उम्र लर्निंग की मोहताज नहीं होती। हजारों किलोमीटर की दूरी भी कोई मायने नहीं रखती। अमूमन हर कोई खुद को इन बेड़ियों में बांध कर अपनी इच्छा को भीतर ही दबा लेता है। मगर यूएसए में सैटल नाहन की प्रतिभा गोयल ‘छुटकी’ ने इन बेड़ियों को तोड़कर एक ऐसी इबारत लिखी, जिसे जानकर आप भी दंग रह जाएंगे।
योद्धा बनी नाहन की ‘छुटकी’, कलरीपायट्टु में महारत पाने वाली उत्तर भारत की पहली लेडी
तलवारबाजी का प्रशिक्षण करती प्रतिभा गोयल
इन दिनों टीवी पर एक सीरियल ‘झांसी की रानी लक्ष्मीबाई’ प्रसारित हो रहा है। इसमें रानी लक्ष्मीबाई को युद्ध कलाओं में निपुण दिखाया जा रहा है। ये तो कहा नहीं जा सकता कि वास्तव में इस सीरियल में कलरीपायट्टु का मिश्रण है या नहीं, लेकिन रियल लाइफ में प्रतिभा ने युद्ध के कौशल की निपुणता को 49 की उम्र में हासिल किया है।
ये एक ऐसी कला है, जिसमें मामूली सी भी चूक की गुंजाइश नहीं रहती। आत्मरक्षा व हमले के दौरान कुछ भी हो सकता है। योद्धाओं को ऐसी परिस्थिति के लिए तैयार किया जाता है, जिसमें वो बिना हथियार ही दुश्मन का सामना कर सकते हैं।
दुनिया के सबसे पुराने मार्शल आर्ट ‘कलरीपायट्टु को सीखने का जुनून प्रतिभा में यूएसए में बैठकर जाग गया। फिर केरल में इस आर्ट को सीखने के लिए संपर्क हुआ, लेकिन कोविड की बंदिशें सामने थी। लिहाजा, ऑनलाइन ही दीक्षा हासिल करनी शुरू कर दी।
यूएसए में स्टिक रोटेशन की विद्या को पीवीसी पाइप के जरिए सीखना शुरू किया। युद्ध कला के हथियार उर्मी को सीखने के लिए स्कीपिंग रोप का इस्तेमाल किया। बंदिशें हटी तो प्रतिभा सीधे ही केरल जा पहुंची। आप सोचिए कि यूएसए की लग्जरी लाइफ जीने वाली महिला जब केरल की धरती पर छोटी सी ऐसी जगह पर पहुंची, जहां गर्मी के अलावा मौसम भी परेशान करे तो स्थिति क्या होगी। लेकिन प्रतिभा के जुनून के सामने सब कुछ बौना साबित हुआ।
प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभा को कई बार ब्लीडिंग का सामना भी करना पड़ा। खास बात ये थी कि प्राचीन कला का गुर सीखाने वालों ने खून बहने का उपचार भी प्राकृतिक जड़ी बूटियों से ही किया। प्रतिभा का ये कहना है कि तलवार-भाले व ढाल इत्यादि चलाने के दौरान कई बार कट लग जाते थे। इसके लिए आसपास जंगल में मौजूद जड़ी बूटियों का लेप कर दिया जाता।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने प्रतिभा को कलरीपायट्टु की दीक्षा देने वाले बायजू मोहनदास से संपर्क किया। विशेष बातचीत के दौरान बायजू मोहनदास ने कहा कि वो खुद प्रतिभा का जुनून देखकर अचंभित रह गए थे। उन्होंने कहा कि केरल में प्रतिभा को ‘लेडी वॉरियर उन्नियाचा’ का टाइटल दिया गया। उन्होंने बताया कि प्रतिभा लंबे अरसे से ऑनलाइन ही सीख रही थी। फिर यूएसए में ही ही प्रैक्टिस में जुटी रही। आखिर में ऑफलाइन ट्रेनिंग के दौरान खतरनाक हथियारों से खेलने वाली योद्धा बन गई।
योद्धा बनी नाहन की ‘छुटकी’, कलरीपायट्टु में महारत पाने वाली उत्तर भारत की पहली लेडी
अभ्यास करती प्रतिभा गोयल
