नीम…हर बीमारी की खुराक। शहर के गुन्नुघाट में ‘नीम के पेड़’ की व्यथा रूला देने वाली है। दशकों पहले चारों तरफ कंकरीट बिछा दी गई थी। इसके बाद ट्रकों व बसों पर चढ़कर पत्ते तोड़े जाते रहे। धीरे-धीरे पेड़ सूखने लगा तो लोगों ने छाल को भी उखाड़ना शुरू कर दिया। निश्चित तौर पर पेड़ के पत्तों व खाल का इस्तेमाल औषधीय गुणों की वजह से किया जाता है।
इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए, नीम के पेड़ (Neem Tree) को औषधीय गुणों की वजह से ही ऐसे हालात का सामना करना पड़ा। नीम, अर्जुन, आम व जामुन के पेड़ों की उम्र 80 से 90 साल तक मानी जाती है, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ये पेड़ अंतिम सांसें ले रहा है। हैरान करने वाली बात ये है कि लोगों ने पत्ते तोड़े, छाल तक उखाड़ डाली, लेकिन इसे संरक्षित करने की जहमत नहीं उठाई।
बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षाशालिका (Rain Shelter) के निर्माण से पहले नीम की छांव भी मिला करती थी। लेकिन नगर परिषद ने इसके नीचे दुकानों का निर्माण कर डाला। साथ ही वर्षाशालिका भी बनाई गई
उल्लेखनीय है कि करीब 15 साल पहले लोक निर्माण विभाग विश्रामगृह के समीप एक विशालकाय बरगद ( giant banyan tree) भी अचानक धराशायी हो गया था। बाद में समीप रहने वाले लोगों ने एक नया पौधा रोपित किया, जो धीरे-धीरे विशाल रूप ले रहा है। गुन्नुघाट के नीम के पेड़ ने असंख्य लोगों की मदद की होगी। शहर के बीचों-बीच केवल एकमात्र नीम का पेड़ है।
पर्यावरणविदों (environmentalists) ने कुछ अरसे से नीम के पौधों को रोपने का सिलसिला भी शुरू किया है। इसी क्रम में सेल्फी प्वाइंट के समीप भी एक पौधा चौगान मैदान में रोपा गया। यकीन मानिए, ये पौधा चंद फीट का ही हुआ है, इसके भी पत्ते तोड़े जाने लगे हैं। रोजाना इसे सींचने वाले एक मजदूर का कहना था कि लोग इसे भी नहीं छोड़ रहे। ऐसे में पौधे के पनपने पर भी संशय पैदा हो गया है।