाता है कि वे खूंख्वार और शातिर गैंगस्टर वेधा को पकड़कर उसकी अराजकता पर लगाम लगा सके। वहां अंडरग्राउंड हो चुके वेधा को अपने बिल से निकालने के लिए विक्रम की टीम जाल बिछा रही होती है, यहां वेधा खुद प्रकट होकर पुलिस के समक्ष आत्म्सपर्पण कर लेता है और तो और वह अपने वकील के रूप में विक्रम की वकील पत्नी राधिका आप्टे को पेश करता है। इसके बाद शुरू होता है, विक्रम-वेधा के बीच चूहे-बिल्ली का खेल। इस खेल में विक्रम का जिगरी यार अब्बास (सत्यदीप मिश्रा) उसकी बीवी और उसकी पूरी टीम शामिल होती है, तो दूसरी तरफ वेधा के पक्ष में उसका भाई शतक (रोहित सराफ), चन्दा (योगिता बिहानी) और बबलू भैया (शारिब हाशमी) समेत गैंग के कई लोग हिस्सा बनते हैं। हर बार विक्रम वेधा को अपनी जांबाजी से पकड़ तो लेता है, मगर वेधा उसे अपनी कहानियों और उनसे जुड़े प्रश्नों में ऐसा उलझाता है कि उनका जवाब ढूंढने के चक्कर में विक्रम को अहसास होता है कि सफेद जितना उजला लगता है, उतना है नहीं और जिस काले को वो गहरा समझता आया था, वह भी उतना स्याह नहीं है। क्या कहानियों के इस मकड़जाल के बाद अंत में विक्रम वेधा को अपनी गिरफ्त में ले पाता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

विक्रम वेधा का रिव्यू (Vikram Vedha Review)
पुष्कर-गायत्री की फिल्म प्लॉट को डेवलप करने में ज्यादा समय लगा लेती है। यही वजह है कि फिल्म का पहला भाग लंबा और खिंचा हुआ लगता है। रितिक रोशन की एंट्री भी लेट होती है, मगर जब सैफ और रितिक आमने-सामने आ जाते हैं, तब कहानी में जान आ जाती है। दूसरे भाग में फिल्म टर्न और ट्विस्ट के साथ सरपट दौड़ने लगती है। रितिक की हर कहानी के बाद एक सवाल और उस सवाल में छिपा एक राज दिलचस्पी जगाता है। निर्देशक पुष्कर-गायत्री ने अपनी जुगलबंदी में कानपुर-लखनऊ को फिल्म के बैकड्रॉप में पेश किया है और इसमें कोई शक नहीं कि सिनेमैटोग्राफर पी एस विनोद के कैमरे के लेंस से लखनऊ और कानपुर को अलग अंदाज में देखने का मौका मिलता है। एक्शन रोंगटे खड़े कर देने वाला है। खास तौर पर चेजिंग सीन और रेलवे यार्ड के कंटेंट का दृश्य। हां, फिल्म की लंबाई को आप फिल्म की कमी कह सकते हैं। फिल्म में सैफ-राधिका और रोहित-योगिता की प्रेम कहानी को थोड़ा और डेवलप किया जा सकता था। हालांकि निर्देशकों ने हिंदी फिल्म में मूल फिल्म की तुलना में कोई बदलाव नहीं किया है। फिल्म में कुछ सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं, जैसे वेधा अपने इलाके का मसीहा क्यों है? चंदा चोरी करके क्यों भागती है? आदि। मगर फिल्म का क्लाइमेक्स पूरी तरह से बाजी मार ले जाता है। बैकग्राउंड स्कोर दमदार है। संगीत की बात करें, तो अल्कोहलिया गाने में रितिक के डांस का जलवा और कोरियोग्राफर की बेहतरीन कोरियोग्राफी देखने को मिलती है, मगर आप इस सोच में जरूर पड़ जाते हैं कि ये गाना अचानक कहां से आ गया? हालांकि फिल्म में जीना इसी का नाम है, गाने को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया गया है।

विक्रम वेधा का ट्रेलर

अगर ये कहा जाए की विक्रम वेधा रितिक की फिल्म है, तो गलत न होगा। वेधा के रूप में उनके दो पहलू, जैसे एक निर्मम हत्यारा और दूसरा एक जज्बाती भाई, दोनों ही पहलुओं को रितिक ने खूबसूरती से साकार किया है। रितिक की एंट्री काफी धांसू है, वे अपने किरदार की परतों को जीने में सफल रहते हैं। हालांकि रितिक के साथ-साथ सैफ भी फिल्म के दूसरे आधार स्तंभ साबित होते हैं। एक ईमानदार कॉप को उन्होंने जबरदस्त तरीके से निभाया है। अच्छे-बुरे के द्वंद्व के बीच झूलते सैफ, एनकाउंटर करते सैफ का स्क्रीन प्रेसेंज रंग जमाता है। ये दोनों ही अदाकार अपनी कलाकारी से सिनेमा में लुप्त से हो चुके हीरोइज्म को दोबारा लाने में कामयाब रहे हैं। राधिका आप्टे ने अपने सीमित स्क्रीन स्पेस में अपनी भूमिका संग न्याय किया है। फिल्म का सरप्राइज पैकेज हैं शारिब हाशमी। शारिब हमेशा से समर्थ अभिनेता रहे हैं, मगर इस इस बार उन्हें अपनी अदाकारी दिखाने का पूरा-पूरा मौका मिला है। उन्होंने उसे निभाया भी खूब है। रोहित सराफ अच्छे लगते हैं। सत्यदीप मिश्रा, योगिता बिहानी और सहयोगी कलाकार मजबूत हैं।