Naiki Devi: गुजरात की वो रानी जिसकी वीरता ने मोहम्मद गोरी को जान बचाकर भागने पर मजबूर कर दिया था

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हमारे देश के धन-ऐश्वर्य को हथियाने के लिए असंख्य विदेशी ताकतों ने भारत भूमि की ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत की. कई विदेशी शासक यहां पैर जमाने में क़ामयाब भी रहे. हमारी माटी पर जन्मे सैंकड़ों वीर सपूतों ने इन विदेशी ताकतों को बराबर की टक्कर दी. इतिहास में ऐसे असंख्य राजा-रजवाड़े हुए हैं जिन्होंने विदेशी ताकतों को नाकों चने चबवा दिए.

राजा-रजवाड़ों की वीरता की कहानियां तो हम बार-बार लगातार सुनते हैं. लेकिन सच तो ये है कि हमारे यहां की रानियां, राजकुमारियां वीरता और शौर्य दिखाने में भारत भूमि को बचाने में कभी पीछे नहीं हटीं. फिर चाहें वो दक्षिण की रानी वेलू नचियार हों, रानी अब्बक्का हो, या अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाली मर्दानी, झांसी की रानी.

दुख की बात है कि भारत के वीरों के बारे में जितनी जानकारियां हमारे पास है, उतनी वीरांगनाओं के बारे में नहीं है. राजा-रजवाड़ों की कहानियों, वीरता के गुणगान तो हम गाते रहते हैं लेकिन कहीं न कहीं वीरांगनाओं की गाथाएं गाने में हम कुछ क़दम पीछे रह गए. बेहद ज़रूरी है कि हम अपनी वीरांगनाओं के बारे में पढ़े-सुने और जाने. इसी श्रृंखला में आज हम बात करेंगे गुजरात की रानी नायकी देवी की.

मोहम्मद ग़ोरी को धूल चटाने वाली रानी!

Story of Queen Naiki Devi who defeated mohammad ghoriTBI/Mohammad Ghori

मुस्लिम शासक, मोहम्मद ग़ोरी ने 1175 ईस्वी से 1206 ईस्वी के बीच भारत पर कई बार हमला किया. मोहम्मद ग़ोरी ने 1175 ईस्वी में मुल्तान, 1179 ईस्वी में पंजाब, 1180 ईस्वी में पेशावर, 1185 ईस्वी में सियालकोट पर कब्ज़ा कर लिया. पृथ्वीराज चौहान को तराइन के दूसरे युद्ध में हराकार मोहम्मद ग़ोरी ने 1192 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत की नींव रखी.

क्या आप जानते हैं कि मोहम्मद ग़ोरी ने भारत में प्रवेश के लिए सबसे पहले गुजरात को चुना था?

इस जीत से 14 साल पहले, 1178 ईस्वी में मोहम्मद ग़ोरी अपने मनसूबों को क़ामयाब करने के लिए गुजरात के ज़रिए भारत में घुसने की कोशिश में था. एक रानी ने ढाल बनकर भारत भूमी की रक्षा की थी. वो रानी थी गुजरात की नायकी देवी. ग़ौरतलब है कि रानी नायकी देवी कैसी दिखती थीं, आज हम वो भी नहीं जानते और न ही उनकी वीरता के बारे में ही ज़्यादा जानकारी है.

कौन थीं रानी नायकी देवी?

रानी नायकी देवी, कदंब शासक महामंडलेश्वर परमादी की पुत्री थीं. अस्त्र-शस्त्र चलाने में, घुड़सवारी, तीरंदाज़ी, युद्ध कौशल जैसे कई गुणों में नायकी देवी निपुण थीं. उनका विवाह गुजरात के सोलंकी राजा (इन्हें चालुक्य भी कहा जाता है), राजा अजयपाल से हुआ. राजा अजय पाल अधिक समय तक राज नहीं कर पाए और राजा बनने के चार वर्ष बाद ही उनका देहांत हो गया. नायकी देवी और राजा अजय पाल के पुत्र, मुलराज द्वितीय गद्दी पर बैठाए गए और रानी नायकी देवी, राज माता के रूप में राज्य का काम-काज देखती रहीं.

मोहम्मद ग़ोरी ने वो कर दिखाया था जो बड़े-बड़े योद्धा नहीं कर सके थे, उसने भारत के अंदर पैर जमान शुरु कर दिया था. मुल्तान जीतने के बाद उसकी नज़र राजपुताना और गुजरात पर पड़ी. मोहम्मद ग़ोरी के निशाने पर था गुजरात का अन्हिलवाड़ पाटन. अन्हिलवाड़ पाटन चालुक्य वंश की राजधानी थी.

