Nagaur Fort: भारत का वो किला, जिस पर किसी राजा को नहीं मिली जीत, जानिए इतिहास

नागौर. नागौर का किला विश्व भर में अलग पहचान रखता है क्योकिं इस किले के बारे में कहा जाता है कि इस किले को कोई भी जीत नहीं पाया है, साथ ही यह अपनी बनावट के लिए भी जाना जाता है तथा इस किले का जिक्र महाभारत काल में सुनने को मिलता है. इसी कारण इस किले को अहिछत्रपुर किला भी कहते है तथा इसे नागाणा दुर्ग अविजित किला के नाम से भी जाना जाता है.

स्वर्णिम इतिहास
नागौर का जिक्र महाभारत काल के समय से है उस समय नागौर को अहिछत्रपुर नाम से जाना जाता है. इस किले की सर्वप्रथम नागवंशी राजा ने करवाया जो मिट्टी का किला था, लेकिन 11वीं शताब्दी में पृथ्वीराज के सामंत कैम्बास ने इस किले क का पुनर्निर्माण करवाया जो बाद में ईट व पत्थरों में चुनवाया गया. इस किले का साहसी राजा अमरसिंह को कहा जाता है क्योंकि उन्होंने शाहजहां के साले सलावत खां को मार दिया तथा अंतिम राजा बख्तसिंह थे.

क्यों है प्रसिद्ध
नागौर का किला इसलिए प्रसिद्ध हैं क्योकिं इसकी बनावट एक भव्य तरीके से की गई है. इस किले के निर्माण मे पत्थरो के साथ छोटी- छोटी ईटो का भी उपयोग किया गया, जो इस किले को मजबूती व विशेषता प्रदान करता है. और इस किले के अंदर बादल महल स्थित है जिसमें दिवारों पर हल्के रंगों के प्रयोग करके दिवारों पर अनेक प्रकार की भव्य चित्रकारी की गई है.  इस किले का शीश महल प्रसिद्ध है क्योंकि शीश महल में छोटे-छोटे वह डिजाइन दार कांच के माध्यम से एक अनोखा रूप दिया है.

किले में रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम का बहुत अच्छा प्रबंधन है, क्योंकि इस किले में 4 कुएं तथा दो बड़े- बड़े तालाब बने हुए हैं तथा इस किले में स्कॉयर बरादरी है. जिसमे 36 पिलर से बनी हुई है जो किसी भी दिशा से देखने पर पिलर एक लाईन मे दिखाई देते है और इस किले मे फव्वारा सिस्टम लगा हुआ है.

नहीं मिली किसी राजा को जीत
अहिच्छत्रपुर दुर्ग के बारे में कहा जाता है इस इस किले को कोई भी अन्य आक्रमणकारी जीत नहीं पाया क्योंकि इस किले का बाहरी परकोटे को तीन परतों में निर्माण किया गया है. इसलिए तोप के द्वारा सही निशाना साधने पर या तो गोला दीवारों से टकरा जाता था. अन्यथा किलो बीच में से ऊंचा होने की वजह से और परकोटा थोड़ी ढलान में होने के कारण बारूद का गोला किले के ऊपर से निकल जाता था. इसलिए इस किले को कोई जीत नहीं सका.

वर्तमान में यह किला मेहरानगढ़ ट्रस्ट जोधपुर द्वारा इसकी देखरेख की जाती है और इस किले में रानियों के मेल में एक भव्य हेरिटेज होटल बनी हुई है. साथ ही वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा गया है.