कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. लेकिन MP के 2 गांवों ने इस कहावत को ग़लत साबित कर दिया. यहां के लोगों ने 20 साल तक मेहनत कर बंजर पड़ी भूमि को 1,030 एकड़ के जंगल में बदल दिया है. अपनी बंजर भूमि को हरियाली में बदलने वाले मानेगांव और डूंगरिया नाम के ये गांव MP के सागर जिले में बसे हैं.
आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसकी शुरुआत इफको की एक परियोजना के साथ हुई थी. 12 अक्टूबर 1998 को, एक पायलट परियोजना के हिस्से के रूप में, इफको ने एक जंगल विकसित करने के लिए एक बंजर पहाड़ी के खंड पर दो लाख पेड़ लगाए, जिसका उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और ईंधन प्रदान करना था.
इस परियोजना को भारत-कनाडाई पर्यावरण सुविधा द्वारा वित्त पोषित किया गया था और ग्रामीणों को इस जंगल की देखभाल में मदद करने के लिए 5,000 रुपये प्रति माह का वजीफा दिया गया था. साल 2002 में ICEF की फंडिंग खत्म हो गई और ग्रामीणों को मिलने वाली आर्थिक मदद बंद हो गई. लोगों ने काम करना बंद किया तो कुछ महीनों के भीतर पौधे मरने लगे.
ऐसे में ग्रामीण आगे आए और उन्होंने फ्री में पौधों की देखभाल करना शुरू की. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक स्थानीय किसान और सामाजिक कार्यकर्ता रजनीश मिश्रा ने ग्रामीणों को पेड़ों की देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित किया था. मिश्रा बताते हैं, ‘इफको ने जो पौधे यहां लगाए थे, वे लगभग मर गए थे. उन्हें बहुत अधिक देखभाल और सिंचाई की आवश्यकता थी. लोगों की मेहनत से वो फिर से जीवित हो गए. ग्रामीणों ने मानवीय गतिविधियों और मवेशी चराने को रोका. फलस्वरूप धीरे-धीरे देशी पेड़ों की जड़ें फिर से अंकुरित होने लगीं और आज इस जंगल में कई पेड़ हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत सागवान (सागौन) हैं.’
मध्य प्रदेश के ग्रामीणों ने जिस तरह से 20 साल तक मेहनत कर बंजर जमीन को 1,030 एकड़ के एक हरे-भरे जंगल में बदला वो एक मिसाल है.