अमेरिकी इतिहासकार, टेरटीयस चांडलर का मानना है कि ये शहर 1000 ईस्वी में दुनिया का दसवां सबसे बड़ा शहर था और यहां 1 लाख से ज़्यादा लोग रहते थे. जब ग़ोरी ने अन्हिलवाड़ पाटन पर आक्रमण किया तब यहां की बागडोर, मुलराज द्वितीय के हाथों में थी. ग़ोरी को लगा कि एक औरत और एक बच्चा उसका क्या बिगाड़ लेंगे. जल्द ही उसकी ये ग़लतफ़हमी दूर होने वाली थी.

आस-पड़ोस के राजाओं से मांगी मदद

Story of Queen Naiki Devi who defeated mohammad ghoriTwitter/Representational Image

मोहम्मद ग़ोरी के आक्रमण करने की तैयारियों के बारे में सुनकर रानी नायकी देवी ने भी युद्ध की तैयारियां शुरु कर दी. उन्होंने ग़ोरी की सेना का मुहतोड़ जवाब देने के लिए सेना तैयार की. इसके अलावा उन्होंने पृथ्वीराज चौहान समेत आस-पास के राजाओं से मदद मांगी. ग़ौरतलब है कि उन्हें नद्दुल के चाहमान वंश, जालौर के चाहमान वंश और अरबुदा के परमार के अलावा किसी की भी मदद नहीं मिली.

रानी नायकी देवी बेटे को लेकर रणभूमि में उतरी

रानी नायकी को ये समझ आ गया था कि मोहम्मद ग़ोरी को हराने के लिए उनकी तैयारियां काफ़ी नहीं थीं. नायकी देवी ने युद्ध की ऐसी रणनीति बनाई जिससे उनकी सेना को फ़ायदा हो. उन्होंने आज के माउंट आबू की तलहटी पर स्थित गदरघट्टा (Gadarghatta) के उबड़-खाबड़ इलाके को युद्ध क्षेत्र के रूप में चुना. ये कसाहरादा गांव के पास का क्षेत्र था. आज के राजस्थान के सिरोही ज़िले में ये जगह स्थित है.

जब घोरी की सेना कसाहरादा पहुंची तब रानी नायकी देवी अपने बेटे को लेकर रणभूमि में उतरी. रानी नायकी देवी और मोहम्मद ग़ोरी के बीच हुए इस युद्ध को कसाहरादा का युद्ध (Battle of Kasahrada) कहते हैं. चालुक्य की सेना ने विदेशी आक्रमणकारियों को रौंद दिया. मोहम्मद ग़ोरी को कुछ अंगरक्षकों के साथ युद्ध भूमि छोड़ कर भागना पड़ा. उसका घमंड चूर-चूर हो गया और उसने फिर कभी गुजरात की ओर देखने तक की हिम्मत नहीं की. इस युद्ध के अगले ही साल उसने पंजाब के ज़रिए भारत में घुसने की कोशिश की और सफ़ल हुआ.

रानी की वीरता का नाम मात्र उल्लेख किया गया है

rani naiki devi defeated mohammad ghori Live History India/Representational Image

सोलंकी राजा की राजसभा के कवि, गुजराती कवि सोमेश्वर ने अपने काम में नायकी देवी के बेटे मूलराज के बारे में लिखा कि राजा की सेना ने मोहम्मद ग़ोरी की सेना को परास्त किया. 14वीं शताब्दी के जैन विद्वान, मेरुतुंग ने ‘प्रबंध चिंतामणि’ में नायकी देवी, मूलराजा द्वितीय की माता का उल्लेख किया है. मेरुतुंग ने लिखा कि रानी नायकी देवी ने माउंट आबू के पास गदरघट्टा में मलेच्छ राजा को हराया.

मोहम्मद ग़ोरी की हार का ज़िक्र 13वीं शताब्दी के फ़ारसी लेखक मिन्हाज-उस-सिराज के लेखों में भी इस युद्ध का उल्लेख मिलता है. बता दें, रानी नायकी ने वो कर दिखाया जो एक से एक वीर राजा न कर सके. दुख की बात है कि इसके बावजूद उनके बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है. उस दौर के कई लेखकों ने इस युद्ध का ज़िक्र किया है लेकिन रानी नायकी को इतिहास में वो जगह नहीं मिली जो उनका हक़ था.