मशरूम… स्वाद-पौष्टिकता ही नहीं खेती की ज्यादा चर्चा, मुनाफे की वजह से प्रोफेशनल भी हो रहे आकर्षित

पिछले कुछ वर्षों में किसानों की समस्याओं को लेकर बात तो शुरू हुई है, लेकिन उसका हल निकलता नहीं दिखा है. न्यूनतम समर्थन मूल्य से लेकर अब आए किसान बिल तक के मुद्दों पर किसान लगातार आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन इससे उनके आर्थिक स्थिति पर असर नहीं पड़ा है.

ऐसी स्थिति में अब किसान थोड़ा स्मार्ट होने लगे हैं. किसान ही नहीं प्रोफेशनल भी ‘स्मार्ट किसान’ बनने के लिए एमएनसी की नौकरियां छोड़कर आ रहे हैं और न सिर्फ खेती कर रहे हैं, बल्कि मुनाफा भी कमा रहे हैं.

इनमें मशरूम की खेती एक ट्रेंडिंग टॉपिक है. इन दिनों इस पर खूब बात होता है. और, बात में ही ऐसे किसान या प्रोफेशनल की मिसाल दी जाती है जिन्होंने मशरूम की खेती की और दोगुना-चार गुना मुनाफा कमाए. मशरूम के तीन प्रकार होते हैं. 1. बटन मशरूम. 2. ढिंगरी जिसे ऑयस्टर मशरूम भी कहते हैं और 3. दूधिया जिसे मिल्की मशरूम भी कहते हैं.

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मशरूम की खेती साल में तीन बार हो सकती है. ये मशरूम के प्रकार पर निर्भर करती है. मसलन ढ़िगरी मशरूम की खेती सितंबर से मिड नवंबर तक होती है. इसके बाद बटन मशरूम की खेती फरवरी मार्च में होती है तो मिल्की मशरूम की खेती जून-जुलाई में होती है. ऐसे में मशरूम की खेती साल भर का काम है  और साल भर मुनाफा कमाया जा सकता है.

बटन मशरूम

ये कम तापमान वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है. हालांकि, कई जगह लोग एयर कंडिशन लगाकर तापमान मैनेज कर लेते हैं. वहीं, ग्रीन हाउस तकनीक का भी इस्तेमाल होता है. मशरूम की खेती में उसके बीज (स्पान) की क्वालिटी का विशेष योगदान होता है. ऐसे में अधिकतम एक महीने पुराना ही स्पान इस्तेमाल किया जाता है.

इसकी खेती में नमी का विशेष ध्यान रखा जाता है. तापमान भी 22 से 26 डिग्री सेल्यिस के बीच ही रखने की कोशिश करनी चाहिए. इसकी खेती में इसे रोगों से बचाने के लिए उपाय करने की जरूरत होती है. कम्पोस्ट जितना बेहतर बनाएंगे खेती उतनी अच्छी होती है.

ऑयस्टर मशरूम/ ढिंगरी मशरूम

इसके लिए स्पान मतलब बीज अधिकतम 7 दिन पुराना होना चाहिए. इसके बाद भूसा, पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन और स्पान को लेकर काम आगे बढ़ाया जाता है. दस किलो भूसे में एक किलो स्पॉन की जरूरत होती है. 

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इसकी खेती 15 से 30 दिन में तैयार हो जाती है. ये बैग में चारों तरफ निगलते हैं. इस मशरूम की एक अच्छी बात ये होती है कि इसे किसान सुखाकर भी बेच सकते हैं. इसका स्वाद भी सबसे अलग होता है.

मिल्की मशरूम

यह दूध की तरह सफेद होता है, इसलिए इसे मिल्की मशरूम कहते हैं. सुखाने के बाद भी इसका रंग सफेद ही होता है. यह गर्मी के मौसम में भी अच्छी उपज देता है. इसे अप्रैल से सितंबर के महीने में भी आसानी से उगा सकते हैं.

 

30 डिग्री सेल्यिस से ज्यादा तापमान पर भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है. इसकी उपज क्षमता 60 से 70 फीसदी होती है. 

लोगों को मिल रही है ट्रेनिंग

हर राज्य के कृषि अनसंधान केंद्र की तरफ से मशरूम की खेती के लिए बकायदा ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जाता है. ये ट्रेनिंग प्रोग्राम 1 हफ्ते से लेकर 1 महीने तक का होता है. इसके लिए बकायदा रजिस्ट्रेशन होता है और उसी के हिसाभ से कोई भी ट्रेनिंग में पार्टिशिपेट कर सकता है. हालांकि, कई यूनिवर्सिटी और कॉलेज भी अपने यहां मशरूम की खेती के लिए वर्कशॉप करा रही हैं.

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खेती के लिए कितनी जगह की जरूरत

मशरूम की खेती के साथ सबसे अच्छी बात यही है कि इसके लिए आपको किसी बड़े जगह की जरूरत नहीं है. आप इसे एक छोटे से जगह में भी कर सकते हैं. लोग कमरों में भी मशरूम उगा रहे हैं तो खेतों में भी. पैकेट्स में भी उगा रहे हैं तो बकायदे रैक बनाकर भी. बस इसके लिए आपको सामान्य ट्रेनिंग लेने की जरूरत है. इसके बाद आप इसे आसानी से छोटी जगह पर भी उगा सकते हैं.