MP Assembly Election: रीवा और रैगांव के नतीजों से शिवराज सिंह चौहान चौकन्ना हो जाएं, कहीं ढह न जाए बीजेपी का अभेद्द किला, जानिए कारण क्या हैं

MP Assembly Election: रीवा नगर निगम से रैगांव विधानसभा उपचुनाव तक में बीजेपी की बड़ी हार हुई है। इन नतीजों से पहले शिवराज सिंह चौहान को चौकन्ना होने का वक्त आ गया है। आइए आपको इन हार के कारणों को आपको समझाते हैं।

 
shivraj singh chouhan
shivraj singh chouhan: निकाय चुनाव के नतीजों से शिवराज सिंह चौहान के लिए चौंकन्ना होने का वक्त
भोपाल: एमपी निकाय चुनाव (mp nikay chunav result for ) के नतीजे बता रहे हैं कि यह वक्त शिवराज सिंह चौहान के लिए चौकन्ना होने वाला है। रीवा से रैगांव और सीधी से अमरपाटन तक में माहौल बदल गया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में विंध्य के इलाके में बंपर जीत हासिल करने वाली बीजेपी का किला अब ढहने लगा है। बीते छह महीने में हुए दो चुनावों के नतीजे इस इलाके में यही संकेत दे रहे हैं। यह संकेत सिर्फ विंध्य से नहीं चंबल के इलाके से भी मिल रहे हैं। आखिर एमी में बीजेपी का अभेद किला क्यों ढह रहा है। आइए आपको विस्तार से इसके कारण समझाते हैं।

विंध्य क्षेत्र में विधानसभा की 30 सीटें हैं। इन 30 में से 24 सीटों पर 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली थी। इसके बाद 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो विंध्य की सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा हो गया। विंध्य इलाके के लोगों ने बीजेपी को भरपूर समर्थन दिया है। पार्टी ने भी खई वादे किए वो उनमें कई पूरे नहीं हुए हैं। उसका नतीजा यह हो रहा है कि बीजेपी बीते छह महीनों में विंध्य इलाके में कई चुनाव हार गई। यह शिवराज सिंह चौहान के लिए सबसे शॉकिंग हैं।

अनदेखी से नाराज
इस इलाके में जनता ही नहीं नेताओं में भी भारी नाराजगी है। 2020 में जब दोबारा प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार बनी तो विंध्य क्षेत्र के लोगों को कैबिनेट में जगह नहीं मिली। ऐसा पहली बार हुआ जब शिवराज कैबिनेट में उस इलाका प्रतिनिधित्व नहीं रहा। रीवा के दिग्गज नेता राजेंद्र शुक्ला समेत कई लोग दावेदार थे। शुक्ला सीएम की गिनती सीएम के करीबी लोगों में होती है। मगर उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली। इस बार रीवा मेयर चुनाव जीताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर थी लेकिन पार्टी हार गई।

विंध्य इलाके में कई बड़े क्षेत्र हार गई बीजेपी
एमपी निकाय चुनाव से पहले रैगांव विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुआ था। सरकार ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी रोड शो किया था। नतीजे आए तो वह पार्टी के लिए शॉकिंग थी। रैगांव से कांग्रेस की कल्पना वर्मा चुनाव जीत गईं।

निकाय चुनाव में हो गया बड़ा खेल
वहीं, निकाय चुनाव 2022 में बड़ा खेल हो गया है। बीजेपी को विंध्य इलाके में बड़ा झटका लगा है। इस क्षेत्र में तीन नगर निगम है। रीवा, सतना और सिंगरौली है। रीवा पर कांग्रेस और सिंगरौली पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया है। वहीं, सतना में मामूली अंतर से जीत हुई है क्योंकि बीएसपी से चुनावी मैदान में कांग्रेस का बागी उतर गया था। इसकी वजह सतना में बीजेपी को फायदा हो गया। बीजेपी रीवा और सिंगरौली जैसे अपने गढ़ को गवां दी है। यह पार्टी नेतृत्व और शिवराज सिंह चौहान को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

