सरसों के भूसे से बनी खाद की उत्पादन क्षमता गेहूं के भूसे से बनाई खाद से ज्यादा है। गेहूं के भूसे से तैयार 100 किलो खाद पर 18 किलो मशरूम उगाई जा सकती है।
देशभर में अब सरसों के भूसे की खाद पर मशरूम तैयार हो सकेगी। जिससे न केवल मशरूम का उत्पादन बढ़ेगा बल्कि मशरूम उगाने का खर्चा भी कम होगा। खुंब निदेशालय सोलन के वैज्ञानिकों ने यह नई तकनीक विकसित की है। गेहूं के भूसे, गन्ने की खोई समेत पराली का विकल्प होगा। वर्तमान में गेहूं का भूसा महंगे दामों में मिलने से प्रदेश के 50 फीसदी मशरूम ग्रोवरों ने मशरूम उत्पादन कार्य बंद कर दिया है। अब यह विकल्प इनके लिए लाभदायक होगा।
देश में 70 प्रतिशत उत्पादन बटन मशरूम का होता है। आमतौर पर इस मशरूम को तैयार करने के लिए गेहूं के भूसे का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा धान की पराली और गन्ने की खोई पर भी मशरूम उगाया जा रहा है। विशेषज्ञों का दावा है कि सरसों के भूसे की संरचना कठोर होती है। इसमें कार्बन की मात्रा भी अधिक पाई जाती है। इस कारण इसमें जल ग्रहण की क्षमता भी कम होती है।
इससे मशरूम खाद तैयार करना भी आसान होता है। निदेशालय की ओर से किए गए प्रयोग में साबित हुआ है कि सरसों के भूसे से बनी खाद की उत्पादन क्षमता गेहूं के भूसे से बनाई खाद से ज्यादा है। गेहूं के भूसे से तैयार 100 किलो खाद पर 18 किलो मशरूम उगाई जा सकती है। जबकि सरसों पर 20 किलो होगी। इसके अलावा धान पराली से तैयार खाद पर सिर्फ 13.75 किलोग्राम उत्पादन होगा। संवाद
ग्रोवरों को दिया जाएगा प्रशिक्षण
सरसों के भूसे पर भी अब मशरूम की खाद तैयार होगी। इससे जहां उत्पादन बढ़ेगा, वहीं खर्चा भी कम होगा। प्रदेश में मशरूम तैयार करने के लिए कच्चा माल ग्रोवरों को महंगा पड़ रहा है। इसमें गेहूं के भूसे से एक टन खाद तैयार करने के लिए 4,390 रुपये का खर्चा आता है। वहीं सरसों की तुड़ी पर 1,936 रुपये तक का होगा। प्रदेश में सरसों का भूसा भी आसानी से उपलब्ध हो सकता है। इसमें सरसों भूसे से मशरूम खाद तैयार करने का प्रशिक्षण भी निदेशालय ग्रोवरों को भी देगा। – डॉ. वीपी शर्मा, निदेशक, खुंब अनुसंधान निदेशालय सोलन