Nagdwari Yatra: सात पहाड़ियां, रहस्मयी दरवाजे, खतरनाक रास्ते… ‘नागलोक’ तक पहुंचने के लिए चाहिए बड़ा जिगरा

Nagdwari Yatra Myth: एमपी के नर्मदापुरम जिले स्थित सतपुड़ा के घने जंगलों में नागलोक है। नागपंचमी से 10 दिन पहले यहां तक पहुंचने के लिए नागद्वारी यात्रा शुरू हो जाती है। दुर्गम और कठिन रास्तों को पार कर लोग नागलोक तक पहुंचते हैं। कमजोर दिल वाले लोग तो दुर्गम और खौफनाक रास्ते को देखकर लौट जाएंगे।

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Nagdwari Yatra: सात पहाड़ियां, रहस्मयी दरवाजे, खतरनाक रास्ते… ‘नागलोक’ तक पहुंचने के लिए चाहिए बड़ा जिगरा
एमपी के नर्मदापुरम जिले में 23 जुलाई से नागद्वारी यात्रा शुरू हो गई है। नागपंचमी के दिन यात्रा खत्म हो जाती है। तीन अगस्त को नागपंचमी है। उससे पहले इस रहस्मयी नागलोक के बारे में आपको बताते हैं। पचमढ़ी से नागलोक तक पहुंचने के लिए दुर्गम और खौफनाक रास्तों को पार करना पड़ता है। इसके बाद गुफा में विराजमान नागदेव के पास पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह नागलोक में पहुंचने से काल सर्प दोष दूर हो जाता है। कोरोना की वजह से यह नागद्वारी यात्रा का आयोजन दो सालों से नहीं हो रहा था। इस बार आयोजन किया गया है तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।

अमरनाथ से भी कठिन है यह यात्रा

नागद्वारी यात्रा की गिनती दुनिया के कठिन यात्राओं में होती है। भारत में हर साल होने वाली अमरनाथ यात्रा से भी नागद्वारी की यात्रा कठिन है। नागलोक तक पहुंचने के लिए पग-पग पर मौत का खतरा है। रास्ते ऐसे कि लोग देखकर ही सिहर जाएंगे। साल में महज 10 दिन के लिए नागलोक तक पहुंचने का दरवाजा खुलता है। रास्ते में श्रद्धालुओं को जहरीले और विषैले सांपों से भी सामना होता है। कई जगहों पर रास्ते ऐसे होते हैं, जिसे देखकर आदमी का हिम्मत जवाब दे देता है।

सात पहाड़ियों को लांघकर पहुंचते हैं नागलोक

नागलोक तक पहुंचने के लिए लोगों को 16 किमी का सफर करना होता है। इस दौरान लोग सात पहाड़ियों का लांघते हैं। इन पहाड़ियों पर सीधी और संकीर्ण रास्ते हैं, जहां से एक बार में एक व्यक्ति ही पार कर सकता है। ऐसे ममें कई जगहों पर सीढ़ियां लगाई गई थीं। इस बार से प्रशासन ने सीढ़ियों को हटवा दिया है। यात्रा के दौरान हर डेग पर खतरा के कारण प्रशासन की तरफ से सुरक्षा के तगड़े इंतजाम होते हैं। नागदेव के मंदिर के पास बिजली तक नहीं होती है।

दो दिन में पूरी होती है नागद्वारी की यात्रा

नागद्वारी मेले के लिए आए श्रद्धालुओं को नागलोक तक पहुंचने और लौटने में दो दिन लगते हैं। इसके बाद नाग मदन मंदिर में पहुंचते हैं। सतपुड़ा के घने जंगलों में पर्वतों के बीच से गुजरने वाले इन रास्तों पर जगह-जगह श्रद्धालुओं ठहराने और खाने पीने की व्यवस्था करने के लिए कई कैंप लगाए गए हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। ऐसे में अलग-अलग प्रदेशों से लाखों लोग जरूर आते हैं। नागपंचमी के दिन यहां लोगों की भीड़ काफी होती है।

100 फीट लंबी गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां

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नागद्वारी यात्रा साल में एक बार होती है। ऐसे में भक्त पूरे साल इसका इंतजार करते हैं। नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। यह गुफा 100 फीट लंबी है, यहां नागदेव की कई मूर्तियां विराजमान है। पहाड़ियों पर एक स्वर्ग द्वार भी है, जहां नागदेव की मूर्तियां ही हैं। नागद्वारी यात्रा पिछले 100 सालों से चल रही है।

शिवलिंग को काजल लगाने की मान्यताएं

वहीं, इस यात्रा को लेकर यह मान्यता है कि सर्पाकार पगडंडियों से अगर आप वहां तक पहुंच जाते हैं तो कालसर्प दोष दूर हो जाता है। साथ ही गोविंदगिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में शिवलिंग में काजल लगाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। गौरतलब है कि नागपंचमी के दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ काफी होती है। इसे लेकर प्रशासन ने विशेष तैयारी की है।