उधर, विशेष बातचीत के दौरान प्रतिभा गोयल का कहना था कि उम्र सीखने की मोहताज नहीं होती। बड़ा बेटा 23 साल का है तो छोटी बेटी 15 साल की है। परिवार की जिम्मेदारी को बखूबी निभाने के बाद ये मन में आया कि कुछ अपने लिए भी करना चाहिए। इंस्टाग्राम की एक पोस्ट में इस कला के बारे में पता चला था, तभी सीखने का मन बना लिया था।
प्रतिभा ने बताया कि ये प्रशिक्षण हासिल करना आसान नहीं था। मौसम अनुकूल नहीं था। रहन-सहन व खान-पान भी भिन्न था। मगर खूबसूरती इस बात की थी कि वहां प्रशिक्षण देने वाले अच्छे इंसान हैं। तमाम बातों को नकार कर केवल कला को सीखने पर ही ध्यान फोकस किया। वो यूएसए लौटकर इस कला को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगी।
उन्होंने कहा कि ऑनलाइन मिल रही जानकारी को वो यूएसए में रहकर ही प्रैक्टिकल में बदलने का घंटों प्रयास करती रही हैं। हालांकि प्रतिभा अपनी वक्त की एक खूबसूरत बाला था, लेकिन भी शरीर की चंचलता व फिटनेस प्रतिभा को अपनी असल उम्र से 15 से 20 साल कम करती दिखाई देती है।
बता दें कि कॉलेज की पढ़ाई के दौरान प्रतिभा ‘मिस चंडीगढ’ इवेंट की रनरअप रही थी। कथक सीखने का जुनून बचपन से था, लिहाजा इसी विषय में पढ़ाई को आगे बढ़ाया। कथक में प्रतिभा की गुरु पदमश्री ‘शोभना नारायण’ है, जिन्होंने ‘बिरजू महाराज’ से दीक्षा हासिल की हुई है।
ये है कलरीपायट्टु से जुड़ी खास बातें…
कलरीपायट्टु को दुनिया का सबसे पुराना मार्शल आर्ट माना जाता है। इसकी उत्पत्ति दक्षिण भारत के केरल में हुई। कुशल योद्धा को तैयार करने के लिए बेमिसाल तकनीक अपनाई जाती है। कलरी का मतलब स्कूल अथवा व्यायामशाला तो पायट्टु का मतलब होता है युद्ध अथवा व्यायाम करना। मिथारी में शरीर की मजबूती और ताकत बढ़ाने के लिए कसरत करवाई जाती है। योद्धा के लिए शरीर की मजबूती बेहद मायने रखती है।
अंक्थरी के पड़ाव तक पहुंचने के लिए योद्धा लकड़ी के हथियारों से पूरी तरह युद्ध के लायक बना लेता है। समय आने पर असली हथियार दिए जाते हैं। भाले, ढाल व तलवार जैसे खतरनाक हथियार दिए जाते हैं।
योद्धा बनी नाहन की ‘छुटकी’, कलरीपायट्टु में महारत पाने वाली उत्तर भारत की पहली लेडी
कई बार लड़ाई में ऐसे भी मौके आते हैं, जब योद्धा के पास हथियार न हों। ऐसी परिस्थिति के लिए भी योद्धा को तैयार किया जाता है। आखिर में कलरी मार्मा का विशेष प्रशिक्षण होता है। इसका मकसद मानव शरीर के तमाम 107 ऊर्जा बिंदुओं को सक्रिय करना होता है।
ये भी कहा जाता है कि दुनिया के सामने इस कला को लाने वाले भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम थे। केरल में उन्होंने 42 कलरी केंद्र खोले। 11वीं शताब्दी में चोल राजवंश, पांडे राजवंश व चेर साम्राज्य के बीच 100 साल तक चली इस जंग में इस कला का खूब इस्तेमाल किया गया।ऐसा करने वाली पहली प्रवासी भारतीय
विशेष बातचीत के दौरान कलरी के महारथी व प्रतिभा के गुरु बायजू का कहना था कि इस कला को सीखने के लिए आज तक कोई भी उत्तर भारत की महिला नहीं आई। साथ ही 49 की उम्र में इसे सीखना अपने में ही एक रिकॉर्ड है।
उन्होंने ये भी दावा किया कि किसी भी एनआरआई महिला ने ये शिक्षा हासिल नहीं की है। एक सवाल के जवाब में बायजू का ये भी कहना था कि वो प्रतिभा को 10 में से 10 अंक देते हैं, क्योंकि इस कला को सीखने के लिए प्रतिभा हर कसौटी पर खरा उतरी हैं।