जिला मुख्यालय के साथ लगते माता भुवनेश्वरी मंदिर भेखली में 5 दिवसीय बदौर काहिका का समापन हुआ। देव परम्परानुसार पहले नड़ जाति के देवलु की मौत हुई और फिर देव शक्ति से उसे जीवित किया गया। इस देव कारज को देखने के लिए भेखली में हजारों लोगों की भीड़ जुटी। देव परम्परानुसार माता के गुर ने नड़ की छाती पर तीर से प्रहार किए, जिससे नड़ एकाएक जमीन पर अचेत होकर गिर गया तथा उसकी नब्ज टूट गई। इसके बाद उसे पंचरत्न दिया तथा कफन चढ़ाया गया और फिर जनाजे की शक्ल में उसे मंदिर में चक्कर लगाते हैं और जहां शुरू हुआ उसे पुन: जीवित करने का सिलसिला। काफी जदोजहद के बाद नड़ जीवित हो उठा। उसे देवता का शेष दिया गया और समूचा वातावरण खुशी से झूम उठा। धीमी पड़ी देव वाद्य यंत्रों की स्वरलहरियां भी गूंजने लगीं।
10 देवी-देवताओं ने की शिरकत
भेखली में इस बदौर काहिका में 10 देवी-देवताओं ने शिरकत की, जिसमें माता भुवनेश्वरी, सारी नारायण, कश्यप नारायण, बनोगी गढ़पति नारायण नल्हाच, वीर नाथ शिकारीधार, बलौहणी वीरनाथ देवता, जीवा नारायण देवता नथान, माता महिषासुर, मर्दिनी बबेली भृन्दू देवता, बबेली थान देवता शालंग ने शिरकत कर रहे हैं। माता भुवनेश्वरी के पुजारी राकेश शर्मा और माता के गूर विजय शर्मा ने बताया कि देर शाम को नड़ को दैवीय शक्तियों से पुन: जीवित किया, जिसमें लगघाटी के नड़ ओमधन ने अपनी भूमिका निभाई।
यह है मान्यता
भुवनेश्वरी माता के कारदार अंबिका दत्त और बहादुर सिंह ठाकुर ने बताया कि घाटी की सुख-शांति के इस बदौर काहिका का आयोजन 22 वर्षों के बाद किया गया। मान्यता है कि अगर काहिका में नड़ जीवित नहीं होता है तो देवता के रथ की सारी संपत्ति पर नड़ की पत्नी का अधिकार हो जाता है। काहिका उत्सव में देवताओं ने अपनी शक्तियों का साक्षात्कार करते हुए नड़ को जिंदा किया। उन्होंने कहा कि काहिका में भेखली के अन्य देवता भी लाव-लश्कर के साथ शामिल हुए।