Awadhesh Rai Murder Case: अजय राय ने एनबीटी ऑनलाइन से बात करते हुए बताया कि 2007 तक अदालती लड़ाई में कागजात मौजूद थे। 3 अगस्त 1991 को मेरे बड़े भाई की हत्या की गई थी। चेतगंज थाने में इस मामले में नामजद मुकदमा दर्ज कराया गया था, लेकिन सरकार चाहे किसी की भी रही ही मुख्तार अंसारी ने इस मामले में भी साजिश के तहत मामले को दबाया और उसके इस साजिश में सभी पार्टियों की सरकार भी शामिल रही हैं।
हर सरकार में मिली है मुख्तार को साजिश करने की छूट- अजय राय
अपने भाई के हत्यारों को सज़ा दिलाने की अदालती लड़ाई लड़ रहे कांग्रेस के अजय राय ने एनबीटी ऑनलाइन से बात करते हुए बताया कि 2007 तक अदालती लड़ाई में कागजात मौजूद थे। 3 अगस्त 1991 को मेरे बड़े भाई की हत्या की गई थी। चेतगंज थाने में इस मामले में नामजद मुकदमा दर्ज कराया गया था, लेकिन सरकार चाहे किसी की भी रही ही मुख्तार अंसारी ने इस मामले में भी साजिश के तहत मामले को दबाया और उसके इस साजिश में सभी पार्टियों की सरकार भी शामिल रही हैं। 2007 के बाद से ही पहले सपा और अब बीजेपी की सरकार ने भी इस मामले पर ध्यान नहीं दिया। मिलीभगत का सबसे बड़ा उदाहरण कृष्णानंद राय हत्याकांड में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद मुख्तार अंसारी का बरी हो जाना है। बड़े भाई की हत्या का मुकदमा वाराणसी के एमपी एमएलए कोर्ट में चल रहा है। मेरे साथ ही मुख्य गवाहों की सुरक्षा कोर्ट के माध्यम से मिली है। 2017 से लेकर 2022 तक योगी सरकार ने भी दस्तावेजों को संभालने में कोई रुचि नहीं दिखाई। जब कोर्ट में सवाल उठाए गए, तब जाकर अब कैंट थाने के स्थानीय चौकी इंचार्ज के माध्यम से मुकदमा दर्ज कराया गया है।
मुख्तार अंसारी पर आपराधिक साजिश के तहत हुआ मुकदमा दर्ज
अवधेश राय हत्याकांड से जुड़े मूल पुलिस डायरी का गायब होना अब कमिश्नरेट पुलिस के लिए गले की हड्डी बन गई है। कई दिनों तक सुनवाई सिर्फ इसलिए टलती रही कि इस हत्याकांड से जुड़े पुलिस डायरी की मूल प्रति ही फ़ाइल से दर्ज है। एमपी एमएलए कोर्ट की सख्ती के बाद जब कमिश्नरेट पुलिस ने कागज़ात की खोजबीन शुरू की तो पता चला कि पुलिस डायरी ही गायब है। अब इस मामले में कैंट थाने में चौकी इंचार्ज विनोद कुमार मिश्र की तरफ से मुख्तार अंसारो को 120-B और 409 के तहत आरोपी बनाया गया है। दर्ज एफआईआर के अनुसार साफतौर पर मुख्तार अंसारी पर आरोप लगाया गया है कि मामले को लटकाने के उद्देश्य से मुख्तार अंसारी ने अपने खास लोगों के साथ मिलकर मूल केस डायरी को गायब कराया है, लेकिन एक बड़ा सवाल है कि आखिर 31 साल पुराने मामले में 2007 तक मूल दस्तावेज मौजूद थे तो मूल केस डायरी को कब गायब किया गया? मुख्तार अंसारी के वो करीबी लोग क्या अब भी योगी आदित्यनाथ के शासन में भी प्रभावी बने हुए हैं ? अब मामला दर्ज होने के बाद जांच में कुछ और खुलासे जल्द हो सकते हैं।