बड़े नेताओं में नाराजगी

दरअसल, विंध्य इलाके के नेताओं को कथित रूप से संगठन और सरकार में उतनी तवज्जो नहीं मिलती है। इसके कारण कई नेताओं में नाराजगी थी। 2022 में जब कैबिनेट में जगह नहीं मिली थी तो खुलकर कई नेताओं ने अपनी बात रखी थी। उस क्षेत्र के लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए शिवराज सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी विंध्य क्षेत्र से आने वाले गिरीश गौतम को दी। इसका ज्यादा असर नहीं दिखा।

रैगांव से रीवा तक हार
बीजेपी बीते छह महीने में रैगांव उपचुनाव और रीवा नगर निगम में मेयर चुनाव हार गई। इससे साफ होता है कि इस इलाका में सरकार की छवि वैसी नहीं रही है। अब लोगों का बीजेपी से भरोसा टूट रहा है। साथ ही सीधी नगरपालिका में भी बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया है। यह शिवराज सिंह चौहान के लिए चिंता का विषय है। दोनों ही चुनावों में उन्होंने कई रोड शो किए थे।

सुविधाओं और रोजगार की कमी

स्थानीय जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र से पलायन बड़े पैमाने पर होता है क्योंकि लोगों के लिए यहां रोजगार की व्यवस्था नहीं है। रैगांव से रीवा तक के चुनाव में यह बड़ा मुद्दा रहा है। इसके साथ ही विंध्य क्षेत्र में सुविधाओं की भी भारी कमी है। उच्च शिक्षा के लिए लोगों को भोपाल जैसे शहरों का रूख करना पड़ता है। साथ ही आय कम होने की वजह से महंगाई से भी लोग बेहाल हैं। इन सारे मुद्दों का असर इस इलाके में दिखा है।

ग्वालियर-चंबल भी दरक गया
सिर्फ विंध्य ही नहीं ग्वालियर-चंबल में बीजेपी ने बड़ी सेंधमारी की है। स्थानीय नेताओं से ज्यादा शिवराज सिंह चौहान की छवि को भी झटका लगा है क्योंकि दो दशक से एमपी में बीजेपी शिवराज सिंह चौहान का चेहरा ही आगे कर चुनाव लड़ रही है। तीन इलाकों में बीजेपी के अभेद किलों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। ऐसे में उनके लिए यह चौकन्ना होने का वक्त है।

अगले साल है विधानसभा चुनाव

एमपी में 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। गिनकर एक साल का वक्त है। उससे पहले निकाय चुनाव के जो नतीजे आए हैं, वह बीजेपी के लिए एक चेतावनी है। समय रहते अगर बीजेपी नहीं संभली तो आगामी चुनावों में नतीजे अच्छे नहीं आएंगे। 2018 के विधानसभा चुनाव में ऐसा ही कुछ देखने को मिला था।

बीजेपी के सिमटने के कारण
1. बीजेपी में बीते कुछ सालों में गुटबाजी चरम पर है। पार्टी अलग-अलग क्षेत्रों में कई खेमों बंट गई है।
2. इसके साथ ही पार्टी के पुराने नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है। पूछ परख नहीं होने के कारण उनकी कोई दिलचस्पी संगठन में नहीं है।
3. पुराने नेता बीच-बीच में दर्द बयां करते रहते हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है। पूर्व सीएम उमा भारती इन दिनों अलग राप अलाप रही हैं मगर कोई नोटिस नहीं ले रहा।
4. सरकार सड़कों के निर्माण को लेकर करोड़ों रुपये खर्च करती है। बड़े शहर की सड़कों में आपको भरपुर गड्ढे मिल जाएंगे। नई सड़कें एक साल से ज्यादा नहीं चलती है इसकी वजह भ्रष्टाचार है। भोपाल और इंदौर में इसके भरपुर उदाहरण मिल जाएंगे। इससे आमलोगों में नाराजगी।

5. वहीं, सरकार रोजगार के मुद्दे पर कुछ खास नहीं कर पाई। सरकारी भर्तियां विवादों में पड़कर उलझी हैं। रोजगार मेले के लिए बेरोजगारों को आठ से दस हजार की नौकरी मिलती।
6. इसके साथ ही कुछ जगहों पर जातिगत समीकरणों ने भी पार्टी का खेल बिगाड़ दिया है। प्रयोग के चक्कर में पार्टी को उल्टा दांव पड़ गया। सिंगरौली में ब्राह्मण वोटरों की नाराजगी पार्टी को भारी पड़ी है।